देहरादून/अल्मोड़ा: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को पराक्रम दिवस के अवसर पर अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के 21 सबसे बड़े द्वीपों का नामकरण परमवीर चक्र विजेताओं के नाम पर किया. इस कार्यक्रम में वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से हिस्सा लेते हुए प्रधानमंत्री ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस द्वीप पर बनाए जाने वाले नेताजी राष्ट्रीय स्मारक के प्रतिरूप का भी उद्घाटन किया. इस दौरान पीएम मोदी ने कुमाऊं रेजीमेंट के जांबाज योद्धा मेजर सोमनाथ शर्मा और मेजर शैतान सिंह के नाम पर भी एक द्वीप का नामकरण किया.
अंडमान के एक द्वीप का नाम कुमाऊं रेजीमेंट के योद्धा और परमवीर चक्र विजेता मेजर सोमनाथ शर्मा के नाम पर भी रखा गया है. कुमाऊं रेजीमेंट की बहादुरी के किस्से जब-जब कहे जाएंगे, उनमें मेजर सोमनाथ शर्मा का नाम जरूर आएगा. उनके हौसले और जज्बे ने पाक घुसपैठियों के नापाक इरादों को पस्त कर दिया था.
मेजर सोमनाथ शर्मा के नाम पर अंडमान के द्वीप का नामकरण. 'दुश्मन हमसे केवल पचास गज की दूरी पर है. हमारी गिनती बहुत कम रह गई है. हम भयंकर गोली बारी का सामना कर रहे हैं फिर भी, मैं एक इंच भी पीछे नहीं हटूंगा और अपनी आखिरी गोली और आखिरी सैनिक तक डटा रहूंगा...'
भारत के पहले परमवीर चक्र विजेता मेजर सोमनाथ शर्मा ने ये शब्द बैटलफील्ड में उस वक्त कहे थे जब वो और उनकी छोटी सी टुकड़ी आधुनिक मोर्टार और ऑटोमेटिक मशीनगन से लैस पाकिस्तान के 700 सैनिकों से घिर गई थी. उस समय मेजर सोमनाथ शर्मा भारतीय सेना की कुमाऊं रेजिमेंट की चौथी बटालियन की डेल्टा कंपनी के कंपनी-कमांडर थे.
1947 में भारत पाकिस्तान के बीच हुए पहले संघर्ष के दौरान मेजर सोमनाथ मध्य कश्मीर के बडगाम जिले में पेट्रोलिंग कंपनी में तैनात थे. इसी दौरान बडगाम में अचानक 700 पाकिस्तानी सैनिकों ने हमला कर दिया. इन सभी सैनिकों के पास भारी मोर्टार और ऑटोमेटिक मशीन गन मौजूद थीं. इसके ठीक उलट मेजर सोमनाथ की कंपनी में कुछ ही सैनिक थे और न ही पाकिस्तानियों की तरह आधुनिक हथियार. ऐसे में उनके पास सिर्फ हौसला था और सामने खड़ी मौत की आंखों में आंखें डालने का साहस था. इसके अलावा उनके पास कुछ नहीं था.
रेजांगला के हीरो मेजर शैतान सिंह के नाम पर द्वीप का नामकरण. ये भी पढ़ें: जानें पहले 'परमवीर' मेजर सोमनाथ को, अकेले सैकड़ों पाकिस्तानी सैनिकों पर पड़े थे भारी पाकिस्तान के हमले में भारतीय बटालियन के सैनिकों की जान एक-एक करे जा रही थी. देखते ही देखते मेजर सोमनाथ के सामने अपने सैनिकों की लाशें जमा हो गईं. ऐसे में मेजर सोमनाथ ने खुद आगे आकर दुश्मन से मोर्चा लेना शुरू कर दिया. आपको जानकर हैरानी होगी कि जिस वक्त पाकिस्तानी सेना ने बडगाम में हमला किया था उस समय मेजर शर्मा एक अस्पताल में भर्ती थे और अपने फ्रैक्चर्ड हाथ का इलाज करवा रहे थे. उनके हाथ में प्लास्टर बंधा था. लेकिन जैसे ही उन्हें हमले का पता चला, उन्होंने जाने के लिए जिद पकड़ ली.
सेना के आला अफसरों की लाख कोशिशों के बावजूद मेजर शर्मा नहीं माने और बटालियन में शामिल हो गए. इस युद्ध के दौरान पाकिस्तान लगातार भारतीय सैनिकों पर गोलियां, बम और मोर्टार दाग रहा था. भारतीय सैनिक शहीद होते जा रहे थे. लेकिन सोमनाथ युद्ध में कूद गए.
उनका बायां हाथ चोट खाया हुआ था और उस पर प्लास्टर बंधा था. इसके बावजूद सोमनाथ खुद मैग्जीन में गोलियां भरकर सैनिकों को देते जा रहे थे. तभी एक मोर्टार का निशाना ठीक वहीं पर लगा, जहां सोमनाथ मौजूद थे और इस हमले में भारत के वीर मेजर सोमनाथ शर्मा शहीद हो गए. मेजर सोमनाथ शर्मा को भारत के पहले परमवीर चक्र विजेता होने का गौरव प्राप्त है.
रानीखेत में उनके नाम पर है सोमनाथ मैदान: परमवीर चक्र प्राप्त विजेता सोमनाथ शर्मा के नाम से रानीखेत में कुमाऊं रेजीमेंट केंद्र ने सैन्य मैदान का नाम सोमनाथ रखा है. यहां म्यूजियम में उनके युद्ध के समय की कई सामग्रियां तथा उनकी यादों से जुड़ी कई चीजें उपलब्ध हैं.
मेजर शैतान सिंह: ये कहानी है रेजांगला की लड़ाई और मेजर शैतान सिंह की. साल था 1962. रेजांगला के चुसुल सेक्टर में कुमाऊं रेजीमेंट की 13वीं बटालियन के 120 जवान तैनात थे. कुमाऊं रेजीमेंट के चार्ली कंपनी की कमान मेजर शैतान सिंह के हाथ में थी और सभी जवान तीन पलटन में अपनी-अपनी पोजिशन पर थे. भारत-चीन युद्ध के दौरान ये इकलौता इलाका था, जो भारत के कब्जे में था. LAC पर काफी तनाव था और सर्द मौसम की मार अलग पड़ रही थी और जवान मुस्तैदी से सीमा की सुरक्षा में खड़े थे.
रेजांगला की लड़ाई में मेजर शैतान सिंह के साथी सूबेदार रामचंद्र यादव बताते हैं कि 18 नवंबर की सुबह करीब साढ़े तीन बजे भारतीय सैनिकों ने चीन की तरफ से रोशनी का कारवां आते देखा. धीरे-धीरे रोशनी उनके नजदीक आ रही थी. फायरिंग रेंज में आते ही जवानों ने गोलियां दागनी शुरू कर दी. लेकिन, कुछ देर बाद दुश्मन और नजदीक आया तो उसकी चाल का पता चला. दरअसल, चीनी टुकड़ी की पहली कतार में याक और घोड़े थे, जिनके गले में लालटेन लटकी थीं. सारी गोलियां उन्हें छलनी कर गईं, जबकि चीनी सैनिकों को एक भी बुलेट नहीं लगी.
चीनियों को भारतीय जवानों के पास कम असलहा बारूद होने की बात पता थी. इसलिए उनकी कोशिश थी कि भारत के हथियार खत्म कर दिए जाएं, ताकि आसानी से कब्जा हो सके. लेकिन दुश्मन को भारत मां के लिए कुर्बान होने वाले सैनिकों के जोश का अंदाजा बिल्कुल नहीं था. सुबह करीब 4 बजे सामने से फायर आए. 8-10 चीनी सिपाही एक पलटन के सामने आए तो हमारे जवानों ने 4-5 चीनियों को मार गिराया, बाकी भाग गए.
मेजर ने पीछे हटने से किया इनकार: उधर, 7 पलटन के एक जवान ने संदेश भेजा कि करीब 400 चीनी उनकी पोस्ट की तरफ आ रहे हैं. तभी 8 पलटन ने भी मेसेज भेजा कि रिज की तरफ से करीब 800 चीनी सैनिक आ रहे हैं. मेजर शैतान सिंह को ब्रिगेड से आदेश मिल चुका था कि युद्ध करें या चाहें तो चौकी छोड़कर लौट सकते हैं. पर उन्होंने पीछे हटने से मना कर दिया. मतलब किसी भी तरह की सैन्य मदद की गुंजाइश नहीं थी. इसके बाद मेजर ने अपने सैनिकों से कहा अगर कोई वापस जाना चाहता है तो जा सकते हैं. लेकिन, सारे जवान अपने मेजर के साथ थे.
इसी बीच मेजर शैतान सिंह की बांह में शेल का टुकड़ा लगा. एक सिपाही ने उनके हाथ में पट्टी बांधी और आराम करने के लिए कहा. पर घायल मेजर ने मशीन गन मंगाई और उसके ट्रिगर को रस्सी से अपने पैर पर बंधवा लिया. उन्होंने रस्सी की मदद से पैर से फायरिंग शुरू कर दी. तभी एक गोली मेजर के पेट पर लगी. उनका बहुत खून बह गया था और बार-बार उनकी आंखों के सामने अंधेरा छा रहा था. लेकिन जब तक उनके शरीर में खून का एक भी कतरा था, तब तक वो दुश्मन को कहां बख्शने वाले थे. वो टूटती सांसों के साथ दुश्मन पर निशाना साधते रहे और सूबेदार रामचंद्र यादव को नीचे बटालियन के पास जाने को कहा, ताकि वो उन्हें बता सके कि हम कितनी वीरता से लड़े. मगर सूबेदार अपने मेजर को चीनियों के चंगुल में नहीं आने देना चाहते थे, इसलिए उन्होंने शैतान सिंह को अपनी पीठ पर बांधा और बर्फ में नीचे की ओर लुढ़क गए. कुछ नीचे आकर उन्हें एक पत्थर के सहारे लेटा दिया.
करीब सवा आठ बजे मेजर ने आखिरी सांस ली. सूबेदार रामचंद्र ने हाथ से ही बर्फ हटाकर गड्ढा किया और मेजर की देह को वहां डालकर उसे बर्फ से ढक दिया. कुछ समय बाद युद्ध खत्म हुआ तो इस इलाके को नो मैन्स लैंड घोषित किया गया. एक शव के पैर में रस्सी से मशीन गन बंधी थी और ये पार्थिव शरीर था मेजर शैतान सिंह का. वहीं, मेजर जिनके नेतृत्व में 120 लड़ाकों ने 1300 चीनी सैनिकों को मार गिराया. रेजांगला में हुई इस लड़ाई में 114 भारतीय जवान शहीद हुए और 5 सैनिकों को युद्धबंदी बना लिया गया.
मगर जिस बहादुरी से ये जवान देश के लिए कुर्बान हुए उसे देखकर चीन ने भी माना कि उसका सबसे ज्यादा नुकसान रेजांगला में हुआ और उसकी टुकड़ी यहां एक इंच भी आगे नहीं बढ़ पाई. युद्धभूमि में अदम्य साहस दिखाने के लिए मेजर शैतान सिंह को मरणोपरांत परमवीर चक्र दिया गया, जबकि इस टुकड़ी के 5 जवानों को वीर चक्र और 4 को सेना मेडल मिला.