लोकसभा चुनाव का लिटमस टेस्ट होगा बागेश्वर का रण बागेश्वर: 5 सितंबर को बागेश्वर उपचुनाव होना है, जिसकी दोनों भाजपा और कांग्रेस तैयारी कर रही हैं. दोनों पार्टियां उपचुनाव में कोई भी कसर नहीं छोड़ना चाहती हैं, क्योंकि इसी से 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव को लेकर आगे की रणनीति तैयार की जाएगी. जिससे कहा जा सकता है कि बागेश्वर उपचुनाव दोनों पार्टियों के लिए टेस्ट है, जबकि मुख्य परीक्षा लोकसभा चुनाव में है.
बागेश्वर विधानसभा सीट का इतिहास बागेश्वर उपचुनाव माना जा रहा लोकसभा का ट्रायल:लोकसभा चुनाव 2024 से पहले बागेश्वर उपचुनाव भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस दोनों के लिए बेहद अहम है, इसलिए दोनों पार्टियां लोकसभा चुनाव जीतने के लिए लाखों जतन करने लगी हैं.
जानें कब-कब हुए बागेश्वर उपचुनाव दोनों प्रमुख पार्टियां दिखा रही है दमखम:बागेश्वर उपचुनाव सत्ताधारी बीजेपी के लिए प्रतिष्ठा का सवाल बन गया है. तो कांग्रेस इस चुनाव को जीतकर आगामी लोकसभा चुनाव के लिए खुद को मजबूत करने में जुटी हुई है. ऐसे में कह सकते हैं कि बागेश्वर उपचुनाव 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए महत्वपूर्ण है.
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चंदन रामदास की मौत के बाद बागेश्वर विधानसभा सीट खाली:कुमाऊं की बागेश्वर विधानसभा सीट अनुसूचित जाति के उम्मीदवारों के लिए आरक्षित है. उत्तराखंड बनने के बाद वर्ष 2002 में यहां पहली बार हुए चुनाव हुए थे. जिसमें कांग्रेस के रामप्रसाद टम्टा ने जीत हासिल की थी. 2007 के दूसरे विधानसभा चुनाव में भाजपा के चंदन रामदास पहली बार जीतकर विधानसभा पहुंचे. उसके बाद उन्होंने पीछे मुढ़कर नहीं देखा. चंदन रामदास की मौत के बाद बागेश्वर विधानसभा सीट खाली हो गई थी.
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बनाये गये 172 मतदान केंद्र:बागेश्वर में 1 लाख 18 हजार 225 मतदाता हैं. इन में 60,045 पुरुष और 58, 180 महिलाएं हैं. सर्विस मतदाताओं की संख्या 2,207 है. जिनमें से महिला मतदाता 57 हैं. उपचुनाव के लिए यहां 172 मतदान केंद्र और 188 मतदेय स्थल बनाए गए हैं.