अल्मोड़ा: उत्तराखंड की सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा को अष्ट भैरव, नौ दुर्गा की नगरी भी कहा जाता है. इन नौ दुर्गाओं में मां नंदादेवी का खास स्थान है. मां नंदा का अल्मोड़ा में भव्य मंदिर है. मां नंदा को पार्वती का रूप माना जाता है. अल्मोड़ा नगर में स्थित मां नंदादेवी का मंदिर सैकड़ों साल पुराना है. इस मंदिर की स्थापना चंद वंश के शासकों ने की थी. चंद शासक नंदा देवी को कुल देवी के रूप में पूजते थे. नवरात्रों में इस मंदिर में नौ दुर्गाओं की पूजा की जाती है. इस दौरान यहां श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है. भक्त बड़ी संख्या में मनौतियां लेकर यहां पहुंचते हैं.
उत्तराखंड में मां नंदा को बहन, मां, बेटी के रूप में पूजा जाता है. सिद्धपीठ नंदादेवी मंदिर देश ही नहीं विदेशी सैलानियों की आस्था का भी केंद्र है. मां नंदा को पार्वती का रूप माना जाता है. मां नंदा की सात बहनें मानी जाती हैं. उत्तराखंड में नंदा देवी पर्वत शिखर, रूपकुंड एवं हेमकुंड नंदा देवी के प्रमुख पवित्र स्थलों में एक हैं. माना जाता है कि नंदा ने ससुराल जाते समय रूप कुंड में पानी पिया था. प्राचीन धार्मिक ग्रंथों में शिव की पत्नी पार्वती को ही मां नंदा माना गया है.
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पौराणिक ग्रंथों की बात करें तो इनमें देवी के अनेक स्वरूप गिनाए गए हैं. इनमें शैलपुत्री नंदा को योग माया एवं शक्ति स्वरूपा का नाम दिया गया है. कुमाऊं में मां नंदा की पूजा चंद शासकों के जमाने से की जाती है. इतिहासकारों के मुताबिक 1670 में कुमाऊं के चंद शासक राजा बाज बहादुर चंद बधाणकोट किले से मां नंदा देवी की स्वर्ण प्रतिमा लाए. उसे यहां मल्ला महल (वर्तमान का कलेक्ट्रेट परिसर अल्मोड़ा) में स्थापित किया. तब से उन्होंने मां नंदा का कुलदेवी के रूप में पूजन शुरू किया. बाद में कुमाऊं के तत्कालीन कमिश्नर ट्रेल ने नंदा की प्रतिमा को मल्ला महल से हटाकर दीप चंदेश्वर मंदिर यानी वर्तमान नंदादेवी मंदिर में स्थापित करवाया.
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इतिहासकारों के अनुसार कहा जाता है कि चंद राजाओं के शासन काल में इन मंदिरों को बनाया गया था. तत्कालीन राजा उद्योतचंद्र ने अल्मोड़ा में इस मंदिर का निर्माण किया था. वर्तमान में नंदा देवी परिसर में तीन देवालय हैं. इनमें पार्वतेश्वर और उद्योतचंद्रेश्वर देवालय काफी प्राचीन देवालयों में हैं. दीपचंद्रेश्वर देवालय का निर्माण राजा दीप चंद ने बाद में किया था. इसमें वर्तमान में नंदा देवी का मंदिर है.
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इस परिसर को उस समय दीपचंद्रेश्वर मंदिर के नाम से ही जाना जाता था. उसके बाद गोरखा शासन काल में इस परिसर को मां नंदा देवी मंदिर के नाम से जाना जाने लगा. वर्तमान में इसी परिसर में नंदा देवी का मेला लगता है. यहां हर वर्ष भाद्रपद माह में नंदादेवी का भव्य मेला आयोजित किया जाता है. पंचमी तिथि से प्रारंभ नंदा देवी मेला दशमी के दिन डोला यात्रा के साथ संपन्न हो जाता है. इस अवसर पर नंदा-सुनंदा की दो भव्य देवी प्रतिमाएं बनायी जाती हैं. यह प्रतिमाएं कदली वृक्ष से निर्मित की जाती हैं. नंदा की प्रतिमा का स्वरूप उत्तराखंड की सबसे ऊंची चोटी नंदा देवी की तरह बनाया जाता है.