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हड़ताल पर छलका सरकार का 'दर्द', सुबोध बोले- चुनावी साल में दबाव बनाने का प्रयास

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Published : Jul 29, 2021, 7:30 PM IST

उत्तराखंड में ऊर्जा कर्मियों ने सरकार के आश्वासन के बाद हड़ताल वापस ले ली है. लेकिन अब पेयजल निगम समेत तमाम विभागों के कर्मी अपनी मांगों को लेकर आंदोलन की राह पकड़ रहे हैं. खास बात यह है कि कर्मचारियों के आंदोलनों की तरफ बढ़ते कदम को सरकार दबाव की राजनीति मान रही है.

Dehradun Strike News
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देहरादून:उत्तराखंड में पेयजल निगम के कर्मचारी विभाग में वेतन समय से नहीं मिलने समेत तमाम मांगों को लेकर आंदोलन की राह पकड़ने जा रहे हैं. उधर, परिवहन निगम के कर्मचारी भी सरकार की तरफ से कर्मचारी हित में काम नहीं करने को लेकर विरोध करने की तैयारी कर रहे है. हाल ही में ऊर्जा निगम के कर्मचारियों ने अपनी हड़ताल को बमुश्किल स्थगित किया है. इतना सब कुछ तब हो रहा है, जब प्रदेश में चुनाव के लिए 6 महीने का वक्त ही बचा है.

उत्तराखंड में आंदोलन और हड़ताल कोई नई बात नहीं है. देश में सबसे ज्यादा आंदोलन वाले राज्यों में उत्तराखंड का नाम भी शुमार है. जानकार कहते हैं कि आंदोलन से बने इस राज्य में कर्मचारी और लोगों में आंदोलन की प्रवृत्ति है. यही कारण है कि समस्या जाने पर कर्मचारी सड़कों पर उतरने में देरी नहीं करते.

चुनावी साल में दबाव बनाने का प्रयास- सुबोध उनियाल

पेयजल निगम के कर्मचारियों की हड़ताल को लेकर पेयजल मंत्री बिशन सिंह चुफाल कहते हैं कि विभाग में बजट की कमी है. कर्मचारियों की हड़ताल और आंदोलन को रोकने के लिए उनकी मांगों पर विचार किया जा रहा है. दरअसल, निगम कर्मचारियों को समय पर वेतन नहीं मिल पाता है, इसको लेकर भी आक्रोशित हैं. साथ ही वेतन बढ़ोतरी से लेकर प्रमोशन तक कई मांगें निगम के कर्मचारी करते रहे. ऐसे में अब इन मांगों पर हड़ताल की चेतावनी के बाद विचार किया जा रहा है.

शासकीय प्रवक्ता सुबोध उनियाल तो सीधे तौर पर कर्मचारियों को निशाना बनाते हुए कहते हैं कि कर्मचारी चुनाव से ठीक पहले इस तरह का आचरण करते हैं. सरकार पर दबाव बनाने की कोशिश की जाती है, ताकि सरकार उनकी मांगों को पूरा कर सके. लेकिन कर्मचारियों को चुनाव से पहले इस तरह का दबाव नहीं बनाना चाहिए. ऐसे हालातों के कर्मचारियों को सरकार के साथ बैठकर अपनी समस्याओं को रखना चाहिए तभी सरकार उनकी बातों को सुनेगी और समझ कर उस पर कोई कार्रवाई करेगी.

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बता दें, कर्मचारी की हड़ताल और आंदोलनों के पीछे केवल उन्हें ही गलत नहीं ठहराया जा सकता. दरअसल, शासन और सरकार में बैठे नेताओं ने वेतन विसंगति से जुड़े कई ऐसे मामले खड़े कर दिए हैं, जिस कारण कर्मचारी सड़कों पर उतरने को मजबूर हैं. एक ही संवर्ग में अलग-अलग वेतन की विसंगतियां प्रदेश के विभिन्न विभागों में बनी हुई हैं.

उधर, कर्मचारियों को रखने समान वेतन समान कार्य समेत उनकी नियमितीकरण की मांग भी सबसे ज्यादा आंदोलन की वजह रही है. उधर, भत्ता और वेतन बढ़ोतरी भी एक कारण है. साथ ही समय से प्रमोशन ना होना भी एक बड़ी वजह रहा है. इसमें ज्यादातर मामले ऐसे हैं, जो सरकार या शासन में बैठे अधिकारियों की गलती के कारण दिखाई देते हैं और इसीलिए कर्मचारी हड़ताल करने को मजबूर होते हैं. कर्मचारी नेता कहते हैं कि सरकार की तरफ से उनकी मांगों को समय से नहीं विचार किया जाता और यही वजह है कि चुनाव के समय उनके आंदोलन तेज हो जाते हैं.

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