हल्द्वानी: नगर में बढ़ते परिवहन दबाव को देखते हुए मौजूदा सरकार ने 2008 में आईएसबीटी के प्रस्ताव की मंजूरी दी थी. जिसे लेकर लोगों को नगर में परिवहन व्यवस्था ठीक होने की उम्मीद जागी. लेकिन 10 साल बाद भी आईएसबीटी का निर्माण नहीं हो सका. जिसके चलते ISBT का सपना मात्र राजनीतिक मुद्दा बन कर रह गया है. देखिए ईटीवी भारत की खास रिपोर्ट...
दरअसल हल्द्वानी से अन्य राज्यों के लिए परिवहन व्यवस्था ठीक करने के उद्देश्य से वर्ष 2008 -09 में सरकार ने अंतरराष्ट्रीय बस अड्डे के प्रस्ताव को मंजूरी दी. जिसके बाद 2015 में गौलापार में 8 हेक्टेयर भूमि का चयन आईएसबीटी बनाने के लिए किया गया. जिसके बाद वन विभाग ने भी 8 हेक्टेयर भूमि को आईएसबीटी के लिए हस्तांतरित कर दिया था. वहीं,14 अक्टूबर 2016 को तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत ने गौलापार में आईएसबीटी निर्माण का शिलान्यास किया. जिसके बाद आईएसबीटी का निर्माण कार्य शुरू हुआ. 8 हेक्टेयर भूमि में बन रहे आईएसबीटी के निर्माण के लिए 2700 हरे पेड़ काटे गए. लेकिन मई 2017 में आईएसबीटी के लिए आवंटित भूमि में खुदाई के दौरान कई नर कंकाल मिलने लगे. जिसके बाद तत्कालीन बीजेपी सरकार ने आईएसबीटी निर्माण पर रोक लगा दी.
बता दें कि करीब 100 करोड़ की लागत से बन रहे आईएसबीटी निर्माण में रोक लगने तक करीब ढाई करोड़ से अधिक का खर्च हो चुका था. बताया जाता है कि गौलापार में बनने वाला आईएसबीटी नेता प्रतिपक्ष इंदिरा हृरदेश का ड्रीम प्रोजेक्ट था. और इसका पूरा श्रेय इंदिरा हृदयेश को जाना था. लेकिन सत्ताधारी बीजेपी ने आईएसबीटी में नर कंकाल होने का हवाला देते हुए प्रस्तावित भूमि पर निर्माण पर रोक लगा दी.
जिसके बाद अगस्त 2017 में सूबे के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने गौलापार आईएसबीटी को किसी अन्य स्थान में शिफ्ट करने की निर्देश दिए. काफी जद्दोजहद के बाद हल्द्वानी के बरेली रोड स्थित तीन पानी ओपन यूनिवर्सिटी के समीप भूमि का चयन किया गया. लेकिन 2 साल बाद आईएसबीटी के लिए भूमि हस्तांतरण नहीं पाया.