देहरादून:आज कारगिल दिवस को 20 साल पूरे हो गये हैं.कारगिल युद्ध में भारतीय सैनिकों के शौर्य गाथाएं दस्तावेजों के रूप में मौजूद हैं, जिन्हें हर साल याद किया जाता है. कारगिल युद्ध लड़ने वाले ऐसे कई जांबाज आज भी हमारे बीच हैं जिन्होंने जान हथेली पर रखकर दुश्मनों से लोहा लिया था. ऐसी ही कहानी दो जांबाज भाइयों की है, जिन्होंने एक साथ कारगिल में दुश्मनों के छक्के छुड़ा दिये थे. लड़ाई में जब एक भाई लड़ते-लड़ते शहीद हो गया तब भी दूसरे भाई ने हथियार नहीं छोड़े. भाई के शहीद होने की खबर और दुश्मनों से लड़ते हुए मां भारती की रक्षा करने वाले गोरखा रेजमेंट के राइफलमैन शंकर थापा से विजय दिवस के मौके पर ईटीवी भारत की खास बातचीत.
देश की सेवा को सेना में भर्ती हुये थे दोनों भाई
देहरादून के गढ़ी कैंट क्षेत्र के गल्जवाड़ी में रहने वाले रमेश थापा और शंकर थापा मां भारती की सेवा के लिए सेना में भर्ती हुए थे. कारगिल की लड़ाई के दौरान गौरखा रेजीमेंट के राइफलमैन शंकर थापा और रमेश थापा जम्मू के द्रास सेक्टर में तैनात थे. ये दोनों भाई एक ही सैनिक शिविर में थे. इसी दौरान 3 जुलाई 1999 की शाम को द्रास सेक्टर में दुश्मनों के कब्जे वाली चौकियों को वापस पाने के लिए लड़ी गई लड़ाई में रमेश थापा शहीद हो गये.
ये दोनों भाई 27 दिसम्बर 1994 को लैंसडाउन में हुई भर्ती के दौरान गोरखा रेजीमेंट में भर्ती हुए. महज 5 साल की सर्विस में 3 जुलाई 1999 की रोज रमेश थापा पाकिस्तानी सेना से लड़ते-लड़ते शहीद हो गये.
पढ़ें-वकील से मारपीट के मामले में हाई कोर्ट सख्त, आरोपियों पर 48 घंटे के अंदर FIR दर्ज करने के आदेश
इस दौरान भाई की मौत को अपनी आंखों से देखने वाले शंकर के पांव तले जैसे जमीन खिसक गई थी. भाई की मौत ने शंकर थापा को गुस्से और बदले की भावना से भर दिया था. जिसके बाद वे गोरखा रेजीमेंट के जयघोष 'जय महाकाली-आयो गोरखाली' के साथ दुश्मनों का नरसंहार करते चले गये.
पढ़ें-ताबड़तोड़ ट्रांसफर: IAS-PCS के बाद मंडी सचिव और निरीक्षक इधर से उधर