देहरादून/श्रीनगर:होली का नाम सुनते ही रंग-बिरंगे गुलाल के दृश्य सामने आ जाते हैं. सनातन परंपरा में होली की बड़ी मान्यता है, क्योंकि होली का चित्र हमारे ग्रंथों में भी है. लेकिन उत्तराखंड में होली मनाने की एक अनोखी परंपरा जो सदियों से चली आ रही है. जी हां, अन्य जगहों से पहाड़ी क्षेत्रों में होली मनाने की परंपरा बेहद भिन्न है, क्योंकि पहाड़ी क्षेत्रों में कुछ दिन पहले ही होली का कार्यक्रम शुरू हो जाता है. आखिर कैसे मनाई जाती है पहाड़ में होली, जानिए
पहाड़ों पर होली मनाएं जाने की अनोखी परंपरा. उत्तराखंड के पहाड़ में युवा, बच्चे ढोल-नगाड़ों के साथ लोगों के घर-घर जाकर होली की सूचनाएं देते हैं, ताकि सदियों से चली आ रही पहाड़ों के होली की परंपरा को बरकरार रखा जा सके. कहा यह भी जाता है कि पहाड़ों की होली मनाने का यह एक अलग अंदाज है, जो सदियों से चली आ रही है.
यूं तो रंगों के इस त्योहार को उत्तराखंड में एक माह पहले से ही मनाए जाने की परंपरा है. विशेष रूप से सूबे के कुमाऊं मंडल में खड़ी होली की अपनी एक अलग ही ऐतिहासिक पहचान हैं, जबकि प्रदेश के गढ़वाल के पहाड़ों में देश के अन्य क्षेत्रों की तरह इस रंग-बिरंगे त्योहार के रूप में ही मनायी जाती है.
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राज्य के पहाड़ी क्षेत्रों में युवा टोलिया बनाकर होल्यारों के रूप में बाजे-ढोल नगाड़ों और पारंपरिक वाद्य यंत्रों की धुन पर रंग-गुलाल लेकर बाजार के मुख्य मार्गों पर होली मनाते हैं. यही नहीं होलिका दहन से पहले युवाओं की टोलियां राधाकृष्ण की झांकी के साथ जश्न मनाते हैं. श्रीनगर में ऐसी ही एक होल्यारों की टोली में होली का खुमार सिर चढ़ कर बोल रहा है.