बागेश्वर:पर्यटन नगरी कौसानी की सुंदरता से हर कोई अभिभूत हो जाता है. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने कौसानी को भारत के स्विट्जरलैंड की संज्ञा भी दी. महज दो दिन के प्रवास के लिए यहां आए बापू को यहां की वादियां इतनी भायीं कि वह पूरे 14 दिन तक यहीं रुके रहे. यही पर उनके द्वारा अनासक्ति योग की प्रस्तावना भी लिखी गई.
बता दें कि आजादी के आंदोलन के दौरान वर्ष 1929 में भारत भ्रमण के बाद महात्मा गांधी ने थकान मिटाने के लिए पहाड़ों का रुख किया. जून के दूसरे पखवाड़े में वह दो दिन के प्रवास के लिए कौसानी पहुंचे. यहां के अद्वितीय सौंदर्य, हिमालय की पर्वत शृंखलाएं और शांत वादियों को देखकर उन्होंने अपना विचार बदल लिया और पूरे 14 दिन तक यहां रुके रहे.
कौसानी में बापू जहां पर रुके थे, वहां किसी ब्रिटिश नागरिक ने चाय का स्टोर बनाया था, जो उस समय खाली पड़ा था. इस स्थान से कत्यूर घाटी और हिमालय का विहंगम दृश्य दिखाई देता था. जो महात्मा गांधी को बेहद पसंद आया और उन्होंने यहीं पर बैठकर अपनी पुस्तक 'अनासक्ति योग' की प्रस्तावना लिखी. गांधी जहां रुके थे, आजादी के बाद उस स्थान को डाक बंगले में बदल दिया गया.
वर्ष 1966 में सुचेता कृपलानी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने महात्मा गांधी की यादों को लोगों तक पहुंचाने के उद्देश्य से इस स्थान को गांधी स्मारक निधि को सौंप दिया. निधि ने इसे आश्रम का रूप दिया और इसका नामकरण बापू की पुस्तक 'अनासक्ति योग' के आधार पर अनासक्ति आश्रम रखा. आश्रम में हर वर्ष देश और विदेश के सैलानी आते हैं. शोधकर्ताओं, दार्शनिकों, आध्यात्म की जानकारी रखने वाले भी आश्रम में आकर बापू के जीवन दर्शन को समझने का प्रयास करते हैं. बापू के जीवन को करीब से समझने के लिए भी आश्रम मुफीद स्थल है.