देहरादून: राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस के मौके पर ईटीवी भारत आपको 150 साल पुरानी राजस्व पुलिस की व्यवस्था से रूबरू करवाने जा रहा है. जोकि देवभूमि के कई गांवों में आज भी लागू है और ये व्यवस्था अंग्रेजों द्वारा स्थापित की गई थी.
बता दें कि देशभर में 24 अप्रैल को 'राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस' मनाया जाता है. भारतीय संविधान के 73वें संशोधन अधिनियम, 1992 के पारित होने का प्रतीक है, जो 24 अप्रैल 1993 से लागू हुआ था. जिसके बाद इस दिन को राष्ट्रीय पंचायतीराज दिवस के रूप में मनाया जाता है. जिसकी शुरुआत साल 2010 में हुई थी.
क्या है राजस्व पुलिस व्यवस्था
साल 1861 में ग्रामीण इलाकों में कानून व्यवस्था सुधारने के लिए अंग्रेजों द्वारा राजस्व पुलिस की व्यवस्था लागू की गई थी. राजस्व पुलिस प्रणाली में प्रत्येक तहसील पर तैनात नायब तहसीलदार को कानूनगो और पटवारी रिपोर्ट करते हैं. पटवारी के साथ एक चपरासी और एक होमगार्ड या पीआरडी जवान पूरे क्षेत्र के जमीन और आपराधिक मामलों को देखता है. पूराने समय से चली आ रही व्यवस्था के चलते पटवारी के पास आज भी न तो हथियार होता है और न ही वाहन या किसी अन्य तरह की कोई संसाधन. केवल 2 से 3 लोगों और एक लाठी के दम पर पटवारी 20 से 30 गांवों की एक पट्टी की जिम्मेदारी सभांलता है.
उत्तराखंड में राजस्व पुलिस
उत्तराखंड के तकरीबन 60 फीसदी भू-भाग राजस्व पुलिस के अंतर्गत आता है और बाकी 40 फीसदी भू-भाग पर नियमित पुलिस कानून व्यवस्था पर नियंत्रण रखती है. उत्तराखंड राज्य में कुल 1216 राजस्व उपनिरिक्षक क्षेत्र है. प्रत्येक राजस्व क्षेत्र के अंतर्गत 20 से 30 गांव की एक पट्टी है.
राज्य में सबसे ज्यादा 234 पटवारी पौड़ी जिले में है. वहीं, अल्मोड़ा में 211, टिहरी में 183, पिथौरागढ़ में 144, उत्तरकाशी में 96, चमोली में 74, चम्पावत में 68, रुद्रप्रयाग में 52 और देहरादून में 39 पटवारी शामिल हैं. हरिद्वार और उधम सिंह नगर में बदलाव हुआ और पटवारी की जगह नियमित पुलिस ले चुकी है और अब पटवारी लेखपाल के रुप में कार्यरत हैं.