देहरादून:टिहरी उत्तराखंड का एक ऐसा जिला है जिसका सबसे बड़ा और ऐतिहासिक शहर टिहरी बांध मे दफन हो चुका है. पुरानी टिहरी की जल समाधि के बाद बना टिहरी डैम देश ही नहीं दुनिया में भी अलग पहचान रखता है. सन 1972 में टिहरी में बांध बनने की कवायद शुरु हुई थी. टिहरी बांध परियोजना का निर्माण अविभाजित उत्तरप्रदेश में शुरू हुआ था.
टिहरी डैम की प्रारंभिक क्षमता 2400 मेगावाट निर्धारित थी. धनाभाव के कारण जब निर्माण कार्य बाधित हुआ तो सरकार ने वर्ष 1988 में टिहरी हाइड्रो डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन (टीएचडीसी) का गठन कर निर्माण कार्य को पुनः शुरू करवाया. वर्ष 1990 में परियेजना का डिजाइन बदलकर इसकी क्षमता 600 मेगावाट से बढ़ाकर 2400 मेगावाट कर दी गयी. जिसमें टिहरी बांध एक हजार मेगावाट, कोटेश्वर बांध 400 और टिहरी पम्प स्टोरेज प्लांट की क्षमता एक हजार मेगावाट हैं
'टिहरी' के बलिदान से राज्य बना ऊर्जा प्रदेश. टिहरी में बना ये बांध दुनिया का पांचवां सबसे बड़ा बांध हैं, जिसकी उंचाई 260 मीटर है. तीन चरणों वाली इस परियोजना का पहला बांध वर्ष 2006 में बनकर तैयार हो गया था. स्थानीय लोगों और पर्यावरणविदों के विरोध के बाद भी इस बांध का निर्माण किया गया.
झील में डूबा पुराना टिहरी शहर . आज टिहरी बांध राज्य के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है. टिहरी बांध के बाद पहाड़ को ऊर्जा प्रदेश के नाम से जाना जाने लगा. जिससे यहां के विकास को नई रफ्तार मिली हैं. पुरानी टिहरी के बाद बसा नया टिहरी शहर आज देश विदेश से आने वाले सैलानियों के लिए बेहद खूबसूरत पर्यटक स्थल बन गया है. जो कि एक बार फिर से इसे देश के मानचित्र पर नई जगह दे रहा है.