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शनिवार को मां डाटकाली मंदिर में होती है विशेष पूजा, नई गाड़ी के लिये ये है मान्यता - मां डाटकाली के दर्शन

उत्तराखंड भगवान शिव की भूमि है, तो माता सती के प्रयाण की साक्षी भी. यही वो जगह है, जहां आज भी मां सती के अंश विद्यमान हैं. जिन-जिन जगहों पर माता सती के अंश गिरे वहां आज सिद्धपीठ बने हैं. कहा जाता है कि इन सिद्धपीठों में दर्शन करने वालों को मां भगवती मनोकामना पूर्ण होने का वरदान देती हैं. भक्तों ने उनकी शक्ति को महसूस भी किया है. मां काली का ऐसा ही चमत्कारी शक्तिपीठ है मां डाटकाली मंदिर, जो कि माता सती के 9 शक्तिपीठों में से एक है.

Maa Datkali Temple
मां डाटकाली मंदिर

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Published : Jun 4, 2022, 6:29 AM IST

Updated : Jun 4, 2022, 6:37 AM IST

देहरादून:उत्तराखंड की भूमि पर देवशक्तियों और इनके अनेक स्वरूप आज भी सिद्धपीठ के रूप में विराजमान हैं. यह देवशक्तियाँ आज भी सच्चे मन से श्रद्धापूर्वक पूजा पाठ और साधना करने से अपने श्रद्धालुओं की हर मनोकामना पूर्ण करती हैं. ऐसा ही एक सिद्धपीठ मंदिर मां डाटकाली मंदिर देहरादून और सहारनपुर बॉर्डर पर स्थित है. यहां पर यूं तो हर दिन मां के दर्शन के लिए भक्तों का तांता लगा रहता है, लेकिन शनिवार को मां डाटकाली को लाल फूल, लाल चुनरी और नारियल का विशेष भोग चढ़ाने से भक्तों की हर मनोकामना पूर्ण होती है. मंगलवार और गुरुवार सहित शनिवार को मां डाटकाली मंदिर में मां के भक्त विशाल भंडारे का आयोजन करते हैं.

ईष्ट देवी हैं मां डाटकाली: मां डाटकाली मंदिर के महंत रमन प्रसाद गोस्वामी का कहना है कि मां उत्तराखण्ड सहित पश्चिम उत्तर प्रदेश की ईष्ट देवी हैं. हर रोज मां के दर्शन के लिए सैकड़ों श्रद्धालु मंदिर में पहुंचते हैं और मां सबकी मनोकामना पूर्ण करती हैं. मां डाटकाली के दर्शन के लिए अन्य प्रदेशों से भी श्रद्धालु पहुंचकर अपनी मनोकामना मांगते हैं. गोस्वामी बताते हैं कि जब भी कोई व्यक्ति नया वाहन लेता है, तो वह सबसे पहले वाहन को लेकर विशेष पूजा अर्चना के लिए मां के दरबार मे पहुंचता है. उनके वाहन में लगी मां की चुनरी हमेशा वाहन और वाहन चालक की सुरक्षा करती है.

मां डाटकाली के दर्शन

शनिवार को होती है विशेष पूजा: मां डाटकाली की विशेष पूजा अर्चना का दिन शनिवार को होता है. शनिवार को हजारों श्रद्धालु अपनी मुराद लेकर मां के दरबार मे पहुंचते हैं और मां उनकी हर मनोकामना को पूर्ण करती हैं. जिसके बाद श्रद्धालु अपनी श्रद्धा अनुसार मां के दरबार में पहुंचे श्रद्धालुओं के लिए हर मंगलवार, गुरुवार सहित शनिवार को विशाल भंडारे का आयोजन करते हैं.

यहां गिरा था मां सती का कंठ: महंत रमन प्रसाद गोस्वामी बताते हैं कि प्राचीन काल में मां का कंठ पहाड़ों में गिरा था. मां को घाठेवाली के नाम से जाना जाता था. तभी वर्ष 1804 में देहरादून-दिल्ली हाईवे पर सड़क निर्माण में लगी कार्यदायी संस्था सुरंग का निर्माण कर रही थी. लेकिन कंम्पनी दिन में जितनी सुरंग खोदती, तो रात को उतनी ही सुरंग टूट जाती थी. इससे वह परेशान हो गए.
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मंदिर निर्माण की कहानी: उसके बाद मां घाठेवाली महंत के पूर्वजों के सपने में आई और सुरंग निर्माण स्थल पर उनकी मूर्ति स्थापना की बात कही. उसके बाद महंत के पूर्वजों ने कार्यदायी संस्था के अधिकारियों के साथ मिलकर वहां पर मां घाठेवाली की मूर्ति की स्थापना की और उसके बाद कहीं जाकर सुरंग तैयार हुई. उसके बाद मां का नाम डाटकाली नाम से प्रचलित हुआ और मां की पूजा अर्चना इसी नाम से होने लगी. 1936 में कर्नल केठी ने इस सुरंग का पक्का निर्माण करवाया था.

Last Updated : Jun 4, 2022, 6:37 AM IST

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