देहरादूनः होली का रंग अभी धुला भी नहीं था कि गुरुवार शाम होते-होते सियासी रंग परवान चढ़ने लगा. लोकसभा चुनाव के लिए बीजेपी ने जैसे ही दिल्ली से प्रत्याशियों की सूची जारी की, वैसे ही राज्य में सियासत और गरमाने लगी. प्रत्याशियों की इस लिस्ट में नैनीताल लोकसभा सीट से अजय भट्ट को पार्टी ने प्रत्याशी चुना है तो वहीं जब अजय भट्ट का नाम आया तो सवाल ये भी उठने लगा कि क्या इस बार टूट पायेगा अजय भट्ट से जुड़ा मिथक, क्या है पूरी कहानी आपको बताते हैं.
इस बात में कोई शक नहीं है कि उत्तराखंड बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट संगठन के लिए पूरी तरह से समर्पित हैं, लेकिन उनके साथ जुड़ा एक मिथक लगातार उनकी परेशानी बढ़ाता जा रहा है. दरअसल, राज्य बनने के बाद सभी चुनाव परिणामों में देखा गया कि जिस भी चुनाव को अजय भट्ट जीते हैं, उस चुनाव में बीजेपी की सरकार नहीं बन पाती है. इसके उलट जब-जब अजय भट्ट चुनाव हारे हैं तो बीजेपी की सरकार बनी है. बार-बार हुए इस घटनाक्रम के चलते अजय भट्ट के साथ यह मिथक जुड़ गया.
आइए आपको बताते हैं कब-कब ऐसा हुआ-
- राज्य बनने के बाद पहली बार साल 2002 में हुए विधानसभा चुनाव में अजय भट्ट रानीखेत विधानसभा से चुनाव लड़े और जीते भी लेकिन राज्य में सरकार कांग्रेस की बनी और नारायण दत्त तिवारी मुख्यमंत्री बने.
- इसके बाद हुए 2007 के विधानसभा चुनाव में रानीखेत विधानसभा से अजय भट्ट चुनाव हार गए लेकिन प्रदेश में बीजेपी की सरकार बनी और पहले बीजेपी के भुवनचंद्र खंडूड़ी और बाद में रमेश पोखरियाल निशंक मुख्यमंत्री बने.
- इसी तरह से 2012 में भी रानीखेत से अजय भट्ट ने विधानसभा चुनाव तो जीता लेकिन प्रदेश में सरकार इस बार कांग्रेस की बनी और पहले विजय बहुगुणा और बाद में हरीश रावत मुख्यमंत्री बने.
- इतनी घटनाओं के बाद 2017 में सबको उम्मीद थी कि मोदी लहर के बावजूद तो ये मिथक टूटेगा लेकिन मिथक कायम रहा और इस बार बीजेपी की प्रदेश में प्रचण्ड बहुमत से सरकार बनी लेकिन मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदार माने जाने वाले अजय भट्ट एक बार फिर अपनी ही रानीखेत सीट से चुनाव हार गए.
बहरहाल, इस बार फिर से ये उम्मीद की जा रही है कि अब अजय भट्ट के साथ जुड़ा हुआ यह मिथक टूट जाएगा. हालांकि, इस बार परिस्थितियां भी बदली हुई हैंऔर यह मिथक जितना अजय भट्ट के साथ जुड़ा हुआ है उतना ही रानीखेत विधानसभा के साथ भी जुड़ा हुआ हैजिसको देखते हुए इस बार परिस्थिति थोड़ा अलग है क्योंकि इस बार ना तो रानीखेत विभानसभा है और ना विधायकी का चुनाव है. हालांकि, इस बार पार्टी ने नैनीताल लोकसभा सीट से उन्हें अपना प्रत्याशी बनाया है, तो कम से कम इस बार तो बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष के साथ जुड़ा ये मिथक टूटने की उम्मीद है.