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लौटने लगी देश के अंतिम गांवों की 'रौनक', लौटने लगे नीति और माणा घाटी के लोग

सीमांत गांव नीति, माणा, मलारी, गमशाली, बम्पा, जुम्मा, कैलाशपुर, द्रोणागिरी के लोग शीतकाल के प्रवास के बाद अपने मूल गांवों की ओर लौटने लगे हैं. जानिए क्यों खास है भोटिया जनजाति के लोग...

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भोटिया जनजाति

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Published : Apr 26, 2020, 12:13 PM IST

Updated : Apr 26, 2020, 2:11 PM IST

चमोलीः कोरोना के चलते भले ही भगवान बदरी विशाल के कपाट खुलने को लेकर देरी हो रही हो, लेकिन बदरीनाथ क्षेत्र के सीमावर्ती गांवों की रौनक वापस लौटने लगी है. लॉकडाउन में छूट मिलने के बाद दूरस्थ गांव नीति, माणा, मलारी, गमशाली, बम्पा, जुम्मा, कैलाशपुर, द्रोणागिरी के ग्रामीण छह महीने के शीतकालीन प्रवास के बाद अपने मूल गांवों की ओर लौटने लगे हैं.

शीतकाल प्रवास के बाद गांव लौटने लगे नीति और माणा घाटी के लोग.

केंद्र सरकार ने लॉकडाउन में कृषि कार्यों के लिए छूट देने की गाइडलाइन जारी की है. जिसके बाद ये लोग देश की सीमा से लगे अपने गांवों की ओर लौट रहे हैं. अपनी संस्कृति, सभ्यता और विविधता के साथ इन गांवों में निवास करने वाली भोटिया जनजाति को सेना की द्वितीय पंक्ति भी माना जाता है. क्योंकि देश की सीमा पर तैनात जवानों के बाद उत्तराखंड के सीमावर्ती इलाकों में भोटिया जनजाति के लोग ही रहते है. दुर्गम क्षेत्रों में रहने वाले ये लोग काफी मेहनतकश होते हैं. जो राजमा, आलू, फरड़, चौलाई, मंडुआ, झंगोरा और फाफर के साथ बकरी पालन व ऊनी वस्त्रों का भी उत्पादन करते हैं.

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जहां उत्तराखंड के कई ग्रामीण इलाकों में लोगों का खेती से मोह भंग हो रहा है. वहीं भोटिया जनजाति के लोग छह महीने के ग्रीष्मकालीन प्रवास के दौरान इन दुर्गम इलाकों में नगदी फसलों का उत्पादन करते हैं. इससे वे सालभर की आजीविका के साथ लाखों की आय भी अर्जित करते हैं. इतना ही नहीं सरकारी सेवाओं के उच्च पदों पर आसीन होने के बावजूद भी इस जनजाति के लोग आज भी अपनी संस्कृति और सभ्यता के बेहद करीब हैं.

Last Updated : Apr 26, 2020, 2:11 PM IST

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