देहरादून: इन दिनों पहाड़ के लोगों की जुबान पर एक गाना अक्सर सुनने को मिलता है- 'आज पनी जों-जों, भोल पनी जों-जों'. ये उत्तराखंड की पहली लोकगायिका कबूतरी देवी का मशहूर गाना है. दरअसल ये गाना कबूतरी देवी ने गाया था. अपने संघर्ष के दिनों में पवनदीन राजन ने भी ये गाना गाया था. आप सोच रहे होंगे कोई भी गायक किसी का भी गाना गा सकता है. पुराने गायकों के गाने नए गायक गाते ही हैं. जी हां आप सही सोच रहे हैं. लेकिन पवनदीप का इस गाने से इससे भी बढ़कर रिश्ता-नाता है.
पवनदीप की नानी थीं कबूतरी देवी: दरअसल पवनदीप राजन उत्तराखंड की पहली लोकगायिका कबूतरी देवी के नाती हैं. दरअसल, गायिका कबूतरी देवी की बहन लक्ष्मी देवी पवनदीप की नानी हैं. अब तक देश-विदेश में 1200 से ज्यादा स्टेज प्रोग्राम कर चुके पवनदीप की एक पहचान ये भी है.
उत्तराखंड की पहली लोकगायिका थीं कबूतरी देवी:कबूतरी देवी (1945-7 जुलाई 2018) एक भारतीय उत्तराखंडी लोकगायिका थीं. उन्होंने उत्तराखंड के लोक गीतों को आकाशवाणी और प्रतिष्ठित मंचों के माध्यम से प्रसारित किया था. सत्तर के दशक में उन्होंने रेडियो जगत में अपने लोकगीतों को नई पहचान दिलाई. उन्होंने आकाशवाणी के लिए 100 से अधिक गीत गाए. कुमाऊं कोकिला के नाम से प्रसिद्ध कबूतरी देवी राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित थीं.
पवनदीप उत्तराखंड की पहली लोकगायिका कबूतरी देवी के नाती हैं. पवनदीप के पिता भी उत्तराखंड के लोक गायक हैं. वो 1200 से ज्यादा स्टेज शो कर चुके हैं. पवनदीप ने कुमाऊं विवि नैनीताल से स्नातक किया है. पवनदीप गिटार, कीबोर्ड, तबला, पियानो के साथ ही ढोलक समेत कई वाद्य यंत्र बजाते हैं.
2 साल की उम्र में तबला बजाने लगे थे पवनदीप: 1998 में जब पवनदीप सिर्फ 2 साल के थे तो इनकी अंगुलियां तबले पर थिरकने लगी थीं. उस वर्ष पवनदीप ने चंपावत में आयोजित कुमाऊं महोत्सव में कार्यक्रम प्रस्तुत कर अपने गुदड़ी का लाल होने का एहसास करा दिया था. आकाशवाणी अल्मोड़ा ने भी पवन के तबला वादन का कार्यक्रम प्रसारित किया था. अक्टूबर 2000 में नैनीताल में संपन्न कुमाऊं महोत्सव में जब पवनदीप ने तबले की तान छेड़ी तो तत्कालीन राज्यपाल भी मंत्रमुग्ध हो गए थे. उन्होंने पवनदीप को 11 हजार रुपए इनाम देने की घोषणा की थी.
पवनदीप की प्रतिभा से प्रभावित होकर मशहूर लोकगायिका कल्पना चौहान के पति राजेंद्र चौहान ने इन्हें अपने एलबम में ब्रेक दिया था. पवनदीप का गाया माया बांद काफी लोकप्रिय हुआ था.
1945 में हुआ था कबूतरी देवी का जन्म: पवनदीप की नानी कबूतरी देवी की बात करें तो कबूतरी का जन्म 1945 में काली-कुमाऊं (चम्पावत जिले) के एक मिरासी (लोक गायक) परिवार में हुआ था. संगीत की प्रारम्भिक शिक्षा इन्होंने अपने गांव के देब राम और देवकी देवी और अपने पिता रामकाली से ली, जो उस समय के एक प्रख्यात लोक गायक थे. लोक गायन की प्रारम्भिक शिक्षा इन्होंने अपने पिता से ही ली. वे मूल रूप से सीमांत जनपद पिथौरागढ़ के मूनाकोट ब्लॉक के क्वीतड़ गांव की निवासी थीं, जहां तक पहुंचने के लिये आज भी अड़किनी से 6 किमी पैदल चलना पड़ता है.
पति ने पहचानी थी कबूतरी देवी की प्रतिभा: कबूतरी देवी ने लोक गायन की प्रारम्भिक शिक्षा अपने पिता से ही ली. पहाड़ी गीतों में प्रयुक्त होने वाले रागों का निरंतर अभ्यास करने के कारण इनकी शैली अन्य गायिकाओं से अलग थी. विवाह के बाद इनके पति दीवानी राम ने इनकी प्रतिभा को पहचाना और इन्हें आकाशवाणी और स्थानीय मेलों में गाने के लिये प्रेरित किया. उस समय तक कोई भी महिला संस्कृतिकर्मी आकाशवाणी के लिये नहीं गाती थी.