अल्मोड़ा: गिरासू भवन, डॉक्टर विहीन अस्पताल, परिसर में बिजली नहीं, पेयजल आपूर्ति की कमी... ये हालात हैं सोमेश्वर के राजकीय एलोपैथिक अस्पताल भैसड़गांव के अस्पताल की. दीवार एक ओर गिरने को है तो दूसरी ओर मनसा नदी का कटाव अस्पताल तक पहुंच गया है, जिससे भवन के ढहने का खतरा बना हुआ है. पिछले 10 सालों से अस्पताल की खिड़कियां टूटीं पड़ी हैं और अस्पताल में एक भी डॉक्टर तैनात नहीं है. ये अस्पताल फिलहाल महज एक फार्मासिस्ट के भरोसे चल रहा है.
राजकीय एलोपैथिक स्वास्थ्य केंद्र भैंसड़गांव बिना डॉक्टर के चल रहे राजकीय एलोपैथिक अस्पताल भैंसड़गांव में मनसा घाटी के रौलकुड़ी आगर, भूलगांव, खर्कवालगांव, नाकोट, मलड़गांव, फल्याटी, भैसड़गांव, डिगरा, चौड़ा, बनौड़ा, भनार, सतरासी-अरड़िया, महरागांव, ढुमुड़गांव और बैगनियां समेत करीब 18 गांव के ग्रामीण इसी अस्पताल के भरोसे हैं. लेकिन, इस अस्पताल के हालात 'कोमा' में पहुंच चुका है. फिलहाल इस अस्पताल को ऐसे 'डॉक्टर' की जरूरत है, जो इसकी बदहाली का 'इलाज' कर सके.
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6 बेड के इस अस्पताल की लंबे समय से देख रेख नहीं हुई है, जिस वजह से यहां के पानी के टैंक तक गायब हैं. इसके अलावा भवन निर्माण के 25 सालों से यहां रंग-रोगन भी नहीं हुआ है. जैसे ही कोई मरीज इस गिरासू भवन में इलाज के लिए पहुंचता है तो उसे सीधे हायर सेंटर रेफर कर दिया जाता है. अस्पताल के चारों तरफ उगी झाड़ियां, टूटी फूटी खिड़कियां इन सबकी वजह से ये अस्पताल किसी भूत बंगले से कम नहीं लगता.
स्थानीय लोगों का कहना है कि मनसा घाटी के ग्रामीणों की लगातार उपेक्षा हो रही है. चिकित्सा सुविधा के नाम पर 6 बेड का अस्पताल तो है, लेकिन बिना डॉक्टर और अन्य जरूरी सुविधाओं के इस लाखों के अस्पताल का क्या काम. लोगों का कहना है कि अस्पताल में चिकित्सक की नियुक्ति नहीं की गई तो क्षेत्रवासी आंदोलन करेंगे. वहीं, मुख्य चिकित्सा अधिकारी अल्मोड़ा डॉ. विनीता शाह ने कहा कि भैंसड़गांव अस्पताल में डॉक्टर की नियुक्ति का प्रयास किया जा रहा है. जीर्ण भवन का विभागीय अभियन्ता से आंकलन कराया जाएगा. मौके का मुआयना करने के बाद परिसर को लेकर कोई ठोस फैसला लिया जाएगा.