हल्द्वानीः प्रसिद्ध जागेश्वर धाम में सावन के महीने शिव की पूजा अर्चना और अनुष्ठान का विशेष महत्व माना जाता है. यहां हर साल सावन महीने में श्रावणी का मेला (Shravani fair) लगता है. यह मेला हरेला पर्व के दिन से शुरू होता है. जो पूरे एक महीने तक चलता है, लेकिन इस बार भी कोरोना महामारी के चलते मेला आयोजित नहीं हो पाएगा. हालांकि, शर्तों के अनुसार मंदिर में दर्शन आदि कराने का फैसला लिया गया है. फिलहाल, मंदिर में रोजाना 100 श्रद्धालु ही दर्शन कर पाएंगे.
बता दें कि बीते साल भी जागेश्वर धाम (Jageshwar Dham) में आयोजित होने वाला श्रावणी मेला नहीं लग पाया था. इस बार भी मेले का आयोजन नहीं होगा. हालांकि, जिला प्रशासन और मंदिर समिति के बैठक में सर्व सम्मति से इस साल भी मेले को शर्तों के अनुसार करने का फैसला लिया है, यानी इस दौरान श्रद्धालुओं को शर्तों के साथ दर्शन और पूजा की अनुमति मिलेगी.
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प्रशासन और मंदिर प्रबंधन की ओर से लिए गए निर्णयों के अनुसार आरतोला और सांस्कृतिक मंच जागेश्वर के पास बैरियर लगाए जाएंगे, जहां से श्रद्धालुओं को पास जारी किए जाएंगे. बिना पास के कोई भी व्यक्ति मंदिर में प्रवेश नहीं कर पाएगा. मंदिर के दर्शन सुबह साढ़े छह बजे से शाम छह बजे तक ही हो सकेंगे. अग्रिम बुकिंग के आधार पर रोजाना अधिकतम 100 लोग पूजा कर पाएंगे. जबकि, बुकिंग मंदिर समिति या पुजारियों के माध्यम से एक दिन पहले कराई जा सकेगी.
पूजा कार्यक्रम में एक परिवार के केवल छह सदस्य ही प्रतिभाग कर सकेंगे. धाम में पूजा सूचीबद्ध पुजारी ही रहेंगे. बाहरी पुजारियों को धाम में पूजा की अनुमति नहीं होगी. प्रशासन ने भंडारा किए जाने और मंदिर के गर्भ गृहों में जाने को भी प्रतिबंधित किया गया है. मंदिर दर्शन के लिए श्रद्धालुओं को केवल दस मिनट का समय दिया जाएगा.
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वहीं, पूजा-अर्चना जागेश्वर मंदिर समूह के अलावा दंडेश्वर मंदिर भी आयोजित कराए जा सकेंगे. उत्तराखंड के बाहरी क्षेत्रों से जागेश्वर धाम आने वाले श्रद्धालुओं को अनिवार्य रूप से RT-PCR निगेटिव रिपोर्ट लानी होगी. इसके अलावा बाहरी राज्यों से आने वाले श्रद्धालुओं को भी कोविड टेस्ट दिखाना होगा. कोरोना के मद्देनजर जिला प्रशासन और मंदिर प्रशासन ने यह निर्णय लिया है.
बता दें कि, अल्मोड़ा जिला मुख्यालय से करीब 45 किलोमीटर दूर नैसर्गिक सौंदर्य से परिपूर्ण देवदार के घने जंगलों के बीच जागेश्वर धाम स्थित है. जहां भगवान शिव महामृत्युंजय के रूप में विराजमान है. जागेश्वर धाम में 125 मंदिर समूह विराजमान हैं, जो ऐतिहासिक एवं पुरातत्व दृष्टि से महत्वपूर्ण मंदिर है. इस मंदिर समूह का निर्माण 7-14 सदी के विभिन्न कालखंडों में हुआ माना जाता है.
पुराणों और मान्यताओं के अनुसार जागेश्वर धाम भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है. सप्तर्षियों की ओर से शिव को श्राप देने के बाद यहीं से भगवान शिव की पूजा लिंग रूप में शुरू हुई. सावन महीने में शिव की पूजा-अर्चना और अनुष्ठान का विशेष महत्व माना जाता है. सावन के महीने में जागेश्वर मंदिर में पार्थिव पूजा का विशेष महत्व माना है. जिस कारण हर साल सैकड़ों लोग यहां पार्थिव पूजा करवाने पहुचते हैं.