देहरादून: उत्तराखंड सरकार का एक फैसला इन दिनों फिर विवादों में है. सरकार ने सीबीएसई मान्यता के लिए उस स्कूल को एनओसी दे दी है, जिसमें एक छात्रा का गैंग रेप हुआ था. बीते सोमवार को पॉक्सो कोर्ट ने इस बोर्डिंग स्कूल में हुये गैंगरेप के मामले में सभी आरोपियों को दोषी करार दिया था. इसके साथ ही स्कूल प्रबंधन को भी मामले में दोषी पाया था.
बता दें कि अगस्त 2018 में थाना सहसपुर के अंतर्गत आने वाले भाऊवाला स्थित निजी बोर्डिंग स्कूल में दसवीं में पढ़ने वाली बालिग छात्रा के साथ स्कूल के ही 4 सीनियर छात्रों ने गैंगरेप की घटना को अंजाम दिया था. वहीं मामला सामने आने पर स्कूल प्रबंधन ने मामले को दबाने का प्रयास किया था. यही नहीं स्कूल मैनेजमेंट ने पीड़ित बच्ची का गर्भपात कराने के साथ ही पुलिस और परिजनों से इस मामले को रफा-दफा करने के लिए दबाव भी बनाया था.
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कोर्ट ने इस मामले में सरबजीत नाम के छात्र को दोषी करार दिया. इसके साथ ही स्कूल डॉयरेक्टर लता गुप्ता, प्रबंधक दीपक और उसकी पत्नी सहित तीन लोगों को साक्ष्य छुपाने और गर्भपात कराने के मामले में नौ-नौ साल की कठोर सजा सुनाई. जबकि स्कूल के प्रिंसिपल जितेंद्र शर्मा को 3 साल की सजा सुनाई गई.
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बीते साल 2018 में हुई इस गैंगरेप की घटना के बाद राज्य सरकार ने इस स्कूल की मान्यता रद्द कर दी थी. वहीं कोर्ट में इस मामले का ट्रायल चलने के बाद सीबीएसई बोर्ड ने भी स्कूल की मान्यता रद्द कर दी थी. मगर इसके उलट शासन ने इस साल इस स्कूल को एक बार फिर सीबीएसई मान्यता के लिए एनओसी दे दी है. शासन द्वारा इस शिक्षण संस्थान को दी गई एनओसी के बाद जहां एक तरफ सरकार की किरकिरी हो रही है, वहीं दूसरी तरफ यह भी सवाल उठ रहे हैं कि आखिर एनओसी देकर सरकार इस तरह के संस्थानों को क्यों बढ़ावा दे रही है?