अल्मोड़ा:आमतौर पर देशभर में होली फरवरी- मार्च यानी फाल्गुन से शुरू होती है, लेकिन कुमाऊं क्षेत्र में बैठकी-होली पौष माह के हाड़ कंपा देने वाली ठंड में शुरू हो जाती है. यह होली शास्त्रीय संगीत पर आधारित होली है. कुमाऊं में होली गायन की परंपरा ऐतिहासिक सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा से शुरू हुई, जिसके बाद कुमाऊं के अन्य जगहों पर होली गायन की परंपरा शुरू हुई.
जानिए क्या है इस होली की विशेषता:
सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा की इस बैठकी-होली का इतिहास 150 साल से भी अधिक पुराना है. पौष माह के पहले रविवार से गणपति वंदना के साथ ही बैठकी होली शुरू हो जाती है. कड़ाके की ठंड में भी होली गीतों के रसिक इस बैठकी होली गायन में देर रात्रि तक उत्साहपूर्वक भागीदारी करते हैं. इन दिनों देर रात तक अल्मोड़ा में होली की महफिलें सज रही है. यह होली पूरे तीन महीनों तक चलेगी.
इसके साथ ही इस होली की एक मुख्य विशेषता यह भी है कि यह शास्त्रीय रागों पर आधारित होती है वहीं यह होली शिवरात्रि तक बिना रंगों के सिर्फ संगीत के साथ मनाई जाती है. सायं होते ही संगीत प्रेमियों द्वारा अपने अपने घरों में शास्त्रीय रागों पर आधारित बैठकी-होली का गायन शुरू हो जाता है. इस होली की एक खास बात यह है कि इस होली में न केवल हिन्दु धर्म के लोग हिस्सेदारी करते हैं, बल्कि मुस्लिम समुदाय के लोग भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं.
क्या है इस होली का इतिहास:
जानकारों के अनुसार कुमाऊं में होली गीतों के गायन की परम्परा सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा से 1860 में शुरू हुई थी. इस होली में गायी जाने वाली बंदिशे विभिन्न रागों पर आधारित होती हैं, जो समय के अनुसार गाये जाते हैं. बैठकी-होली में गाये जाने वाले गानों का एक तरीका होता है जो कि राग काफी, जंगला काफी, खमाज, देश, विहाग, जैजेवन्ती, जोगिया आदि रागों में होली के पद गाये जाते हैं. होली रसिक बताते है कि अब कुछ नये रागों पर भी होली के पद गाये जाने की परम्परा नई पीढ़ी ने शुरू कर दी है.