अल्मोड़ा:कुमाऊं में सबसे पहले रामलीला सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा से शुरू हुई थी. जो गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित रामचरित मानस पर आधारित होती है. रामलीला का 159 साल से सफल मंचन हो रहा है. वहीं, रामलीला में अल्मोड़ा के मुहल्लों में बनाए जाने वाले रावण परिवार के विशालकाय पुतले लोगों के आकर्षण का केन्द्र रहते हैं. जहां रावण परिवार के लगभग दो दर्जन से अधिक पुतलों को स्थानीय कलाकारों द्वारा बनाया जाता है. जो सौहार्द का प्रतीक भी है. माना जाता है कि अल्मोड़ा में 1865 के दशहरे में सबसे पहले रावण का पुतला बना था.
सांस्कृतिक नगरी में दशहरा पर हिन्दू- मुस्लिम दोनों समुदाय के लोग बढ़-चढ़ के हिस्सा लेते हैं. जो सौहार्द का प्रतीक भी है. कुमाऊं की पहली रामलीला 1860 में अल्मोड़ा नगर के बद्रेश्वर मंदिर में हुई थी. इस परंपरा के निर्वहन को 159 साल हो गए हैं. जिसका श्रेय तत्कालीन डिप्टी कलेक्टर स्व. देवीदत्त जोशी को जाता है. वहीं अल्मोड़ा के मुहल्लों में बनाए जाने वाले रावण परिवार के विशालकाय पुतले लोगों के आकर्षण का केन्द्र रहते हैं. रामलीला में अल्मोड़ा के मुहल्लों में बनाए जाने वाले रावण परिवार के विशालकाय पुतले लोगों के आकर्षण का केन्द्र रहते हैं.
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जो स्थानीय कलाकारों द्वारा बनाए जाता है. इन पुतलों को तैयार करने के लिए स्थानीय कलाकार लंबे समय से कड़ी मेहनत करते हैं. जिनमें रावण, अहिरावण, मेघनाथ, कुम्भकर्ण, ताड़का, सुबाहु, देवान्तक सहित अन्य पुतले यहां शिखर तिराहे पर एकत्रित किए जाते हैं फिर पूरे नगर में घुमाया जाता है. अंतिम में स्थानीय स्टेडियम में देर रात्रि को इन पुतलों का दहन किया जाता है. इन दिनों नगर के अलग- अलग मुहल्लों में रावण परिवार के इन पुतलों को बनाया जा रहा है. वहीं इस दशहरा महोत्सव को सामाजिक सौहार्द का प्रतीक भी माना जाता है, क्योंकि पुतलों के निर्माण में मुस्लिम समुदाय के लोग भी सहयोग करते हैं.