हल्द्वानी:गर्मियों का सीजन आते ही वनसंपदा और वन्य जीवों पर वनाग्नि का खतरा मंडराने लगता है. वनाग्नि से हर वर्ष कई हेक्टेयर वन संपदा को नुकसान होता है. साथ ही बड़ी संख्या में वन्य जीवों को अपनी जान गंवानी पड़ती है. इस वर्ष उत्तराखंड में वनाग्नि पर नियंत्रण करने के लिए शासन ने 2 करोड़ 24 लाख 72 हजार का बजट पारित किया है. जिसके बाद से वन विभाग की तैयारियां चरम पर है.
जानकारी देते वन संरक्षक पराग मधुकर धकाते. आपको बता दें कि वनाग्नि पर नियंत्रण के लिए वन विभाग ने सभी तैयारियां पूरी कर ली हैं. जिसके लिए वन विभाग ने कुमाऊं मंडल के 5 वन डिवीजन में 513 फायर वाचरों की तैनाती की है और 173 फायर क्रु स्टेशन भी स्थापित किए हैं. साथ ही घने जंगलों में लगने वाली आग का पता लगाने के लिए सेटेलाइट की मदद से निगरानी भी की जा रही है.
वहीं वन संरक्षक पश्चिमी तराई डॉ पराग मधुकर धकाते ने बताया कि कुमाऊं मंडल के 5 वन डिवीजनों के वनों में लगने वाली अग्नि की घटना से निपटने के लिए सभी तैयारियां पूरी कर ली गई हैं. पूरे कुमाऊं डिवीजन में 939 फायर वाचरों की तैनाती प्रस्ताव पारित किया गया है. जिसमें 513 फायर वाचरों की नियुक्ति की जा चुकी है. जिनके लिए 32 वाच टावर भी स्थापित किए गए हैं.
वहीं 5 कंट्रोल रूम भी स्थापित किए गए हैं. साथ ही 173 फायर क्रू स्टेशन स्थापित किए गए हैं. वनाग्नि की जानकारी के लिए 459 वायरलेस उपकरण भी कर्मियों को उपलब्ध कराए गए हैं. साथ ही बताया की पहाड़ी इलाकों में लगने वाली आग की निगरानी के लिए जीपीएस का सहारा लिया जा रहा है और एसएमएस अलर्ट के माध्यम से भी वनाग्नि को लेकर लोगों को जागरुक किया जा रहा है.
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वहीं मधुकर धकाते ने वानाग्नि के आंकड़े जाहिर करते हुए बताया कि 2016 में कुमाऊं मंडल के पांच डिवीजन में 120 वानाग्नि की घटना हुई. जिसमें करीब 119 घन मीटर वन संपदा को नुकसान हुआ था. वहीं 2017 में 120 वनअग्नि की घटना हुई जिसमें 168 घन मीटर बन संपदा जलकर खाक हुई थी. 2018 में 24 वनाग्नि की घटना हुई जिसमें 23 हेक्टेयर वन संपदा का नुकसान हुआ. साथ ही उन्होंने बताया कि इस वर्ष वानाग्नि की घटनाओं को रोकने के लिए शासन से 2 करोड़ 24 लाख 72 हजार का बजट अवमुक्त हुआ है.
गौर हो कि पिछले वर्ष पूरे प्रदेश के जंगलों में 2150 वानाग्नि की घटनाएं हुई थी. जिनमें 4480.03 हेक्टेयर में जंगल जलकर खाक हो गए थे. साथ ही 2016 में नैनीताल जिले के जंगलों में लगी भीषण आग कई महीनों तक जंगल जलाती रही जिस पर काबू करने के लिए वायु सेना के हेलीकॉप्टरों की मदद लेनी पड़ी थी.