अल्मोड़ा:कुली बेगार आंदोलन के शताब्दी वर्ष को लेकर एसएसजे परिसर के इतिहास विभाग में कुमाऊं के आंदोलनकारियों को याद करते हुए संगोष्ठी का आयोजन किया. इसमें स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान कुमाऊं में हुए समाज सुधार आंदोलन पर विस्तार से चर्चा की गयी. कार्यक्रम के दौरान आंदोलन में बद्रीदत्त पांडे, हरगोविंद पंत जैसे तमाम स्वतंत्रता आंदोलनकारियों को याद किया गया.
सोबन सिंह जीना परिसर के इतिहास विभाग में आयोजित इस संगोष्ठी में बद्रीदत्त पांडे के प्रयासों द्वारा 1921 में खत्म हुई, कुली बेगार प्रथा पर इतिहास के विशेषज्ञों ने विस्तार से चर्चा की. सोबन सिंह जीना विश्वविद्यालय के कुलपति नरेंद्र सिंह भंडारी ने कहा कि आजादी के आंदोलनों के दौरान कुमाऊं के आंदोलनकारियों ने अनेक सामाज सुधारक आंदोलन चलाए. इसमें से एक कुली बेगार आंदोलन था. इस आंदोलन को बद्रीदत्त पांडे के नेतृत्व में चलाया गया था.
क्या था कुली बेगार आंदोलन
कुली बेगार आंदोलन 1921 में उत्तराखंड के बागेश्वर नगर में आम जनता द्वारा अहिंसक आंदोलन था. कुली बेगार के तहत ब्रिटिश अधिकारी आम आदमी से कुली का काम बिना पारिश्रमिक दिए बंधुवा मजदूर की तरह कराते थे. उस समय विभिन्न गांवों के प्रधानों का यह दायित्व होता था, कि वह एक निश्चित अवधि के लिए, निश्चित संख्या में कुली वर्ग को उपलब्ध कराएगा. इस काम के लिए प्रधान के पास बाकायदा एक रजिस्टर भी होता था, जिसमें सभी गांवों के लोगों के नाम लिखे होते थे. सभी को बारी-बारी यह काम करने के लिये बाध्य किया जाता था.