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अष्टमी पर चंडिका मंदिर में उमड़ी श्रद्धालुओं की भीड़, बागेश्वर की नगर देवी हैं मां चंडिका - Durga Ashtami 2023

भीलेश्वर पहाड़ी पर स्थित माता चंडिका को बागेश्वर की नगरदेवी कहा जाता है. शारदीय और चैत्र नवरात्र के अवसर पर माता रानी के दर्शन के लिए दूर-दूर से भक्त मंदिर पहुंचते हैं और मां चंडिका का आशीर्वाद लेते हैं.

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Published : Mar 29, 2023, 3:34 PM IST

बागेश्वर: भीलेश्वर पहाड़ी पर स्थित माता चंडिका को बागेश्वर की कुल देवी (नगरदेवी) कहा जाता है. माता चंडिका को चंद शासकों के समय में उनके कुल पुरोहितों के वंशजों ने चंपावत से यहां लाकर स्थापित किया था. वर्षभर जिले के भक्तजन माता के दरबार में आकर पूजा-अर्चना करते हैं. शारदीय और चैत्र नवरात्र में मंदिर में भक्तों की संख्या बढ़ जाती है, क्योंकि दूर-दूर से भक्त माता रानी के दर्शन को पहुंचते हैं.

बता दें कि चंडिका माता को मूल रूप से चंपावत का माना जाता है. वर्ष 1698 से 1701 में चंद वंश के राजाओं के शासनकाल में उनके कुल पुरोहित रहे चंपावत के सिमल्टा गांव के पंडित श्रीराम पांडेय चंडिका देवी और गोल्ज्यू देवता को लेकर बागेश्वर आ गए थे. ताम्र पत्र और शिलालेख में अंकित जानकारी के अनुसार भीलेश्वर पर्वत पर माता चंडिका का छोटा मंदिर बनाया गया, जिसके कुछ दूरी पर गोल्ज्यू देवता के मंदिर की स्थापना भी की गई. इसे अब चौरासी गोल्ज्यू के नाम से जाना जाता है.

पंडित श्रीराम पांडेय के वंशजों ने मंदिर के समीप चौरासी गांव को अपना निवास स्थल बनाया और यहीं बस गए. बागेश्वर जिले के विकास के साथ साथ और बदलते परिवेश के बीच मंदिर का स्वरूप भी काफी बदल गया है. आज पूरे बागेश्वर नगर और जिले के अन्य लोगों की आस्था भी चंडिका मंदिर में काफी ज्यादा है.
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स्थानीय लोगों के मुताबिक वर्ष 1985 में मंदिर के नवीनीकरण को लेकर विचार विमर्श शुरू हुआ. नगरवासियों ने मंदिर में निर्माण कार्य कराने के लिए 1988 में कमेटी का गठन कर मंदिर का भव्य निर्माण कराया और मंदिर परिसर का विस्तार भी किया गया. मौजूदा समय में मंदिर परिसर में विश्राम गृह की स्थापना, मंदिर की चारदीवारी, मंदिर तक सड़क निर्माण आदि कार्य कराए जा चुके हैं.

वर्तमान में यहां मां चंडिका के अलावा मां चामुंडा, माता कालिका, संतोषी माता, महावीर हनुमान, लांगुड़ावीर, क्षेत्रपाल और भेलू देवता के मंदिर स्थापित हैं. मंदिर की देखरेख का कार्य कमेटी करती है. वहीं पूजा अर्चना का अधिकार आज भी चौरासी के पांडेय वंशजों के पास ही है. पूर्व में मंदिर में अष्ट बलि प्रथा का चलन था, जिसे कोर्ट के आदेश पर बंद कर दिया गया है.

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