देहरादून:उत्तराखंड में देवस्थानम बोर्ड का मुद्दा जिस तेजी से गरमाया है, उसने प्रदेश की राजनीति में एक नई बहस को जन्म दे दिया है. दरअसल राज्य में जातीय समीकरणों पर चुनावी बिसात बिछा रही राजनीतिक पार्टियां ब्राह्मणों को लेकर कुछ ज्यादा चौकन्ना दिखाई दे रही हैं. इसकी वजह ब्राह्मण जाति के बदलते समीकरणों को माना जा रहा है. जानकार कह रहे हैं कि भारतीय जनता पार्टी शासित उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में ब्राह्मणों का भाजपा से कुछ मोहभंग हुआ है.
राजनीतिक पंडितों का है ये कहना: राजनीतिक पंडित नीरज कोहली का कहना है कि इसकी सबसे पहले सुगबुगाहट उत्तर प्रदेश सुनाई दी थी, जब माफिया विकास दुबे का एनकाउंटर किया गया. इसके बाद दबी जुबान में ब्राह्मणों को योगी सरकार में टारगेट किए जाने की बातें भी उठती हुई दिखाई दी. जिसके बाद बहुजन समाज पार्टी के ब्राह्मण सम्मेलन और समाजवादी पार्टी का परशुराम के नाम पर राजनीतिक कार्यक्रम सबने देखा. राजनीतिक जानकार मानते हैं कि भाजपा के खिलाफ ब्राह्मणों का विरोध केवल उत्तर प्रदेश तक ही सीमित नहीं है, उत्तराखंड में भी ब्राह्मणों के भाजपा से मोहभंग होने की चर्चाएं होने लगी हैं. बताया जाता है कि राष्ट्रीय स्तर पर भी भाजपा ब्राह्मणों को लेकर इन आशंकाओं को लेकर मंथन में जुट गई है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने केदारनाथ में दिया था बड़ा संदेश: नीरज कोहली कहते हैं कि, वैसे तो भाजपा मंदिरों और हिंदू धार्मिक स्थलों पर राजनीतिक वर्चस्व बनाए रखती है. इस बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने केदारनाथ में दौरे के दौरान भी एक तरफ जहां राष्ट्रीय स्तर पर हिंदुत्व को लेकर पार्टी की लाइन को स्पष्ट करने की कोशिश की है. वहीं, अपने संबोधन के दौरान तीर्थ पुरोहितों और पुजारियों की जमकर तारीफ कर ब्राह्मण जाति को भी साधने का प्रयास किया था. प्रधानमंत्री का यह संबोधन उस समय किया गया जब उत्तराखंड में तीर्थ पुरोहितों के नेतृत्व में ही भाजपा सरकार के खिलाफ मोर्चाबंदी की गई है. भाजपा के पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को केदारनाथ से लगभघ खदेड़ने तक का काम तीर्थ पुरोहित कर चुके हैं.
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ठाकुर-ब्राह्मण दोनों को वरीयता देते हैं राजनीतिक दल: उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश दोनों ही राज्यों में मुख्यमंत्री के तौर पर भाजपा ने ठाकुर चेहरों को वरीयता दी है. राजनीतिक जानकार नीरज कोहली मानते हैं कि इसी नेतृत्व के चलते हुए तमाम घटनाक्रम ब्राह्मणों की इन दो राज्यों में नाराजगी की वजह मानी जा रही हैं. बताया जा रहा है कि ब्राह्मण समुदाय एक तरफ सरकार में अवसर ना मिलने के चलते नाराज दिखा है तो दूसरी तरफ देवस्थानम बोर्ड जैसे कुछ निर्णय भी ब्राह्मणों की नाराजगी की वजह रहे हैं.
त्रिवेंद्र पर लगे थे उपेक्षा के आरोप: उत्तराखंड में त्रिवेंद्र सिंह रावत एक ठाकुरवादी नेता के रूप में समझे जाते रहे हैं. इस दौरान उनके ब्राह्मण जाति के नेताओं को तवज्जो ना दिए जाने की बातें भी समय-समय पर उठती रहीं हैं. वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक नीरज कोहली कहते हैं कि ब्राह्मणों की नाराजगी की बात काफी समय से सामने आ रही है. देवस्थानम बोर्ड का गठन इस नाराजगी की मुख्य वजह रहा है. उन्होंने कहा कि प्रदेश की राजनीति में ठाकुर और ब्राह्मण जाति का वर्चस्व रहा है. ऐसे में कोई भी राजनीतिक दल ब्राह्मणों की नाराजगी मोल लेने की हिम्मत नहीं कर सकता.
5 बार ब्राह्मण मुख्यमंत्री, 4 बार ठाकुर: उत्तराखंड में निर्वाचित सरकार के दौरान विभिन्न दलों में मुख्यमंत्रियों की स्थिति को देखें तो 9 बार मुख्यमंत्री पद के लिए शपथ ली गई. इसमें से 5 बार ब्राह्मण जाति के राजनेता मुख्यमंत्री के पद पर आसीन रहे हैं. इसमें भुवन चंद्र खंडूड़ी ने भाजपा सरकार के एक कार्यकाल में दो बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. इसी तरह यदि निर्वाचित सरकार में कार्यकाल पर फोकस करें तो 20 सालों में 12 सालों तक ब्राह्मण मुख्यमंत्रियों ने सत्ता संभाली है, जिनमें 5 साल नारायण दत्त तिवारी, 5 साल भुवन चंद्र खंडूड़ी और डॉ रमेश पोखरियाल निशंक मुख्यमंत्री रहे हैं. इसके अलावा 2 साल विजय बहुगुणा ने भी कांग्रेस सरकार में मुख्यमंत्री का पद संभाला था. इस तरह निर्वाचित सरकार में 2014 से अब तक ठाकुर मुख्यमंत्रियों को राजनीतिक दलों ने सत्ता दी है.