अल्मोड़ा:सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा में नवरात्र में होने वाली रामलीला की इन दिनों कई जगहों पर तैयारियां चल रही है. सदियों से चल रही अल्मोड़ा की रामलीला की एक अलग ही पहचान है. अल्मोड़ा में रामलीला भैरवी, ठुमरी, विहाग, पीलू, सहित अनेक रागों के साथ की जाती है. जिसमें जेजेवंती और राधेश्याम प्रमुख संवाद गाए जाते है. रागों में रामलीला गाना बहुत कठिन होता है. जिसके लिए यहां अभिनय करने वाले कलाकारों को 2 महीने से इस रामलीला की तालिम दी जाती है. जो इन दिनों कई जगहों में चल रही है. हालांकि, इस बार कोरोना का असर रामलीला के आयोजन पर भी पड़ा है. वहीं, आयोजकर्ताओं का कहना है कि सभी गाइडलाइन का पालन करते हुए रामलीला का आयोजन किया जाएगा.
कुमाऊं की रामलीला है ऐतिहासिक
कुमाऊं में रामलीला नाटक के मंचन की शुरुआत अठारहवीं सदी के मध्यकाल के बाद हो चुकी थी. कई जानकार बताते हैं कि कुमाऊं में पहली रामलीला 1860 में अल्मोड़ा नगर के बद्रेश्वर मंदिर में हुई थी. जिसका श्रेय तत्कालीन डिप्टी कलेक्टर स्व. देवीदत्त जोशी को जाता है. बाद में नैनीताल-1880, बागेश्वर-1890 और पिथौरागढ़-1902 में रामलीला नाटक का मंचन प्रारंभ हुआ. अल्मोड़ा नगर में 1940-41 में विख्यात नृत्य सम्राट पंडित उदय शंकर ने छाया चित्रों के माध्यम से रामलीला में नवीनता लाने का प्रयास किया. हांलाकि, पंडित उदय शंकर द्वारा प्रस्तुत रामलीला यहां की परंपरागत रामलीला से कई मायनों में भिन्न थी, लेकिन उनके छायाभिनय, उत्कृष्ट संगीत और नृत्य की छाप यहां की रामलीला पर अवश्य पड़ी. अल्मोड़ा में रामलीला का आयोजन पिछले डेढ़ सौ वर्षो से भी अधिक से चला आ रहा है. अल्मोडा में 1860 में रामलीला का आयोजन शुरू हुआ. जो लगातार अभी तक रामलीला का आयोजन किया जा रहा है.