बागेश्वरः राज्य सरकार ने आगामी सत्र से कक्षा 1 से 5वीं तक कुमाऊंनी व गढ़वाली भाषा का शिक्षण करने का निर्णय लिया है. प्रथम चरण में हर जिले के एक विकासखंड में अपनी दूधबोली के पठन-पाठन के लिए पुस्तकों की रचना कर विद्यालय को उपलब्ध भी कराई गई है. बच्चों में औपचारिक शिक्षा का प्रारंभ सरलता से हो सके, इसके लिए बागेश्वर में शिक्षकों की एक विचार गोष्ठी आयोजित की गई.
उत्तराखंड में राज्य सरकार ने क्षेत्रीय बोली और भाषा को जीवंत रखने और उनके प्रचार-प्रसार को लेकर नए सिरे से कवायद शुरू कर दी है. इसी के चलते सरकार ने फैसला लिया है कि राज्य के विश्वविद्यालयों में अब गढ़वाली और कुमाऊंनी भाषा को अनिवार्य रूप से पाठ्यक्रम में शामिल किया जाए. आगामी शिक्षा सत्र से कक्षा 1 से 5वीं तक अब धगुली, हंसुली, छुबकी, पैजनि तथा झुमकी नाम की कुमाऊंनी और गढ़वाली भाषा की किताबों को भी पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है. बच्चों को कैसे इनका शिक्षण दें, इस बात को शिक्षक भी समझ सकें. इसके लिए बागेश्वर में जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान में विचार-मंथन गोष्ठी का आयोजन किया गया.