चमोली: उत्तराखंड के प्रसिद्ध बुग्यालों में शुमार बेदनी बुग्याल को आस्था का केंद्र माना जाता है. समुद्रतल से 13,500 फीट की ऊंचाई पर स्थित ऐतिहासिक एवं पौराणिक बुग्याल का अस्तित्व इन दिनों खतरे में है. आस्था का प्रतीक इस बुग्याल में देश-विदेश से लोग आते हैं. लेकिन लगातार हो रहे जल रिसाव और भू-कटाव से इसके अस्तित्व पर खतरा मंडराने लगा है.
हालांकि इसे बचाने के लिए कई प्रयास भी किए जा रहे हैं. इसके तहत हाईकोर्ट ने यहां लोगों की आवाजाही और रात्रि विश्राम पर रोक भी लगा दी है. यहां केवल लोकजात यात्रा के लिए रात्रि विश्राम की अनुमति है. इसके अलावा लगातार बुग्याल में हो रहे भूस्खलन से बुग्यालों का अस्तित्व खतरे की कगार पर है. बेदनी बुग्याल हो या आली बुग्याल धीरे-धीरे भू-कटाव के चलते इन बुग्यालों पर अपनी पहचान को बचाए रखने की चुनौती है.
भू-कटाव और जल रिसाव से ऐतिहासिक वेदनी और आली बुग्याल का अस्तित्व खतरे में पढ़ें: उत्तराखंड : भारी बारिश व भूस्खलन से बद्रीनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग बंद
हाईकोर्ट ने बुग्याल में अतिक्रमण, बुग्यालों में भेड़, बकरियां एवं गाय, भैंस चुगाने पर अपनी चिंता जाहिर की थी. इन कारणों से मखमली बुग्याल खुर्द-बुर्द हो रहे थे और बुग्याल धीरे-धीरे खाली हो रहे थे. इससे भू-कटाव तेजी से बढ़ रहा था. हाईकोर्ट की रोक के बावजूद भी यहां स्थानीय लोग गाय, भैंस चुगाने आते हैं.
ट्रैकिंग कंपनियां कर रही आदेशों की अनदेखी
कुछ ट्रैकिंग कंपनियां और पर्यटक बुग्यालों के अस्तित्व को खतरे में डालने की कोशिश कर रहे हैं. छुप-छुप के पर्यटक रात्रि विश्राम के लिए वेदनी बुग्याल में पहुंच रहे हैं. बेदनी, आली बुग्याल में बढ़ते भू-कटाव एवं मखमली घास का उखड़ना बुग्याल के लिए खतरा बन रहा है.
ऐतिहासिक है बेदनी बुग्याल
बेदनी बुग्याल के 15 मीटर व्यास में फैले बेदनी कुंड को लोगों की आस्था का केंद्र माना जाता है. ये नंदा देवी और त्रिशूली पर्वत शृंखलाओं के मध्य वाण गांव से 13 किमी की दूरी पर स्थित है. इस कुंड में नंदा देवी राजजात यात्रा हो या लोकजात यात्रा लाखों की संख्या में श्रद्धालु स्नान करते हैं.
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कहा जाता है कि जो श्रद्धालु इस कुंड में स्नान करता है, वह पाप से मुक्त हो जाता है. इसी कुंड में स्नान करने के बाद मां नंदा को कैलाश के लिए विदा किया जाता है. सरकार को इन बुग्यालों के संरक्षण के लिए आगे आना पड़ेगा, नहीं तो आने वाले कुछ सालों में इन बुग्यालों का अस्तित्व खत्म हो जाएगा.
वन विभाग के इंतजाम हो रहे बेअसर
वन विभाग ने बुग्याल में भू-कटाव न हो इसके लिए सुरक्षा के इंतजाम तो किए हैं, लेकिन वे कारगार साबित नहीं हो रहे हैं. ऐसे में सरकार को कुछ कठोर कदम उठाने पड़ेंगे, क्योंकि सरकार के राजस्व में इन बुग्यालों को बड़ा योगदान रहा है. अत्यधिक बारिश होने से और बुग्याल में निकल रहे पानी से भू-कटाव का खतरा बढ़ता देख आम जनमानस को भी बेदनी, आली बुग्याल की चिंता सताने लगी है. आस्था का केंद्र बेदनी कुंड में जल का रिसाव शुरू हो गया है.
क्या होते हैं बुग्याल ?
उत्तराखण्ड के गढ़वाल हिमालय में हिमशिखरों की तलहटी में जहां टिम्बर रेखा (यानी पेड़ों की पंक्तियां) समाप्त हो जाती हैं, वहां से हरे मखमली घास के मैदान आरम्भ होने लगते हैं. गढ़वाल हिमालय में इन मैदानों को बुग्याल कहा जाता है. बुग्याल हिम रेखा और वृक्ष रेखा के बीच का क्षेत्र होता है.