देहरादून: एक समय हुआ करता था जब लोगों को आपस में जोड़ने, सूचना आदान-प्रदान करने और दिलों से दिलो को जोड़ने का काम चिट्ठियां करती थी. डाकिया जो चिठ्ठियों को लेकर घर-घर जाता था, उसकी अहम भूमिका हुआ करती थी, लेकिन बीते दशकों में जिस तरह से आधुनिकरण का विकास होता जा रहा है. वैसे-वैसे डाकियों की भूमिका और लोगों को डाक विभाग की जरूरत घटती जा रही है. डिजिटलाइजेशन के इस दौर में वो चिट्ठियां कोसों दूर पीछे छूट गई हैं. आखिर क्या है मौजूदा स्थिति, किस तरह से हाईटेक हो रहा है डाक विभाग? देखिये एक खास रिपोर्ट
विश्व डाक दिवस मनाने का उदेश्य
देश के भीतर या बाहर जरूरी सूचनाओं का आदान-प्रदान और लोगों को आपस मे जोड़ने का एक बेहतरीन जरिया चिट्ठियां होती थी. लेकिन वक्त के साथ-साथ डाक विभाग का स्वरूप काफी बदल गया है. डाक घर वर्चस्व बनाये रखने को लेकर हर साल 9 अक्तूबर को ‘विश्व डाक दिवस’ मनाया जाता है. जिसका मकसद डाक के प्रति लोगों को जागरूक करना और अपने विभिन्न सेवाओ को बताना है. देश के सबसे पुराने विभागों में शामिल भारतीय डाक विभाग हर साल 9 अक्टूबर से 7 दिनों का राष्ट्रीय डाक सप्ताह मानता है. जिसका मकसद डाक विभाग की चल रही तमाम योजनाओं के प्रति जनता को जागरूक करना है.
डाक को लेकर 22 देशों में हुआ था समझौता
डाक के महत्व की वजह से 9 अक्टूबर 1874 को स्विट्जरलैंड की राजधानी बर्न में 22 देशों ने एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे. यूनिवर्सल पोस्टल यूनियन का गठन हुआ था. इसके बाद साल 1969 में टोक्यो जापान में आयोजित सम्मेलन में विश्व डाक दिवस के रूप में 9 अक्टूबर के दिन का चयन किया गया था. यही वजह है कि हर साल 9 अक्टूबर को 'विश्व डाक दिवस' मनाया जाता है. हालांकि, भारत देश एक जुलाई 1876 में यूनिवर्सल पोस्टल यूनियन का सदस्य बना था. यही नहीं भारत, एशिया का पहला ऐसा देश है, जो सबसे पहले यूनिवर्सल पोस्टल यूनियन का सदस्य बना था. जनसंख्या और अंतर्राष्ट्रीय मेल ट्रैफिक के आधार पर भारत शुरू से ही प्रथम श्रेणी का सदस्य रहा है. इसके साथ ही भारतीय डाक, देश के उन प्रमुख और पुराने विभागों में शामिल है, जो 18वीं शताब्दी से चली आ रही है.
डाक की जगह मोबाइल ने ली
डाक विभाग पिछले डेढ़ सौ सालों से देश के अंदर ही नहीं, बल्कि दूसरे देशों तक सूचना पहुंचाने का सर्वाधिक विश्वसनीय, सुगम और सबसे सस्ता साधन रहा है. यही नहीं पत्रों, पार्सलों, निमंत्रण पत्रों और मनीऑर्डर आदि को लोगों के घर-घर पहुंचाना हो या फिर बाहर से आये हुए पत्र और पार्सल को उस स्थान पर सुरक्षित भेजने की व्यवस्था करनी हो. डाक विभाग ने बड़ी जिम्मेदारी के साथ काम किया है. मौजूदा समय में डाक की जगह अब मोबाइल फोन ने ले लिया है. आधुनिकता के दौर में पत्र को डाक के माध्यम से ना भेज कर लगभग अधिकांश निजी कंपनियां डिजिटल पर जोर दे रही है. वहीं, भारत सरकार भी डिजिटल पर जोर देने की बात कह रही है.
प्राइवेट कंपनियों ने डाक विभाग का एकाधिकार किया खत्म
डाक क्षेत्र में प्राइवेट कंपनियों के पैर पसारने और सूचना तकनीकी के नए माध्यम आने के कारण डाक विभाग की भूमिका लगातार कम होती जा रही है. वर्तमान समय में डाक विभाग का एकाधिकार लगभग खत्म हो गया है. अब दुनिया डिजिटल हो गयी है. सारे काम कंप्यूटर से होने लगे हैं. सूचनाओं का आदान-प्रदान इलेक्ट्रॉनिक गैजेट से होने लगा है. लिहाजा संदेश भेजने के लिए अब लोगों को लंबी- लंबी चिट्ठीयां लिखने की जरूरत नहीं है.
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