उत्तराखंड

uttarakhand

ETV Bharat / state

भगवान शिव को काफी पसंद थी ये नगरी, बाबा भोलेनाथ के नाम पर पड़ा जिले का नाम

शैलराज हिमालय की गोद और गोमती, सरयू नदी के संगम पर स्थित बागनाथ मंदिर धर्म के साथ पुरातत्व के लिहाज से  काफी महत्वपूर्ण है.जो ऋषि मार्केंडेय की तपोभूमि भी मानी जाती है. भगवान शिव के बाघ रूप में यहां निवास करने से इस नगरी को व्याघ्रेश्वर नाम से भी जाना जाता है. जो बाद में बागेश्वर नाम से जाने जाना लगा.

By

Published : Mar 31, 2019, 11:04 AM IST

Updated : Mar 31, 2019, 11:26 AM IST

भगवान शिव को काफी पसंद थी ये नगरी.

बागेश्वर: भगवान शिव का हर धाम भक्तों को ऊर्जावान बनाता है. यूं तो देवभूमि कहे जाने वाले उत्तराखंड में भगवान शिव के अनेक शिवालय है. आज हम आपको ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जहां बाबा भोलेनाथ को जगत कल्याण के लिए शेर और मां पार्वती को गाय का रूप धारण करना पड़ा था. इसी कारण इस नगरी का नाम ही भगवान शिव के नाम पर पड़ गया.

भगवान शिव को काफी पसंद थी ये नगरी.


जी हां हम बात कर रहे हैं भगवान बागनाथ की धरती कहे जाने वाले बागेश्वर की. शैलराज हिमालय की गोद और गोमती, सरयू नदी के संगम पर स्थित बागनाथ मंदिर धर्म के साथ पुरातत्व के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण है. जो ऋषि मार्केंडेय की तपोभूमि भी मानी जाती है. भगवान शिव के बाघ रूप में यहां निवास करने से इस नगरी को व्याघ्रेश्वर नाम से भी जाना जाता है. जो बाद में बागेश्वर नाम से जाने जाना लगा.

मानस खंड के अनुसार जगह को भगवान शिव के गण चंडीश ने शिवजी की इच्छा अनुसार बसाया था. जो भगवान शिव को काफी पसंद थी. पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार मुनि वशिष्ठ अपने कठोर तपबल से ब्रह्मा के कमंडल से निकली मां सरयू को ला रहे थे. तब ब्रह्मकपाली के समीप मार्कण्डेय ऋषि घोर तपस्या में लीन थे. लेकिन वशिष्ट जी को ऋषि मार्कण्डेय की तपस्या भंग होने का डर सताने लगा. फिर अचानक सरयू नदी का धारा रुक गई.

जिसके बाद उन्होंने शिवजी की आराधना की. कथा के अनुसार भगवान शिव ने बाघ का और मां पार्वती ने गाय का रूप धारण कर ब्रह्मकपाली के समीप गाय पर झपटने का प्रयास किया. गाय के रंभाने से मार्कण्डेय मुनि की आंखें खुल गई. गाय को मुक्त करने के लिए जैसे ही वे दौड़े तो शेर ने भगवान शिव और गाय ने मां पार्वती का रूप धारण कर मार्कण्डेय और वशिष्ठ मुनि को अपने दिव्य दर्शन देकर वरदान दिया. माकंडेय ऋषि के आग्रह पर बाबा भोलेनाथ यहीं शिवलिंग के रूप में विराजमान हो गये. वहीं मान्यता है कि सरयू और गोमती के संगम पर अंतिम संस्कार किये जाने से मोक्ष की प्राप्ति होती है. जहां मकर संक्रांति और उत्तरायण पर मेला लगता है.


Last Updated : Mar 31, 2019, 11:26 AM IST

ABOUT THE AUTHOR

...view details