ऋषिकेश:उत्तराखंड को देवभूमि का दर्जा यूं ही नहीं दिया जाता है, प्रदेश आज भी सबसे बडे़ धर्मयुद्ध महाभारत के कई अध्याय समेटे हुए है. पांडवों का लंबा समय उत्तराखंड के पहाड़ों में बीता. इस अंतराल में पांडवों ने प्रदेश के लोगों से जो रिश्ता कायम किया, वो रिश्ता सदियों बाद भी पांडव नृत्य के रूप में कायम है. इसी को लेकर आज अंतरराष्ट्रीय योग महोत्सव के दौरान गढ़वाल मंडल विकास निगम में पांडव नृत्य का मंचन किया गया.
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परमार्थ निकेतन में चल रहे 30वें अंतरराष्ट्रीय योग महोत्सव में पांडव नृत्य का मंचन किया गया. इतिहास के अनुसार पांडवों ने महाभारत के धर्मयुद्ध में विजय प्राप्त करने के बाद अपने कौरव भाइयों और सगे सम्बन्धियों की हत्या के पाप यानी गोत्र हत्या से मुक्त होने के लिए भगवान शिव की खोज शुरू कर दी थी. इस दौरान पांडव केदारखण्ड यानी गढ़वाल क्षेत्र में आए थे. गढ़वाल के गांव-गांव जाकर पांडवों ने पहाड़ी लोगों के पूर्वजों से संवाद स्थापित किया.
मान्यता है कि पांडवों की आत्माएं आज भी पहाड़ में देवताओं के स्वरूप अपनी मौजूदगी का अहसास दिलाती हैं. जिसका उदाहरण पहाड़ के हर गांव में होने वाली पांडव नृत्य में देखने को मिलता है. लोगों का मानना है कि पांडव ही नहीं बल्कि भगवान कृष्ण भी पांडव नृत्य में सम्मलित होने के लिए यहां आते रहते आते हैं. गढ़वाल के रुद्रप्रयाग, टिहरी, उत्तरकाशी और चमोली के लगभग हर गांव में 3, 5, 7 और 11 वर्षों में ग्रामीण अपनी स्थितियों के अनुसार पांडव नृत्य का आयोजन करते हैं, कुछ गांव में तो पांडव नृत्य 3 महीनों तक भी चलता है.