चमोली:इन दिनों श्राद्ध पक्ष चल रहा है. श्राद्ध तर्पण की क्रियाओं द्वारा पितरों को संतुष्ट किया जाता है. देश के चार धामों में सर्वश्रेष्ठ बदरीनाथ धाम में स्थित है ब्रह्मकपाल. मान्यता है कि ब्रह्मकपाल में विधि पूर्वक पिंडदान करने से पितरों को नर्क लोक से मोक्ष मिल जाता है. स्कंदपुराण में इस पवित्र स्थान को गया से आठ गुना अधिक फलदाई पितृ कारक तीर्थ कहा गया है. पितृपक्ष शुरू होते ही तीर्थयात्रियों के साथ ही हजारों स्थानीय श्रद्धालु भी अपने पितरों के मोक्ष के लिए ब्रह्मकपाल पहुंच रहे हैं.
बदरीनाथ धाम में भगवान बदरीविशाल के मंदिर से 500 मीटर की दूरी पर अलकनंदा नदी के किनारे ब्रह्मकपाल स्थित है. यहां अलकनंदा नदी के किनारे एक विशाल शिला पत्थर मौजूद है. यहां एक हवन कुंड भी मौजूद है, जहां पितरों के उद्धार के लिए पिंडदान कर हवन क्रियाएं की जाती हैं.
कहते हैं कि श्राद्ध पक्ष में ब्रह्मकपाल में पितृ तर्पण करने से वंश वृद्धि होती है. बदरीनाथ के मुख्य धर्माधिकारी भुवन चंद्र उनियाल का कहना है कि यहां पिंडदान करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है. तर्पण करने से पहले तप्त कुंड में स्नान करने के बाद तीर्थ पुरोहितों के साथ ब्रह्मकपाल में पितरों का ध्यान किया जाता है. पितरों को श्रद्धा भक्ति से पूजने पर धन-धान्य में वृद्धि होती है. वहीं, पितरों का श्राप देवताओं से भी अधिक कष्टकारी होता है. ज्योतिष शास्त्र में बताया गया है कि जिनके पितृ नाराज हो जाते हैं, उनकी ग्रह दशा अच्छी भी हो तब भी उनके जीवन में हर पल परेशानी बनी रहती है.
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क्यों प्रसिद्ध है यह स्थान ?
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार सृष्टि की उत्पत्ति के समय जब ब्रह्मा जी मां सरस्वती के रूप पर मोहित हो गए थे, तो भगवान शंकर ने गुस्से में आकर ब्रह्मा जी के 5 सिरों में से एक को त्रिशूल से काटा, तो सिर त्रिशूल पर ही चिपक गया. ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए जब भोलेनाथ पृथ्वी लोक के भ्रमण पर गए, तो बदरीनाथ से करीब 500 मीटर की दूरी पर त्रिशूल से चिपका ब्रह्मा जी का सिर जमीन पर गिर गया. तभी से यह स्थान ब्रह्मकपाल के रूप में प्रसिद्ध हुआ. शिवजी भी इसी स्थान पर ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्त हुए थे. गौत्र हत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए स्वर्ग की ओर जा रहे पांडवों ने भी इसी स्थान पर अपने पितरों को तर्पण दिया था.