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जंगली जानवरों से बचाव के लिये बनाई स्पेशल 'कबाड़' बंदूक, जानें खासियत - अल्मोड़ा किसान न्यूज

अल्मोड़ा में जंगली जानवरों का आतंक बढ़ता जा रहा है. ऐसे में स्थानीय किसान रविंद्र तिवारी ने जंगली जानवरों को भागने के लिए एक बंदूक बनाई है. इस बंदूक की खासियत यह है कि इससे जानवरों को कोई नुकसान नहीं पहुंचेगा और वे आसानी से भाग जाएंगे.

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किसान ने बनाई ये अनोखी बंदूक

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Published : Sep 22, 2020, 4:45 PM IST

Updated : Sep 22, 2020, 8:00 PM IST

अल्मोड़ा: शहर से लेकर ग्रामीण इलाकों तक बंदरों का आतंक देखने को मिल रहा है. जहां शहरी क्षेत्र में बंदर लोगों को घायल कर रहे हैं तो वहीं ग्रामीण इलाकों में फसलों को नुकसान पहुंचा रहे हैं. बंदरों के आतंक से निजात पाने के लिए अल्मोड़ा में एक किसान ने अलग तरह की बंदूक बनाई है. यह बंदूक बिना किसी को नुकसान पहुंचाए सिर्फ आवाज के साथ बंदर या फिर अन्य जंगली जानवरों को खदेड़ने में सक्षम है. इसकी खास बात यह है कि बंदूक कबाड़ से तैयार की गई है, जिसकी कीमत भी काफी कम है.

अल्मोड़ा में लंबे समय से बंदरों का आतंक जारी है. आलम यह है कि बंदर लोगों के घरों के अंदर तक घुस रहे हैं, जिस कारण छोटे बच्चों और लोगों का बाहर निकलना दूभर हो गया है. बात अगर जिले के ग्रामीण क्षेत्रों की करें तो वहां बंदर खेती को काफी नुकसान पहुंचा रहे हैं. इसी समस्या को देखते हुए अल्मोड़ा के शैल निवासी किसान रविंद्र तिवारी ने कबाड़ से एक बंदूक बनाई है, जो सिर्फ आवाज से जंगली जानवरों को भगाने में सक्षम है.

किसान ने बनाई अनोखी बंदूक.

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इस बंदूक की खासियत यह है कि यह आवाज के दम से जंगली जानवरों को डराने का कार्य करेंगी, जिससे किसी को कोई नुकसान नहीं पहुंचेगा. इसकी कीमत भी काफी कम है. इस बंदूक की कीमत सात सौ रुपए रखी गई है. किसान रवींद्र तिवारी ने बताया कि पहाड़ में खेती करने में सबसे बड़ी मुसीबत जंगली जानवरों की है. खासतौर पर बंदर खेती को भारी नुकसान पहुंचाते हैं. अपने खेतों को बंदरों से बचाने के लिए पहले वे गुलेल का इस्तेमाल करते थे, लेकिन उसे बंदरों को भागने में ज्यादा सफलता नहीं मिलती थी.

हालांकि बाद में उन्होंने प्लास्टिक के पाइप व अन्य वेस्ट मैटेरियल से बंदरों को भगाने के लिए बंदूक बनाई है. जिसमें कार्बेट डालने में जोर का धमाका होता है. इस आवाज से बंदर डरकर भाग जाते हैं. हालांकि बंदरों को भगाने वाली यह तकनीक इससे पहले किसानों के लिए विवेकानंद कृषि अनुसंधान संस्थान भी विकसित कर चुका है. लेकिन उसकी कीमत काफी ज्यादा होने से वह आम किसानों के पहुंच से काफी दूर रही है.

Last Updated : Sep 22, 2020, 8:00 PM IST

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