बागेश्वरः दीपावली पर्व पर पारंपरिक रंगोली यानि ऐपण का विशेष महत्व माना जाता है. ऐपण कला उत्तराखंड की संस्कृति को दर्शाता है. जो प्राचीन काल से ही चली आ रही परंपरा है. खास मौकों पर महिलाएं पारंपरिक वेशभूषा में ऐपण बनाती है. इसी कड़ी में कुमाऊं में ऐपण विरासत ही नहीं बल्कि, संस्कृति और कला को भी प्रदर्शित करती है, लेकिन आधुनिकता और घरों के बदलते स्वरूप ने ऐपणों की जगह बाजार में आ रहे स्टीकरों व प्लास्टिक पेंटिंग ने ले ली है. ऐसे में पांरपरिक कला विलुप्ति की कगार पर है.
विलुप्ति की कगार पर कुमाऊं की ऐपण कला. दीपावली पर्व पर ऐपण रंगोली बनाने का विशेष महत्व है. इस दौरान घरों में रंगोली बनाने के साथ माता लक्ष्मी की चरण पादुका और गणेश चौकी भी बनाई जाती है. गृहणियां विभिन्न प्रकार की रंगोलियां बनाकर घर, आंगन और मंदिरों को सजाती हैं. इतना ही नहीं ओखली से मंदिर तक लक्ष्मी के चरण बनाए जाते हैं. ऐपण बनाने के लिए लाल मिट्टी और पिसे हुए चावलों के विस्वार का प्रयोग किया जाता है.
ये भी पढ़ेंःदीपावलीः पटाखे जलाते समय रहें सावधान, इन बातों का रखें ध्यान
उत्तराखंड के ग्रामीण अंचलों में आज भी कहीं-कहीं ऐपण बनाने की यह परंपरा नजर आती है. ऐपण कला की खास बात ये है कि इसे बनाने में किसी ब्रश का प्रयोग नहीं किया जाता है. बल्कि, यह हाथ की अंगुलियों से बनाई जाती है, लेकिन धीरे-धीरे घरों के बदलते स्वरूप और बदलते जीवन शैली में ये कला अब विलुप्त हो रही है. वहीं, दूसरी ओर बाजारों में प्लास्टिक से बने हुए स्टीकर आ रहे हैं. जो पर्यावरण प्रदूषण का कारण भी बन रहे हैं.
कुमाऊं की ऐपण कला काफी प्रसिद्ध है. जो विरासत ही नहीं बल्कि, संस्कृति एवं कला को भी दर्शाती है. जिसका समाज रीति रिवाज में अपना अलग ही महत्व है. गृहणी रश्मि साह और पूनम का कहना है कि पारंपरिक ऐपण में लाल रंग की मिट्टी (गेरू) से मंदिर, आंगन और ओखली की पुताई की जाती है. जिसके बाद चावल को पीसकर सफेद पेंट (विस्वार) तैयार किया जाता है. इसके बाद ओखली से माता लक्ष्मी की चरण पादुकाओं का निर्माण घर के अंदर मंदिर तक किया जाता है.
ये भी पढ़ेंःदीपावली पर इस विधि से करें गणेश और लक्ष्मी की पूजा, मिलेगी अपार सुख समृद्धि
मान्यता है कि लक्ष्मी अन्न और धन की देवी है. ऐसे में ओखली से चरण पादुकाओं का निर्माण घर के अंदर की ओर किया जाता है. जिससे घर में अन्न के भंडार भरे रहें, लेकिन आधुनिकता के कारण बाजार में आ रहे स्टीकरों ने ऐपण संस्कृति पर खतरा पैदा कर दिया है. दीपावली ही नहीं बल्कि, सभी शुभ कार्यों पर ऐपण बनाने की परंपरा उत्तराखंड में सदियों से चली आ रही है. ऐसे में इसे विरासत के रूप में संजोने की दरकार है.