ऋषिकेश: आजादी की लड़ाई में ऋषिकेश की अहम भूमिका रही है. यहां पर भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद और नेताजी सुभाष चंद्र बोस सहित कई वीरों ने आजादी की योजनाएं बनाई थी. आजादी की लड़ाई के दौरान देश के दीवाने ऋषिकेश के मठ मंदिरों में भेष बदलकर छुपते थे, जो कि आज भी स्वतंत्रता सेनानियों को याद है. यही कारण है कि यहां के आश्रमों और धर्मशालाओं का आजादी की लड़ाई में मिला सहयोग वे आज भी नहीं भूलते. देखिए ईटीवी भारत की खास रिपोर्ट.
आजादी के परवानों की रणनीति भूमि रही थी तीर्थनगरी
आज ऋषिकेश को तीर्थनगरी के नाम से पहचाना जाता है लेकिन आजादी की लड़ाई के दौरान ये भूमि देश के दीवानों की योजना भूमि होती थी. यहां के कई संतों ने आजादी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. आज भी कई स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की निशानी तीर्थनगरी में मौजूद है. जो आने वाली पीढ़ियों को देश प्रेम की भावना से रुबरु करवा रही है.
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स्वतंत्रता संग्राम सेनानी धनेश शास्त्री के पुत्र संजय शास्त्री बताते हैं कि उनके पिता आजादी की लड़ाई को लेकर अनेक कहानियां उन्हें सुनाते थे. उन्होंने कहा कि आजादी के दौरान भारत मां के वीरों ने अग्रेजों की कई यातनाएं सही. अंग्रेज उन्हें जेल में बंद कर जूते की नोंक पर बिठाकर रखते थे. उन्होंने बताया कि ऋषिकेश में रहते हुए उनके पिता ने स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का एक बहुत बड़ा सम्मेलन कराया था. जिसमें 500 से 600 स्वतंत्रता संग्राम सेनानी ऋषिकेश पहुंचे थे. उन्होंने बताया कि उनके पिता को स्वतंत्रता संग्राम सेनानी गढ़वाल मंडल के अध्यक्ष के रूप में जाना जाता है.
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स्वतंत्रता संग्राम सेनानी हुकुम चंद्र शर्मा के पोते पंकज शर्मा ने ईटीवी भारत के साथ बातचीत में बताया कि उनके दादा ने उनसे कई ऐसी बातों का जिक्र किया जो कि कम ही लोगों को पता है. पंकज ने बताया कि उनके दादाजी हुकुमचंद शर्मा के बारे में उनके पिता उन्हें काफी कुछ बताया करते थे. उन्होंने बताया कि आजादी की लड़ाई के समय नेताजी सुभाष चंद्र बोस ऋषिकेश आए थे.
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इस दौरान वे केवलानंद आश्रम में रहे. वे बतातें हैं कि गुमनामी के बाद नेताजी सुभाष चंद बोस ने अपना काफी समय इसी आश्रम में बिताया. उन्होंने बताया कि यहां आने के बाद न केवल बोस ने बल्कि भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद सहित कई लोगों ने यहां कई योजनाएं बनाई थी. केवलानंद आश्रम के संस्थापक स्वामी केवल आनंद भी एक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे और आजाद हिंद फौज के सिपाही थे.
पकंज ने बताया कि तीर्थ नगरी की कई सड़कों का नाम स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के नाम पर रखा गया है. उन्होंने बताया कि ऋषिकेश में चौक चौराहों के नाम आजादी के वीरों के नाम पर ही रखे गयें हैं. ऋषिकेश के रहने वाले 15 ऐसे वीर रहे हैं जिन्होंने देश की आजादी में अहम भूमिका निभाई थी. आजादी के बाद यहां के वीरों की वीरता से प्रभावित होकर कई लोग आ चुके हैं. जिनमें देश के प्रथम राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद भी शामिल हैं.
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स्वतंत्रता संग्राम सेनानी व संत स्वामी केवलानंद के शिष्य संत आलोक आनंद ने बताया कि ऋषिकेश के मुनि की रेती स्थित खाराश्रोत का नाम नमक इस लिए पड़ा क्योंकि यहां पर 1929-30 में नमक सत्याग्रह किया गया था. जिसमें देहरादून से 400 लोग जेल गए. जिनमें ऋषिकेश के 70 सन्त शामिल थे. इनमें पंजाब से आए स्वामी केवलानंद, स्वामी सदानंद, उड़ीसा से आए बाबा रामदास, स्वामी आनंदिगिरी व गुजरात से आए ब्रह्मचारी हरिजीवन प्रमुख थे.
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नमक सत्याग्रह के समय खारास्त्रोत में नमक बनाया जाता था. टिहरी के प्रजामंडल में यहां के नागरिकों ने योगदान दिया था. सरदार भगतसिंह के शहीद होने पर केवलानंद आश्रम में उनकी आत्मा की शांति के लिए श्रीमद्भागवत सप्ताह आयोजित किया गया था. यहां उनके सभी संस्कार किए गए. नगर के अधिकतर स्वतंत्रता संग्राम सेनानी 1930 के नमक आंदोलन में जेल गए. भोगपुर, डांडी, रानीपोखरी, श्यामपुर आदि स्थानों के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी ऋषिकेश आकर अपनी गतिविधियां चलाते थे. इनमें बड़कोट के गणेशदत्त सकलानी, डांडी के प्यारेलाल, लक्ष्मीप्रसाद व पंडित खेमचंद के नाम प्रमुख हैं.
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साल 1925 में जब महात्मा गांधी अल्मोड़ा आए तो ऋषिकेश से स्वतंत्रता सेनानी महात्मा गांधी से मिलने अल्मोड़ा पहुंचे. जहां पहुंचकर उन्होंने गांधी जी को ऋषिकेश आने का न्योता दिया. हालांकि समय न होने के कारण वे यहां नहीं आ पाये थे लेकिन उन्होंने अपना हस्ताक्षर स्वतंत्रता संग्राम सेनानी को दिया जो आज भी गांधी स्तम्भ त्रिवेणी घाट में लगा हुआ है.
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आजादी की लड़ाई लड़ने वाले 15 लोग तीर्थनगरी ऋषिकेश के थे. आज नगर निगम प्रांगण में सभी वीरों के नाम का स्तम्भ लगाये गये हैं,आजादी की लड़ाई में ऋषिकेश के लोगों की भूमिका को देखते हुए 1955 में प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और 1 अक्टूबर 1960 को प्रथम राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ऋषिकेश आए थे.