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उत्तराखंड में 19 सालों में बढ़ा खुदकुशी का ग्राफ, ये बनी वजह

देवभूमि उत्तराखंड में सुसाइड के मामलों का ग्राफ तेजी से बढ़ रहा है. प्रतिदिन औसतन एक आत्महत्या से मौत हो रही है. गौर करें तो पिछले 19 साल के आंकड़े चौंकाने वाले हैं. पारिवारिक क्लेश, प्रेम प्रसंग और परीक्षा में असफल होना खुदकुशी का सबसे बड़ा कारण रहा है. 14 से 35 साल के युवा सबसे ज्यादा खुदकुशी कर रहे हैं.

उत्तराखंड में बढ़ा खुदकुशी का ग्राफ.

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Published : Sep 14, 2019, 5:01 PM IST

Updated : Sep 15, 2019, 8:16 AM IST

देहरादून: देवभूमि उत्तराखंड में विदेशों के तर्ज पर सुसाइड (आत्महत्या) का ग्राफ हर साल तेजी से बढ़ रहा है. हैरानी वाली बात ये है कि 14 से 35 साल की उम्र वाले युवा ही सबसे ज्यादा आत्महत्या कर रहे हैं. वहीं, महिलाओं के मुकाबले ज्यादातर पुरुष आत्महत्या जैसा कदम उठा रहे हैं. उत्तराखंड में पिछले 19 सालों में हुईं आत्महत्याओं पर एक रिपोर्ट.

आंकड़ों के मुताबिक, उत्तराखंड बनने के बाद 19 सालों में लगभग 5675 लोगों ने अलग-अलग कारणों से मौत को गले लगाया है. हालांकि, ये आंकड़े पुलिस डायरी में दर्ज उन आत्महत्या केस के हैं जिनके पोस्टमार्टम हुए हैं जबकि विशेषज्ञों के मुताबिक खुदकुशी के मामले पुलिस आंकड़ों से कहीं ज्यादा हैं. प्रदेशभर में आत्महत्या के की मामलों का न तो पुलिस केस दर्ज हुआ है और न ही पोस्टमार्टम हुए हैं.

उत्तराखंड में बढ़े खुदकुशी के मामले.

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युवाओं में आत्महत्याओं में सबसे अधिक मामले
उत्तराखंड में आत्महत्याओं के मामले सबसे ज्यादा युवाओं में देखे जा रहे हैं, जिनकी उम्र महज 14 से 35 साल की है. पारिवारिक समस्याएं, प्रेम प्रसंग, नशे की लत और परीक्षा में असफल होना इस उम्र के ज्यादातर लोगों में खुदकुशी का कारण रहा है. इसके अलावा लंबी बीमारी, बेरोजगारी, संपत्ति विवाद, तलाक, दहेज विवाद के ज्यादातर आत्महत्या के मामले अज्ञात रूप से भी सामने आए हैं, जिनके कारण मरने वाले के साथ ही ख़त्म हो जाता है.

आत्महत्या का आंकड़ा पुरुषों में ज्यादा
पुलिस विभाग के आंकड़ों के मुताबिक, उत्तराखंड राज्य बनने के बाद वर्ष 2001 से दिसम्बर 2018 तक 5472 खुदकुशी के मामले सामने आए, जिसमें पुरुषों की संख्या 3396 है जबकि महिलाओं की मौत की संख्या 2075 है.

उत्तराखंड में साल 2001 जनवरी लेकर 2018 दिसंबर तक आत्महत्या करने वाले महिला व पुरुषों के आंकड़े (उत्तराखंड पुलिस विभाग से लिए गए अधिकारिक आंकड़े)

वर्ष पुरुष महिला कुल
2001 182 129 311
2002 205 156 361
2003 262 129 391
2004 148 89 237
2005 180 93 273
2006 173 153 326
2007 130 118 248
2008 104 87 191
2009 202 140 342
2010 164 117 281
2011 192 125 317
2012 249 275 424
2013 244 121 365
2014 151 56 207
2015 346 129 475
2016 99 53 152
2017 167 75 242
2018 198 131 329


कुल पुरुष आत्महत्या - 3396
कुल महिला आत्महत्या- 2075
कुल संख्या आत्महत्या - 5472


पारिवारिक मेल मिलाप की कमी एक बड़ा कारण
उत्तराखंड में साल दर साल आत्महत्याओं बढ़ने वाले मामलों को लेकर राज्य में अपराध व कानून व्यवस्था की जिम्मेदारी निभाने वाले डीजी लॉ एंड ऑर्डर अशोक कुमार की मानें तो विदेशों की तुलना में उत्तराखंड यह केस कम हैं लेकिन उसके बावजूद देवभूमि में सालाना 300 से ज्यादा खुदकुशी के मामले बेहद चिंताजनक हैं.

उनका कहना है कि परिवार के साथ पहले जिस तरह से मेल-मिलाप होता था वो आज के दौर में खत्म हो रहा है, जिसके चलते युवा लोग अकेलेपन के शिकार होकर नशे की तरफ और अन्य नकारात्मक विषयों की तरफ जा रहे हैं. यही वजह आत्महत्या को बढ़ावा दे रही है.

युवाओं का जीवन से मोहभंग: मनोवैज्ञानिक
वहीं, इन घटनाओं पर चिंता जताते हुए ईटीवी भारत से विशेष बातचीत करते हुए देहरादून निवासी मनोवैज्ञानिक डॉ मुकुल शर्मा बताते हैं कि देवभूमि उत्तराखंड में साल दर साल 30 से 40% आत्महत्या के मामले बढ़ना बेहद चिंताजनक है. खुदकुशी का सबसे बड़ा कारण अबतक के आंकड़ों के अनुसार पारिवारिक समस्या है जो पहले स्थान पर है.

डॉ शर्मा के अनुसार, उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों के साथ-साथ मैदानी राज्यों से 80 प्रतिशत छात्र-छात्राएं देहरादून जैसे शहरों में आकर शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं. ऐसे उन बच्चों के माता पिता को इस बात की सुध भी कम हो रही है कि उनका बच्चा किस हाल में अकेला घर से बाहर शिक्षा ग्रहण कर रहा है. कम उम्र में पढ़ाई के बोझ के अलावा अन्य कई तरह के अकेलेपन वाले मसलों को जानने के साथ उनके पास समय से न पहुंचना माता-पिता की बड़ी लापरवाही सामने आ रही हैं जिसकी वजह से कच्ची उम्र के बच्चे गलत रास्तों पर भटक रहे हैं और कई विषयों पर भारी तनाव व हताश में आने के बाद खुदकुशी जैसा घातक कदम उठा रहे हैं.

मनोवैज्ञानिक डॉक्टर शर्मा के अनुसार उनके सर्वे के मुताबिक, आज के समय में मोबाइल व सोशल मीडिया पर 17 से 18 घंटे युवा का समय बिताना यह किसी बड़ी घातक बीमारी से कम नहीं है. सर्वे के अनुसार जिस तरह से सोशल मीडिया और मोबाइल में अपराध को बढ़ाने वाले विषय परोसे जा रहे हैं उससे भी युवा पीढ़ी कई के मामलों से भटक कर गलत कदम बढ़ा रही है.

Last Updated : Sep 15, 2019, 8:16 AM IST

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