देहरादूनः देवभूमि के पहाड़ी जिलों में लिंगानुपात गड़बड़ा गया है. शासन के लिए यह चिंता का विषय है. सरकार ने इस विषय को गंभीरता से लेते हुए इस संबंध में कड़े कदम उठाने शुरु कर दिए हैं. सोमवार को सचिवालय में पीसीपीएनडीटी एक्ट के स्टेट सुपरविजन बोर्ड की बैठक का आयोजन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत की अध्यक्षता में किया गया.
पहाड़ी जिलों में लिंगानुपात बिगड़ा. सचिवालय में हुई इस बैठक में बोर्ड की सदस्य और विधायक ममता राकेश, अपर मुख्य सचिव राधा रतूड़ी, सचिव स्वास्थ्य नितेश झा, अपर सचिव न्याय रितेश श्रीवास्तव, निदेशक राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन युगल किशोर पंत, सदस्य सचिव राज्य पर्यवेक्षण बोर्ड डॉ. सरोज नैथानी, उत्तराखंड महिला एसोसिएशन से साधना शर्मा, डॉ. ज्योति शर्मा, डॉ. ज्योति शर्मा आदि की उपस्थिति रही और बैठक में बालक और बालिका के जन्म को लेकर प्रदेश में तमाम तरह के नियम कानूनों पर विस्तृत चर्चा हुई.
गर्भावस्था पूर्व एवं प्रसव पूर्व निदान तकनीक अधिनियम यानी पीसीपीएनडीटी एक्ट को अगर आसान भाषा में समझे तो ये वो तमाम कानून हैं जो बालक और बालिका के बीच अंतर या फिर उनके जन्म को लेकर उन तमाम भ्रांतियों और कुरीतियों पर नकेल कसता है और इस कानून के पालन को लेकर राज्य में एक सुपरविजन बोर्ड का गठन किया गया है. इस बोर्ड की एक विस्तृत बैठक हुई जिसमें पीसीपीएनडीटी एक्ट को प्रदेश में कड़ाई से पालन करवाने के साथ ही ये महत्वपूर्ण निर्देश दिये गए.
अल्ट्रासाउंड मशीन की होगी जांच
बैठक में निर्देश दिए गए कि सीएमओ के माध्यम से सभी जनपदों में अल्ट्रासाउंड मशीनों की सूची मांगी जाए. जनपदवार यह सूची सरकार को भी उपलब्ध कराई जाए. साथ ही यह सुनिश्चित किया जाए कि प्रत्येक अल्ट्रासाउंड मशीन पर जीपीएस ट्रेकर लगा हो. अल्ट्रासाउंड मशीनों व अल्ट्रासाउंड करने वाले डॉक्टरों का पंजीकरण अनिवार्य है.
मुख्यमंत्री ने कहा कि अल्ट्रासांउड निर्माता व आपूर्तिकर्ता दोनों फर्मों का पंजीकरण भी अनिवार्य किया जाय. जिला स्तर पर गठित कमेटी द्वारा समय-समय पर अल्ट्रासांउड केन्द्रों का निरीक्षण किया जाए. यदि कोई अवैध इन विट्रो फर्टिलाइजेशन यानी आई.वी.एफ सेंटर चल रहे हैं, तो औचक निरीक्षण कर उनको सीज किया जाय. मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने कहा कि प्रदेश में लिंगानुपात में समानता लाने के लिये प्रसव पूर्व लिंग परीक्षण पर प्रभावी रोक लगाने की व्यवस्था सुनिश्चित की जाए.
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इस सम्बन्ध में सभी सम्बंधित अधिकारी अपने जिम्मेदारी समझें. उन्होंने इस सम्बन्ध में स्वास्थ्य विभाग के साथ ही सभी जिलाधिकारियों को भी कार्यवाही सुनिश्चित करने को कहा. उन्होंने इस सम्बन्ध में जन जागरूकता के प्रसार पर भी ध्यान देने को कहा है.
बाल लिंगानुपात में वृद्धि करने के लिए करें प्रयासः सीएम
बैठक में निर्णय लिया गया कि बच्चे के जन्म पंजीकरण के लिए सुदृढ़ व्यवस्था की जाए. यह सुनिश्चित किया जाय कि इन्स्टीट्यूशनल डिलीवरी में 48 घंटे के अन्दर व नगर पालिका और नगर पंचायत क्षेत्रों में 21 दिन के अन्दर बच्चे का जन्म का पंजीकरण हो जाए. ऐसे माता-पिता जिनकी सिर्फ एक या दो संतान हो और वह बेटी हो, उनको सम्मानित भी किया जाय. बच्चों के जन्म प्रमाण पत्र के लिए अभिभावकों को जागरूक करने के लिए होर्डिंग व बैनरों के माध्यम से प्रचारित किया जाय. बच्चों के जन्म प्रमाण पत्र बनाने हेतु जागरूकता के लिए मुख्यमंत्री की ओर से ग्राम प्रधानों को पत्र प्रेषित किये जाएंगे.
अस्पतालों में लगेंगे गुड्डा-गुड्डी के बोर्ड
बैठक में निर्णय लिया गया कि सभी अस्पतालों में गुड्डा-गुड्डी बोर्ड लगाया जाए. जिन जनपदों में बाल लिंगानुपात में अपेक्षित सुधार नहीं हो रहा है, इसके कारणों का पता किया जाय. मुख्यमंत्री ने कहा कि कार्यशालाओं, जन जागरूकता रैलियों व अन्य माध्यमों से बाल लिंगानुपात को बढ़ाने के लिए प्रयास किये जाएं. बैठक में निर्णय लिया गया कि एक्ट के दुरूपयोग को रोकने के लिए समय-समय पर छापेमारी अभियान चलाया जाए ताकि दोषी अल्ट्रासाउंड केन्द्रों पर वैधानिक कार्रवाई की जा सके और इसमें संलिप्त लोगों पर अंकुश लग सके.
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बैठक में जानकारी दी गयी कि उत्तराखंड में 413 पंजीकृत केन्द्रों में 659 अल्ट्रासाउण्ड मशीनें संचालित हो रही हैं. गत वर्ष जनपद स्तर पर 455 निरीक्षण किए गए. राज्य पर्यवेक्षण बोर्ड की बैठक में आई.बी.एफ. लैब पंजीकृत है तथा इन केन्द्रों की कार्यप्रणाली पर अत्यधिक निगरानी के लिए इन्हें भी क्लीनिकल रेगुलेशन एक्ट के तहत लाया गया है.
साथ ही आपको बता दें कि उत्तराखंड में 2015-16 में जन्म पर लिगांनुपात 906 था जो अभी बढ़कर 938 हो गया है. चम्पावत, चमोली व पिथौरागढ़ में बाल लिंगानुपात में सुधार की जरूरत है. उत्तराखंड में बाल लिंगानुपात में पिछले तीन सालों में वृद्धि हुई है. पीसीपीएनडीटी एक्ट के तहत अभी तक कुल 46 मामले दर्ज किये गये हैं जिसमें से 4 पर दोष सिद्ध हो चुके हैं और 10 मामले खारिज हो चुके हैं जबकि 32 मामले अभी पेंडिग में चल रहे हैं.