अल्मोड़ा: ऐतिहासिक नगरी अल्मोड़ा ने देश को कई विभूतियां दी हैं, जिनमें भारत रत्न गोविंद बल्लभ पंत और कदमों की ताल से नृत्य को आसमान पर पहुंचाने वाले नृत्य सम्राट उदय शंकर शामिल हैं. उनकी शोहरत और बुलंदियों का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने उस दौर में भी अपने अभिनय से नृत्य को आसमान में पहुंचा दिया. लेकिन आज हम आपको एक ऐसी हस्ती से रूबरू कराने जा रहे हैं, वो अल्मोड़ा में जन्मी और आगे चलकर पाकिस्तान की पहली महिला बनीं. उन्हें पाकिस्तान की मादर-ए-वतन के खिताब से भी नवाजा गया था. ये थीं शीला आइरीन पंत.
ब्राह्मण परिवार ने अपनाया ईसाई धर्म
जब आइरीन पंत के दादा तारादत्त पंत ने ईसाई धर्म अपनाया था तो पूरे कुमाऊं क्षेत्र में ये बात आग की तरह फैल गई थी. लोगों में ये बात घर कर गई कि कैसे 'ऊंची धोती वाला ब्राह्मण' परिवार ईसाई बन गया. बताया जाता है कि बिरादरी में ये बात ऐसे घर कर गई कि समुदाय के लोगों ने उनका 'घटाश्राद्ध' तक कर दिया था. इसका तात्पर्य ये है कि अब उन लोगों का इस परिवार से कोई नाता नहीं रहा.
पढ़ें-उत्तराखंड की बेटी बनी MCD में साउथ जोन की डिप्टी चेयरमैन, लोगों का किया धन्यवाद
आइरीन पंत का जन्म 1905 में अल्मोड़ा के डेनियल पंत के घर में हुआ था. आइरीन पंत के दादा ने साल 1887 में ईसाई धर्म अपना लिया था. उससे पहले ये परिवार उच्च ब्राह्मण परिवार था. लेकिन कुमाऊं में उस दौरे में किसी ब्राह्मण परिवार का इस तरह से धर्म बदलना लोगों के समझ से परे था. कुछ लोग दबी जुबान से इसकी मुखालफत करते रहे. आइरीन पंत का शुरुआती बचपन अल्मोड़ा में ही गुजरा, जिसके बाद वह लखनऊ चली गईं और लखनऊ के लालबाग स्कूल से पढ़ाई करने के बाद उन्होंने लखनऊ के मशहूर आईटी कॉलेज से पढ़ाई की.
अल्मोड़ा में सहेजी हुई हैं यादें
अल्मोड़ा के मैथोडिस्ट चर्च के ठीक नीचे स्थित आइरीन पंत का पुस्तैनी मकान आज भी उनकी यादों को सहेजे हुए है. अब इस मकान में उनके भाई नॉर्मन पंत की बहू मीरा पंत और उनका पोता राहुल पंत रहते हैं. आइरीन की यादों को साझा करते हुये आइरीन के पोते राहुल पंत कहते हैं कि उनकी यादें आज भी अल्मोड़ा में हैं. हालांकि, शादी के बाद वो एक बार भी अल्मोड़ा नहीं आ सकीं, लेकिन वो अपने भाई नॉर्मन पंत को चिठ्ठी लिखा करती थीं.
वहीं, मीरा पंत बताती हैं कि आइरीन बहुत की साहसी महिला थीं. जब वह लखनऊ के आईटी कॉलेज से पढ़ाई कर रही थीं, तो उस समय बिहार में बाढ़ आ गई. बाढ़ पीड़ितों की मदद के लिए वह नाटकों और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन कर उनके लिए फंड जुटाने का काम कर रही थीं. मीरा पंत ने बताया कि फंड जुटाने के दौरान ही उनकी मुलाकात लियाकत अली खान से हुई थी.
पढ़ें-नेटफ्लिक्स पर रिलीज होने जा रही फिल्म 'बुलबुल' में नजर आएगी उत्तराखंड की बेटी तृप्ति डिमरी
ऐसी हुई थी लियाकत अली और आइरीन की पहली मुलाकात
दरअसल, सांस्कृतिक कार्यक्रम के लिए धन जमा करने के दौरान आयरीन पंत को टिकट बेचने की जिम्मेदारी दी गई थी. कार्यक्रम के लिए धन जुटाने के लिए आयरीन पंत टिकट बेचने के लिए लखनऊ विधानसभा गईं, जहां उनकी मुलाकात लियाकत अली खां से हुई. पहली बार में लियाकत टीकट खरीदने को लेकर कश्मकश में थे लेकिन कुछ देर आग्रह करने पर मान गए. आइरीन ने उनसे कम से कम 2 टिकट खरीदने को कहा. लियाकत ने कहा कि अपने साथ किसी के लाने के लिए वह किसी को नहीं जानते तब आइरीन ने कहा कि अगर आपके साथ बैठने लिए कोई नहीं होगा तो वो उनके साथ बैठेंगी. बस वहीं से दोनों की मुलाकातों का दौर शुरू हो गया. यही लियाकत अली पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री बने.
आइरीन डेढ़ साल के लिए इंद्रप्रस्थ कॉलेज, दिल्ली में प्रोफेसर के तौर पर भी कार्यरत रहीं. इसी दौरान एक मौका ऐसा आया जिसने उन्हें लियाकत खान के साथ फिर से संपर्क में ला दिया. दरअसल, आइरीन को ये सूचना मिली कि लियाकत अली को यूपी विधानसभा का उपाध्यक्ष चुना गया था. उनके करियर में इस प्रगति से प्रसन्न होकर आइरीन ने तुरंत उन्हें बधाई संदेश लिखा. आइरीन का संदेश पाकर लियाकत ने उन्हें जवाब भी भेजा. उन्होंने आश्चर्य जताया कि आइरीन दिल्ली में थीं, क्योंकि वो उनके गृह नगर करनाल के करीब था. उन्होंने उम्मीद जताई कि आइरीन उनके साथ दिल्ली के कनॉट प्लेस वेंगर्स रेस्तरां में चाय पिएंगी.
दिल्ली के सबसे महंगे होटल में हुई थी शादी
लियाकत अली पहले से ही शादीशुदा थे और उनका एक बेटा भी था. उन्होंने अपनी चचेरी बहन जहांआरा बेगम से शादी की थी. लेकिन आइरीन की शख्सियत ऐसी थी कि उससे प्रभावित होकर 16 अप्रैल 1933 को लियाकत अली ने आइरीन से निकाह कर लिया. उनकी शादी दिल्ली के सिविल लाइन स्थित मशहूर 'मेंडेस होटल' में हुई थी. इस होटल का मूल नाम 'मेट्रोपोलिटन होटल' था, जिसे मेंडेन बंधु 1894 से चला रहे थे. वर्ष 1903 में इसे 'मेंडेस होटल' नाम दिया गया. यह होटल उस वक्त दिल्ली का इकलौता सबसे महंगा होटल हुआ करता था. वर्ष 1994 में इसे हैरिटेज होटल का दर्जा दिया गया.
शादी के बाद आयरीन ने इस्लाम धर्म कबूल कर लिया और उनका नया नाम गुल-ए-राना रखा गया. पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री लियाकत अली खां से शादी के बाद आइरीन कभी फिर अल्मोड़ा लौट कर नहीं आई.
महिलाओं के अधिकार के लिए संघर्ष
बेगम लियाकत अली खान की आधी जिंदगी भारत में गुजरी और आधी जिंदगी पाकिस्तान में. वह बचपन से खुले विचारों वाली महिला थी. पाकिस्तान जाने के बाद उन्होंने महिलाओं के अधिकारों और उनके सशक्तीकरण के लिए लड़ाई लड़ी. उन्होंने साथ ही वहां मौजूद कट्टरपंथियों के खिलाफ भी आवाज उठाई. साल 1990 में आइरीन का निधन हुआ.
कई खिताबों से नवाजी गईं आइरीन
- आइरीन को पाकिस्तान में मादर-ए-वतन का खिताब मिला.
- जुल्फिकार अली भुट्टो ने उन्हें काबिना मंत्री बनाया और वह सिंध की गर्वनर भी बनीं.
- कराची यूनिवर्सिटी की पहली महिला वाइस चांसलर भी बनी.
- इसके अलावा वह नीदरलैंड, इटली, ट्यूनिशिया में पाकिस्तान की राजदूत रहीं.
- उन्हें 1978 में संयुक्त राष्ट्र ने ह्यूमन राइट्स के लिए सम्मानित किया.
लियाकत अली की हत्या
वहीं, 1947 में हिंदुस्तान से अलग होने के बाद पाकिस्तान बना और लियाकत अली नये देश के पहले प्रधानमंत्री बने. वहीं राना पाकिस्तान की ‘फर्स्ट लेडी’ बनीं. इसके साथ ही लियाकत अली खां ने उन्हें अपने मंत्रिमंडल में अल्पसंख्यक और महिला मंत्री के तौर पर जगह दी. सबकुछ ठीक-ठाक चल रहा था फिर चार साल में लियाकत अली खां की रावलपिंडी में सभा को संबोधित करने के दौरान हत्या कर दी गई. इस घटना के बाद लोगों ने सोचा था कि राना पाकिस्तान को छोड़कर भारत जाने का फैसला लेंगी लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया और अंतिम सांस तक पाकिस्तान में ही रहीं.