देहरादून:मोदी कैबिनेट में जगह पाने वाले हरिद्वार सांसद डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक संघर्ष से गुजरकर कामयाबी के शिखर तक पहुंचे हैं. उनकी कामयाबी का ये सफर बेहद कठिन चुनौतियों से भरा रहा. राजनीति के पहले पायदान से लेकर केंद्रीय मंत्री तक के दौर में निशंक को कई मुश्किलों के दौर झेलने पड़े. हालांकि, इस दौरान निशंक ने कभी हिम्मत नहीं हारी. इसकी एक बड़ी वजह उनकी बेटियां भी रही. जो हर बार उनकी ताकत बनकर उनके साथ खड़ी दिखाई दी. बात चाहे पारिवारिक परेशानियों से जुड़ी हो या राजनीति चुनौतियों से हर जगह निशंक की बेटियों ने मोर्चा संभालकर उन्हें पहाड़ जैसे ऊंचा बनाए रखा.
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डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक का राजनीतिक सफर बेहद मुश्किलों भरा रहा. एक शिक्षक, एक पत्रकार और फिर एक राजनेता बनने तक निशंक को ऐसी कई सीढ़ियां पर चढ़नी पड़ी, जहां पहुंचना बेहद कठिन था. हालांकि, इस सबके बाद भी डॉ. निशंक विधायक बनकर उत्तर प्रदेश मंत्रिमंडल में अपनी जगह बनाने में कामयाब रहे. इसके बाद उनका राजनीतिक सफर उत्तराखंड के कैबिनेट मंत्री और फिर मुख्यमंत्री तक पहुंचा. लेकिन 2 साल में ही राजनीतिक और पारिवारिक परेशानियों ने उन्हें घेर लिया.
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साल 2011 में भ्रष्टाचार के आरोप के चलते उन्हें अपना मुख्यमंत्री पद गंवाना पड़ा. 11 नवंबर 2012 को उनकी जीवन संगिनी उनकी पत्नी कुसुम कांत पोखरियाल भी उन्हें छोड़ कर चली गई. यह बहुत कठिन पल था जब रमेश पोखरियाल निशंक पूरी तरह से टूट गए, लेकिन फिर उन्हें बेटियों का ऐसा साथ मिला की वह न केवल खुद को संभाले बल्कि, राजनीति में बैकफुट पर जाने के बावजूद भी एक बार फिर उन्होंने ऊंचाइयों को छुआ.
डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक की तीन बेटियां हैं. जिसमें सबसे बड़ी आरुषि निशंक, दूसरी श्रेयसी निशंक और सबसे छोटी विदुषी हैं. यूं तो मां के जाने के बाद तीनों बेटियों ने ही अपने पिता का न केवल ध्यान रखा बल्कि, दु:ख की घड़ी में उनका सहारा भी बनी.
डॉ. निशंक की सबसे बड़ी बेटी आरुषि निशंक ने अपने पिता को पारिवारिक परेशानियों से उठ खड़ा होने के साथ राजनीतिक रूप से भी पूरी तरह से सहयोग किया. 2011 में मुख्यमंत्री की कुर्सी गंवाने वाले डॉ. निशंक राजनीतिक रूप से सक्रिय रहे लेकिन, कोई अहम जिम्मेदारी न मिलने के चलते निशंक को राजनीतिक रूप से बैकफुट पर ही देखा गया.
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इस दौरान उनकी बड़ी बेटी आरुषि निशंक ही थी जो लगातार अपने पिता को राजनीतिक रूप से सहयोग करती हुई दिखाई दी. चाहे बात चुनाव प्रचार-प्रसार में खुद को झोंकने की हो या फिर राजनीतिक रूप से विचार-विमर्श करने की. सभी जगह आरुषि अपने पिता के साथ कंधे से कंधा मिलाए खड़ी रही. आरुषि निशंक एक फिल्म निर्माता के साथ ही कथक नृत्यांगना और कवियत्री भी हैं. निशंक की दूसरी बेटी श्रेयसी सेना में कैप्टन हैं और मेडिकल फील्ड में सेना के लिए काम कर रही हैं.