देहरादून: मोदी सरकार के बजट से उत्तराखंड समेत तमाम हिमालयी राज्यों को उम्मीदें थी कि पर्यावरण संरक्षण के एवज में केंद्र उन्हें ग्रीन बोनस देगा. लेकिन बजट पेश होने के बाद ग्रीन बोनस को लेकर सभी राज्यों की उम्मीदों पर पानी फिर गया है. जिस कारण उत्तराखंड को भारी नुकसान झेलना पड़ रहा है. राज्य सरकार का मानना है कि वन संपदा को संरक्षित करने के लिए विकास कार्यों की कुर्बानी दी गई है, जिसके एवज में केंद्र को ग्रीन बोनस के जरिए क्षतिपूर्ति करनी चाहिए.
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उत्तराखंड को ग्रीन बोनस दिए जाने की मांग सबसे पहले पुरजोर तरीके से पूर्व मुख्यमंत्री और मौजूदा केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक ने की थी. सालों से ग्रीन बोनस की इस मांग को अब तक केंद्रीय स्तर पर नहीं सुना गया है. इसकी एक वजह यह भी है कि न केवल उत्तराखंड बल्कि कई हिमालयी राज्य भी ग्रीन बोनस को लेकर मांग कर रहे हैं.
क्या है ग्रीन बोनस?
पर्यावरण को बचाने के लिए राज्य सरकार विकास कार्यों को छोड़ वनों का संरक्षण करती है, जिसके एवज में राज्य सरकार केंद्र से विशेष पैकेज की मांग करती है. इस विशेष पैकेज को ग्रीन बोनस कहा जाता है. दरअसल उत्तराखंड में 71 प्रतिशत वन हैं और लगातार राज्य में वन संपदा बढ़ रही है. ऐसे में राज्य सरकार केंद्र से पर्यावरण को बचाने के लिए एक खास पैकेज की उम्मीद कर रही है.
वन संरक्षण में प्रदेशवासियों की अहम भूमिका
उत्तराखंड में वन्य भू-भाग के लगातार बढ़ने के आंकड़े ये जाहिर करते हैं कि न केवल राज्य सरकार बल्कि उत्तराखंड के लोग भी वन संरक्षण को लेकर बेहद संजीदा हैं. प्रदेशवासियों की ये भूमिका तमाम परेशानियों से भी जुड़ी हुई है. प्रदेश में कई विकास कार्य वन्य भू-भाग होने के चलते अधर में लटक जाते हैं. इन मुश्किलों के बावजूद प्रदेश के लोग वन संरक्षण में अग्रणी भूमिका निभाते हैं.
एक अनुमान के मुताबिक उत्तराखंड अपने वनों से करीब 110 बिलियन रुपये की पर्यावरण सेवाएं दे रहा है. वनों के संरक्षण के चलते ग्रामीण लोग भी वनों की लकड़ी का इस्तेमाल नहीं कर पाते. यही नहीं राजस्व बढ़ोतरी के लिए भी राज्य सरकार ने वनों को काटकर इसका उपयोग नहीं किया है.
ग्रीन बोनस का फायदा
योजना आयोग भी वन संपदा को बचाने में उत्तराखंड की भूमिका को अहम मानता है. साथ ही क्षतिपूर्ति के रूप में ग्रीन बोनस की मांग को भी जायज ठहराया जा रहा है.. लेकिन इन सबके बावजूद उत्तराखंड को अब तक इसका लाभ नहीं मिल पाया है. बाकी राज्यों की तुलना में उत्तराखंड के लिए ग्रीन बोनस इसलिए भी अहम है क्योंकि उत्तराखंड लगातार आर्थिक रूप से पिछड़ रहा है. ऐसे में अगर ग्रीन बोनस मिलता है तो उत्तराखंड की आर्थिकी में सुधार होगा.
देखा जाए तो ग्रीन बोनस राज्य की महज मांग नहीं है, बल्कि यह उत्तराखंड का हक भी है. क्योंकि उत्तराखंड के लोग लगातार वन संपदा को बचाने के चक्कर में न केवल नुकसान झेल रहे हैं बल्कि विकास कार्यों से भी महरूम रहते हैं. ऐसे में ग्रीन बोनस की मांग को पूरा किया जाना बेहद जरूरी माना जाता है.