बागेश्वर:उत्तराखंड के बागेश्वर जिले की कत्यूर घाटी के बीचों-बीच स्थित मां कोट भ्रामरी मंदिर (Kot Bhramari Temple) श्रद्धालुओं की अटूट आस्था का केंद्र है. इसका पौराणिक और ऐतिहासिक महत्व है. मां नंदा-सुनंदा के इस धार्मिक केंद्र में हर साल चैत्र अष्टमी को विशाल मेला लगता है. इस दौरान श्रद्धालुओं की तरफ से विशेष पूजा-अर्चना की जाती है.
माना जाता है कि 2500 ईसा पूर्व से लेकर 700 ईसा तक कुमाऊं पर कत्यूरी राजवंश का शासन था. इसी दौरान कत्यूर घाटी में एक किला स्थापित किया गया. यहीं स्थित है मां भगवती मंदिर, जिसमें मां नंदा की मूर्ति स्थापित है. जन श्रुतियों के अनुसार कत्यूरी राजाओं और चंद वंशावलियों की कुलदेवी भ्रामरी और प्रतिस्थापित नंदा देवी की पूजा-अर्चना इस मंदिर में की जाती है. मंदिर में भ्रामरी रूप में देवी की पूजा अर्चना मूर्ति के रूप में नहीं, बल्कि मूल शक्ति के अनुसार की जाती है. नंदा के रूप में इस स्थल पर मूर्ति पूजन, डोला स्थापना और विसर्जन का प्रावधान है. यहां पर चैत्र अष्टमी और भादो मास की अष्टमी को मेला लगता है. जिसमें दूर-दराज से श्रद्धालु मां की विशेष पूजा अर्चना करते हुए मन्नतें मांगते हैं. जब उनकी मन्नतें पूरी हो जाती हैं तो दोबारा पूजा-अर्चना के लिए यहां आते हैं.
यहां भगवती मां भ्रामरी देवी का मेला चैत्र मास की शुक्ल अष्टमी को आयोजित होता है. जबकि मां नंदा का मेला भाद्र मास की शुक्ल अष्टमी को लगता है. कहते हैं कि मां नंदा की प्रतिमा पहले यहां से करीब आधा किलोमीटर दूर झालामाली नामक गांव में स्थित थी. इसके बाद में देवी की प्रेरणा से पुजारियों ने कोट भ्रामरी मंदिर में ही प्राण प्रतिष्ठा कर दी. तभी से दोनों महाशक्तियों की पूजा यहां होने लगी. माता कोट भ्रामरी के मंदिर का निर्माण कत्यूरी राजाओं के वक्त का माना जाता है.