बागेश्वर: उत्तराखंड का हस्तशिल्प सदियों से आकर्षण का केंद्र रहा है. हस्तशिल्पी कारीगरों द्वारा बने काष्ठ शिल्प, ताम्र शिल्प और ऊन से बने वस्त्रों की खूब मांग रहती है. लेकिन विडंबना देखिए बदलते वक्त की मार से यहां का हस्तशिल्प भी अछूता नहीं रहा है. हस्तशिल्पियों और बुनकरों को प्रोत्साहन न मिलने से यह कला सिमटने लगी थी. लेकिन कुछ लोग इस कला को रोजगार का साधन बनाकर अपना परिवार चला रहे हैं.
जिले में स्थानीय संसाधनों के उपयोग से स्वरोजगार की अपार संभावनाएं हैं. इस बात को ब्रिमद्यौ गांव के बाली राम आगरी ने सही साबित कर दिखाया है. वह करीब 20 साल से रिंगाल के उत्पाद बनाकर आजीविका चला रहे हैं. खेतीबाड़ी के प्रति लोगों का रुझान घटने के बावजूद वह अपने कारोबार से घर-परिवार का खर्चा आसानी से चला रहे हैं.क्षेत्र के गांवों में उनके बनाए उत्पादों की अच्छी मांग है.
गरुड़ तहसील मुख्यालय से 17 किमी दूर बसे ब्रिमद्यो गांव के रहने वाले बाली राम को रिंगाल के उत्पाद बनाने का हुनर विरासत में मिला.महज 14 साल की उम्र से वह स्वरोजगार करने लगे थे. वह रोजााना जंगल से रिंगाल काटकर लाते हैं, फिर घर पर डलिया, सूप, मोस्टे आदि खेतीबाड़ी में उपयोग होने वाले सामान तैयार करते हैं. अपने बनाए उत्पादों को वह स्वयं ही गांव-गांव जाकर बेचने का काम करते हैं. धीरे-धीरे उनके बनाए उत्पादों की मांग दूरदराज के गांवों में भी होने लगी है.