देहरादूनःसर्कस...ये शब्द सुनकर बरबस ही आंखों के सामने कुछ तस्वीरें उभर उठती हैं. जोकर्स बनकर लोगों को हंसाते हैं. रंग-बिरंगे कपड़ों में उछलते-कूदते जोकर, पतली-पतली रस्सियों और झूलों पर कलाबाजियां कर बिजली सी तेज रफ्तार से दौड़ते कलाकार, एक पहियेवाली साइकिल पर पलती रस्सी पर करतब करती लड़की तो कभी हाथों में चाबुक लिये जंगल के राजा शेर को फटकारता रिंग मास्टर...ये सब वही सोच सकता है जिसने वो सर्कस 'जिया' हो.
आज के बदलते दौर में सर्कस की चमक फीकी पड़ गई है. बीते जमाने में लोगों के मनोरंजन का इकलौता साधन 'डिजिटल' की दौड़ में पिछड़ गया है. ऐसे में कई कलाकार तरह-तरह के करतब दिखाकर सालों से दर्शकों का मनोरंजन करते आ रहे हैं. लेकिन, बदलती टेक्नोलॉजी और इंटरनेट के बढ़ते दायरे के कारण भारत समेत विश्वभर में सर्कस के प्रति लोगों का क्रेज खत्म होता जा रहा है.
प्रदेश की राजधानी देहरादून के परेड ग्राउंड में इन दिनों 'जैमिनी सर्कस ' लगा हुआ है. यह वही सर्कस है जिसका जिक्र साल 1970 में निर्माता निर्देशक राज कपूर की फिल्म 'मेरा नाम जोकर ' में भी किया गया है, लेकिन आज इस सर्कस और इससे जुड़े कलाकारों की स्थिति कुछ ठीक नहीं है.
वहीं, दूनवासी भी परेड मैदान में लगे इस जेमिनी सर्कस का बहुत कम रुख कर रहे हैं. पहले की तरह लोगों में सर्कस के प्रति आकर्षण नहीं दिख रहा है.बावजूद इसके सर्कस के जुड़े कलाकार इसका अस्तित्व बचाए रखने की कवायद में लगे हैं.
गौरतलब है कि भारत में पहली बार दिसंबर 1879 में सर्कस लगाया गया था. इस दौरान लोगों के पास टीवी, मोबाइल फोन, लैपटॉप जैसे मनोरंजन के साधन नहीं हुआ करते थे. ऐसे में सर्कस 125 सालों तक लोगों के मनोरंजन का इकलौता साधन बना रहा.
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ये वो दौर हुआ करता था जब सर्कस में दर्शक कई जंगली जानवरों जैसे शेर, भालू, हाथी को अलग-अलग तरह के करतब करते देख पाते थे, लेकिन अब Wild Life Protection Act के चलते सर्कस से जंगली जानवर पूरी तरह गायब हो चुके हैं. जिसके बाद सर्कस में वो पहले वाली बात नहीं रही और दर्शक भी सर्कस से धीरे-धीरे दूर होते चले गए.
देश के विभिन्न राज्यों में सर्कस का आयोजन करने वाले अनिल कुमार गोयल बताते हैं कि टेलीविजन और इंटरनेट ने लोगों को सर्कस से दूर कर दिया है. जहां कुछ सालों पहले तक सर्कस के मंच में अच्छी खासी भीड़ जुटा करती थी. अब बमुश्किल ही लोग सर्कस देखने आते हैं.
उनका मानना है कि सर्कस से लोगों के दूर होने का एक बड़ा कारण सर्कस में जंगली जानवरों करतबों पर बैन है. इसके अलावा इंटरनेट भी एक बड़ा कारण है. लोग अपने मोबाइल पर ही देश-दुनिया की मनोरंजक चीजें देख सकते हैं. इसलिए बदलते परिवेश के साथ-साथ लोगों में सर्कस के प्रति रुझान कम हो रहा है.
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वहीं अब सर्कस के जुड़े भारतीय कलाकर भी अपने जीवन यापन के लिए कुछ और पेशा अपना रहे है. क्योंकि भारत में लगने वाले सर्कस में अब यह आम बात हो चुकी है कि यहां अब भारतीय कलाकारों की जगह विदेशी कलाकारों को तवज्जों दी जाती है. जो कि मुख्यत: अफ्रीकी देशों से आ रहे हैं.
वहीं, सर्कस में विभिन्न तरह के करतब कर दर्शकों का मनोरंजन करने वाले कलाकारों से जब हमने बात की तो उनका कहना था कि वो लोग बीते कई सालों से सर्कस में करतब कर अपना अपने परिवार का भरण पोषण करते आ रहे हैं.
उन्हें अपना काम बहुत पसंद भी है लेकिन आज सर्कस की जो स्थिति वह ठीक नहीं है. जिसे देखकर वो काफी हताश है. उन्हें डर है कि एक दिन कहीं सर्कस पूरी तरह गुमनामी के अंधेरे में न खो जाए.