उत्तराखंड

uttarakhand

ETV Bharat / city

चारधाम राजमार्ग चौड़ीकरण: केंद्र बोला- देश की रक्षा के लिए जरूरी कदम, SC में फैसला सुरक्षित

चारधाम राजमार्ग चौड़ीकरण पर सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है. केंद्र सरकार ने तर्क रखा कि देश की रक्षा के लिए राजमार्ग का चौड़ीकरण जरूरी है. इसीलिए ये कदम उठाया जा रहा है. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया.

supreme court
चारधाम राजमार्ग

By

Published : Nov 11, 2021, 1:31 PM IST

Updated : Nov 12, 2021, 1:15 PM IST

नई दिल्ली:केंद्र सरकार की 12 हजार करोड़ रुपए की चारधाम राष्ट्रीय राजमार्ग परियोजना पर सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है. केंद्र सरकार ने शीर्ष अदालत से उत्तराखंड के करीब 900 किलोमीटर के इस राजमार्ग परियोजना के तहत सड़कों की चौड़ाई को साढ़े पांच से 10 मीटर करने की अनुमति मांगी है. इससे पहले कोर्ट ने साढ़े पांच मीटर तक चौड़ी करने की इजाजत दी थी.

लिखित सुझाव देने का आदेश:न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय खंडपीठ ने सुनवाई के बाद केंद्र सरकार और गैर सरकार संगठन (एनजीओ) सिटीजंस फॉर ग्रीन दून को अपने लिखित सुझाव अगले दो दिनों में शीर्ष अदालत के समक्ष पेश करने को कहा है. कोर्ट ने आदेश दिया कि क्षेत्र में भूस्खलन कम करने के लिए उठाए गए कदमों और उठाए जाने वाले कदमों के बारे में लिखित में दें. इसके बाद पर्यावरण सुरक्षा और राष्ट्रीय सुरक्षा के विभिन्न बिंदुओं पर विचार के बाद खंडपीठ अपना फैसला सुनाएगी.

सीमा तक मशीनरी पहुंचानी जरूरी:गुरुवार को सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने सुप्रीम कोर्ट में दलील दी कि, 'ये दुर्गम इलाके हैं, इन जगहों पर सेना को भारी वाहन, मशीनरी, हथियार, मिसाइल, टैंक, सैनिक और खाद्य आपूर्ति को भेजना होता है. हमारी ब्रह्मोस मिसाइल 42 फीट लंबी है, इसके लॉन्चर ले जाने के लिए बड़ी गाड़ियों की जरूरत है. अगर सेना अपने मिसाइल लॉन्चर और मशीनरी को उत्तरी चीन की सीमा तक नहीं ले जा पाएगी तो युद्ध कैसे लड़ेगी. सेना के पास अगर हथियार नहीं होंगे, ऐसे में भगवान न करे युद्ध छिड़ जाए तो हमारी सेना इसका सामना कैसे करेगी, हम कैसे लड़ेंगे. हमें बेहद सावधान और सतर्क रहने की जरूरत है'.

सड़कों को आपदारोधी बनाने की जरूरत: अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि, 'भूस्खलन तो देश में कहीं भी हो सकता है, इस तरह की आपदा से निपटने के लिए कई जरूरी कदम उठाए गए हैं. सड़कों को आपदारोधी बनाने की जरूरत है. हम ये नहीं कह सकते कि हम केवल लड़ाई तक सीमित हैं. चाहे जो भी स्थिति हो, भूस्खलन हो, भारी बारिश हो, बर्फबारी हो, ये सेना की लड़ाई होती है और इसलिए यह आवश्यक है. पहाड़ों पर भूस्खलन का खतरा है. इसलिए ऐसी स्थिति उत्पन्न होने पर हम क्या करेंगे और खाद्य सामग्री आदि की आपूर्ति करने के लिए सड़कों की आवश्यकता है. इमरजेंसी में सैन्य गतिविधियां आराम से चलें और विपरीत परिस्थितियों में आपदा और राहत बचाव कार्य तेजी से हो सके, इसके लिए सड़कों के चौड़ीकरण की आवश्यकता है'.

वेणुगोपाल ने कहा कि, 'आज हम उस स्थिति का सामना कर रहे हैं जहां देश की रक्षा करनी पड़ती है. हम एक बहुत ही कमजोर स्थिति में हैं. हमें देश की रक्षा करनी है और यह सुनिश्चित करना है कि हमारी सेना के लिए जो भी सुविधाएं उपलब्ध हो सकती हैं उन्हें दी जाएं जैसे हिमालयी क्षेत्रों में सड़कें. रक्षा मंत्री ने भी कहा था कि सेना को आपदा प्रतिरोधी सड़कों की जरूरत है'.

वेणुगोपाल ने कहा, 'भारतीय सड़क कांग्रेस (आईआरसी) ने बर्फीले इलाकों में 1.5 मीटर अतिरिक्त चौड़ाई की सिफारिश की, ताकि दुर्गम जगहों पर भी भारी वाहन चल सकें. लेकिन चारधाम परियोजना की निगरानी कर रही उच्चाधिकार प्राप्त समिति (एचपीसी) अलग तरह के पहलुओं पर ध्यान केंद्रित करती है, लेकिन जो उसे करना चाहिए वह नहीं कर रही, वह सेना की स्थितियों पर विचार नहीं कर रही'.

ये भी पढ़ें:सुप्रीम कोर्ट का निर्देश, चारधाम प्रोजेक्ट में केंद्र कराए पौधरोपण

सीमाओं की सुरक्षा के लिए सड़कों का चौड़ीकरण जरूरी: केंद्र सरकार ने गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट से कहा कि भारत की सीमाओं को सुरक्षित करने के लिए चारधाम प्रोजेक्ट की सड़कों की चौड़ाई का विस्तार बहुत महत्वपूर्ण है. क्योंकि इससे भारी तोपखाने, मशीनरी, आपूर्ति आदि को सीमाओं तक ले जाने में मदद मिलेगी. केंद्र की ओर से पेश हुए एजी वेणुगोपाल ने अदालत के सामने कहा कि जब सीमा पर टकराव की स्थिति होती है तो वाहनों को लगातार एक के बाद एक सामान ले जाना पड़ता है. ऐसे में सरकार को यह सुनिश्चित करना होता है कि सशस्त्र बलों को हर सुविधाएं सड़क के जरिए उपलब्ध होती रहें. हिमालय क्षेत्र में भारी बारिश, बर्फबारी, भूस्खलन आदि जैसी भी स्थिति आती है. ऐसे में सैन्य गतिविधियों और आपदा के समय राहत और बचाव कार्य तेजी से किये जा सकें. इसके लिए चौड़ी सड़कों का होना बहुत जरूरी है.

वहीं, पिछली सुनवाई के दौरान भी खंडपीठ के समक्ष केंद्र सरकार का पक्ष रखते हुए अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा था कि, पिछले एक साल में भारत-चीन सीमा पर जमीनी स्थिति में एक बड़ा बदलाव आया है. इस वजह से सैनिकों और सेना से जुड़े सामान को निर्धारित स्थान पर लाने ले जाने के लिए प्रस्तावित सड़क की चौड़ाई बढ़ाना जरूरी हो गया है. उन्होंने सुनवाई के दौरान कहा था कि 1962 जैसे चीन से युद्ध के हालात मुकाबला करने के लिए राजमार्ग चौड़ीकरण अब अनिवार्य हो गया है. राष्ट्रीय सुरक्षा कारणों से अनुमति दी जानी चाहिए.

एनजीओ का तर्क:एनजीओ की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कॉलिन गोंजाल्विस ने तर्क दिया कि पहले यह आकलन करना होगा कि क्या हिमालय विस्तार स्थिति में है और उच्चाधिकार प्राप्त समिति की रिपोर्ट के अनुसार हिमालय में विस्तार की अनुमति नहीं दी जा सकती है, इसमें सुधार नहीं किया जा सकता है. गोंजाल्विस ने सवाल किया 'हम हिमालयी क्षेत्र में मिसाइल लेने जैसे कई काम करना चाहते हैं, आप सड़कों को जितना चाहें उतना चौड़ा बना सकते हैं. लेकिन क्या हिमालय ऐसी स्थिति में है जहां यह विस्तार संभव है?

अदालत ने बुधवार को एडवोकेट गोंजाल्विस को उन विकल्पों के बारे में सुझावों पर एक नोट प्रस्तुत करने के लिए कहा था, जो उन्होंने नहीं किया और आज कोर्ट में कहा कि समन 2018 में पहले ही वापस मिल गया था और उस अभ्यास को फिर से करने का कोई मतलब नहीं है. उन्होंने कहा कि 2010 में राष्ट्रपति ने यह कहते हुए लिखा था कि भारत चाहता है कि हिमालय संरक्षित हो और गंगोत्री राजमार्ग का सुझाव दिया था. उन्होंने कहा कि पर्यावरण संवेदनशील क्षेत्र होना चाहिए और भागीरथी क्षेत्र को एक पर्यावरण संवेदनशील क्षेत्र के रूप में अछूता रखा गया. पिछले ढाई दिनों से मामले की लंबी सुनवाई के बाद अदालत ने याचिका पर अपना आदेश सुरक्षित रख लिया है.

देश की सुरक्षा को जरूरी बताया था: इससे पहले मंगलवार को हुई सुनवाई में उच्चतम न्यायालय ने कहा था कि वो इस तथ्य की अनदेखी नहीं कर सकता कि एक शत्रु है जिसने सीमा तक बुनियादी ढांचा विकसित कर लिया है और सेना को सीमा तक बेहतर सड़कों की जरूरत है, जहां 1962 के युद्ध के बाद से कोई व्यापक परिवर्तन नहीं हुआ है. उच्चतम न्यायालय ने भारत-चीन सीमा गतिरोध का जिक्र करते हुए आश्चर्य जताया कि क्या कोई संवैधानिक अदालत देश की रक्षा के लिए सेना की आवश्यकता को दरकिनार कर कह सकती है कि पर्यावरण की सुरक्षा रक्षा जरूरतों पर भारी है.

उत्तराखंड में चारधाम राजमार्ग परियोजना:सर्वोच्च अदालत 8 सितंबर, 2020 के आदेश में संशोधन के अनुरोध वाली केंद्र की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय को महत्वाकांक्षी चारधाम राजमार्ग परियोजना पर 2018 के परिपत्र का पालन करने के लिए का गया है. यह सड़क चीन सीमा तक जाती है. इस रणनीतिक 900 किलोमीटर की परियोजना का मकसद उत्तराखंड के चार पवित्र शहरों-यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बदरीनाथ को हर मौसम में चालू रहने वाली सड़क सुविधा प्रदान करना है.

सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति विक्रम नाथ की पीठ ने कहा कि, हम इस तथ्य से इनकार नहीं कर सकते कि इतनी ऊंचाई पर देश की सुरक्षा दांव पर है. क्या भारत के उच्चतम न्यायालय जैसा सर्वोच्च संवैधानिक न्यायालय हाल की कुछ घटनाओं को देखते हुए सेना की जरूरतों को दरकिनार कर सकता है? क्या हम कह सकते हैं कि पर्यावरण संरक्षण देश की रक्षा जरूरतों से ऊपर होगा? या हमें यह कहना चाहिए कि रक्षा चिंताओं का ध्यान इस तरह रखा जाना चाहिए ताकि आगे कोई पर्यावरणीय क्षति न हो.

सर्वोच्च अदालत ने कहा सड़कों को अपग्रेड करने की जरूरत: पीठ ने कहा था कि, सतत विकास होना चाहिए और इसे पर्यावरण के साथ संतुलित किया जाना चाहिए क्योंकि अदालत इस तथ्य से अनजान नहीं रह सकती कि इन सड़कों को 'अपग्रेड' करने की जरूरत है. इस दौरान न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा था कि, 'मैं पर्वतारोहण के लिए कई बार हिमालय गया हूं. मैंने उन सड़कों को देखा है. ये सड़कें ऐसी हैं कि कोई भी दो वाहन एक साथ नहीं गुजर सकते हैं. ये सड़कें ऐसी हैं कि उन्हें सेना के भारी वाहनों की आवाजाही के लिए उन्नयन की आवश्यकता है. 1962 के युद्ध के बाद से कोई व्यापक परिवर्तन नहीं हुआ है'. पीठ ने एक एनजीओ के वकील से कहा कि सरकार पहाड़ में आठ-लेन या 12-लेन का राजमार्ग बनाने के लिए अनुमति नहीं मांग रही है, बल्कि केवल दो-लेन का राजमार्ग बनाने की मांग कर रही है.

पीएम की महत्वकांक्षी परियोजना: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 27 दिसंबर 2016 को इस परियोजना के कार्य का शुभारंभ किया था. ये परियोजना दिसंबर 2021 तक पूरा करने की योजना थी. परियोजना के शुभारंभ के अवसर पर कहा गया था कि इससे लाखों श्रद्धालुओं को हर मौसम में उत्तराखंड में चारों धाम- बदरीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमनोत्री की यात्रा करने में सहूलियत होगी. 889 किलोमीटर चारधाम राजमार्ग सड़क परियोजना को ऑल वेदर राजमार्ग परियोजना भी कहा गया. इस परियोजना को करीब 12000 करोड़ रुपए अनुमानित लागत के साथ शुरू की गई थी. परियोजना के शुभारंभ के अवसर पर कहा गया था कि इससे लाखों श्रद्धालुओं को हर मौसम चारधाम की यात्रा करने में सहूलियत होगी

जानें पूरा केस: सितंबर 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को उसकी 2018 की अधिसूचना के अनुपालन के मद्देनजर सड़क की चौड़ाई साढ़े पांच मीटर रखने का आदेश दिया था. केंद्र सरकार ने भारत-चीन सीमा पर बीते एक साल में बदले हुए हालात के मद्देनजर सैन्य सुरक्षा घेरा मजबूत करने का हवाला देते हुए सड़क की चौड़ाई 10 मीटर करने की मांग की है.

वहीं, पर्यावरण से जुड़े मुद्दों पर काम करने वाली एनजीओ सिटीजंस फॉर ग्रीन दून इस बात का विरोध कर रही है. एनजीओ का कहना है कि सड़कों की चौड़ाई बढ़ाने से पर्यावरण को अपूरणीय क्षति होगी और पहाड़ी इलाके में भूस्खलन की घटनाएं और बढ़ जाएंगी. निर्माण कार्य से ग्लेशियर के पिघलने की आशंका है, जिससे गंगा और उसकी सहयोगी नदियों के जलस्तर में वृद्धि होगी और देश को भारी नुकसान की संभावना है. इसके साथ ही हिमालय क्षेत्र में सड़कों की चौड़ाई बढ़ने से दुर्लभ जलीय जीव एवं जानवरों के अस्तित्व का खतरा बढ़ जाएगा.

Last Updated : Nov 12, 2021, 1:15 PM IST

For All Latest Updates

TAGGED:

ABOUT THE AUTHOR

...view details