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2020 में राजनीतिक द्वंद बनेगा पार्टियों की चुनौती, इन मामलों ने कराई थी फजीहत

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Published : Jan 2, 2020, 7:17 PM IST

उत्तराखंड में सत्ता दल हो या विपक्ष दोनों के ही लिए अपनों की लड़ाई एक बड़ी मुसीबत रही. साल 2019 के दौरान खासतौर पर सत्ताधारी दल में दिग्गजों के बीच खींची तलवारों ने हाईकमान की नाक में दम किया. यहां अहम की लड़ाई इस कदर उलझी की इससे पार पाने में पार्टी के भी पसीने छूट गए.

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इन मामलों ने कराई 2019 में पार्टियों की फजीहत

देहरादून: राजनीतिक महत्वाकांक्षा के चलते उत्तराखंड में अपनों की लड़ाई साल 2019 के दौरान खासी चर्चाओं में रही. इस दौरान दिग्गजों ने अपनी ही पार्टी के नेताओं के खिलाफ मोर्चा खोलकर पार्टी की खूब फजीहत करवाई. आइये आपको बताते हैं वो कौन से मामले हैं जिन्हें ये पार्टियां 2020 में नहीं दोहराना चाहेगी.

उत्तराखंड में सत्ता दल हो या विपक्ष दोनों के ही लिए अपनों की लड़ाई एक बड़ी मुसीबत रही. साल 2019 के दौरान खासतौर पर सत्ताधारी दल में दिग्गजों के बीच खींची तलवारों ने हाईकमान की नाक में दम किया. यहां अहम की लड़ाई इस कदर उलझी की इससे पार पाने में पार्टी के भी पसीने छूट गए. कई बार तो नौबत यहां तक आई कि मामला लाठी-डंडों और कोर्ट कचहरी तक भी पहुंचा. हालांकि, इतना कुछ होने के बावजूद भी भाजपा नेता इन्हें मामूली घटनाएं मानकर खुद को एक अनुशासित पार्टी बताने का राग अलापते रहे.

इन मामलों ने कराई 2019 में पार्टियों की फजीहत.

भाजपा में भिड़े कई दिग्गज

बात अगर भाजपा की करें तो खुद को अनुशासित पार्टी बताने के बावजूद भी सबसे ज्यादा मामले यही से सामने आये. ऐसे मामलों को हैंडल करने में पार्टी पूरी तरह से नाकामयाब रही, कई मामले हाईकमान की दखलअंदाजी के बाद ही शांत हो पाये. अब जानिए सत्ताधारी दल के वो चर्चित मामले जिन्होंने दल के सूरमाओं की ही नहीं दल की प्रतिष्ठा को भी सरेराह ला दिया.

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गैरसैंण सत्र मामला
इस साल मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत और प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट के बीच गैरसैंण में सत्र कराने को लेकर आपसी तनातनी का मामला खासा चर्चा में रहा. स्थिति यहां तक पहुंच गई कि पार्टी नेता एक दूसरे को उनके कार्य क्षेत्र देखने तक की सलाह देने लगे. हालांकि, पार्टी हाईकमान ने मामले में बीच-बचाव कर आखिरकार मामले को शांत करवाया.

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प्रेम नगर आश्रम अतिक्रमण मामला
हरिद्वार में सतपाल महाराज और मदन कौशिक के बीच अतिक्रमण हटाने को लेकर भी खासी तनातनी रही. हालत ये रहे कि सतपाल महाराज के प्रेम नगर आश्रम के कुछ हिस्से को अतिक्रमण मुक्त कराने को लेकर मदन कौशिक और सतपाल महाराज के समर्थकों के बीच लाठी-डंडे तक चले. हालांकि, दोनों कैबिनेट मंत्रियों के बीच हुई इस जंग को पार्टी के बीच बचाव के बाद शांत करवाया गया.

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कंडी मार्ग निर्माण मामला
कंडी मार्ग के निर्माण और वन विभाग की फाइलें मुख्यमंत्री द्वारा साइन किए जाने को लेकर भी हरक सिंह रावत और मुख्यमंत्री के बीच मनमुटाव देखने को मिला. कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत ने इससे नाराज होकर अपना पद तक छोड़ने की धमकी दी थी. हालांकि, इसके बाद मामले पर पार्टी की तरफ से हरक सिंह को समझाया गया तब जाकर सब सामान्य हुआ.


केंद्रीय मंत्री निशंक vs मदन कौशिक
केंद्रीय मंत्री निशंक और कैबिनेट मंत्री मदन कौशिक के बीच का झगड़ा सालों पुराना है. नगर निगम चुनाव के दौरान भी इन दोनों नेताओं के बीच राजनीतिक गहमागहमी चर्चाओं में रही. माना गया कि इन नेताओं की आपसी राजनीतिक रंजिश के चलते ही हरिद्वार नगर निगम की सीट भाजपा के हाथ से गई.

विधानभा अध्यक्ष और सीएम की जुबानी जंग

गैरसैंण मामले पर भी विधानसभा अध्यक्ष प्रेमचंद्र अग्रवाल और मुख्यमंत्री के बीच भी खूब जुबानी जंग दिखी. हालांकि, यह मामला ज्यादा नहीं खींचा और सार्वजनिक रूप से बयानबाजी करना बंद कर दिया.


चैंपियन और कर्णवाल की 'कुश्ती'
कुंवर प्रणव सिंह चैंपियन और देशराज के बीच की लड़ाई जगजाहिर है. भाजपा के इन 2 विधायकों ने तो पार्टी की नाक में इस तरह दम किया कि आखिरकार भाजपा को चैंपियन को पार्टी से निकालना पड़ा, लेकिन मामला तब भी नहीं सुलझा और बात कोर्ट कचहरी तक जा पहुंची.

प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी पर बवाल
प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट और पिछले दिनों कार्यकारी अध्यक्ष रहे नरेश बंसल के बीच भी लड़ाई चर्चाओं में रही. इस दौरान अजय भट्ट का भाजपा कार्यालय से बोर्ड हटाने का मामला आम लोगों की जुबां पर खूब सुनाई दिया. इस मामले ने राजनीतिक गलियों में खूब सुर्खियां बटोरी.

आरक्षण पर अशांति

राज्य में कर्मचारियों के आरक्षण का मुद्दा भी सरकार में आपसी नाराजगी की वजह बना. कैबिनेट मंत्री यशपाल आर्य आरक्षण व्यवस्था से नाराज होकर अपने घर मे कैद हो गए तो मुख्यमंत्री को अपने इस फैसले पर एक बार फिर से विचार करना पड़ा.

मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत vs अरविंद पांडे
सरकार में मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत और अरविंद पांडे का मामला भी खासा चर्चा में रहा. इसमें शिक्षा विभाग के अधिकारियों के ट्रांसफर मामले पर मुख्यमंत्री के दखल देने के बाद अरविंद पांडे मुख्यमंत्री से नाराज बताए गए. हालांकि, इस मामले में भी अरविंद पांडे की चुप्पी के कारण बड़ा बवाल होने से बच गया.

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कांग्रेस में भी हुई 'कलह'
ऐसा नहीं कि पार्टी के अंदर आपसी गुटबाजी और नेताओं की नाराजगी का मुद्दा केवल भाजपा में ही रहा. कांग्रेस में भी नेताओं के बीच नाराजगी खूब चर्चाओं में रही. जिसका खामियाजा पार्टी को भुगतना पड़ा. हालांकि, यहां भी भाजपा की तरह ही कांग्रेसी नेता और घटनाओं को परिवार का मामला बताकर मामूली बता रहे हैं.

वरिष्ठों के बीच खूब हुई जुबानी जंग
उत्तराखंड कांग्रेस में दिग्गज नेताओं की सूची प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह, राष्ट्रीय महासचिव हरीश रावत और नेता प्रतिपक्ष इंदिरा हृदयेश का नाम शुमार है, जो साल 2019 में कई बार आपसी बयानबाजी में उलझे रहे. तमाम चुनावों के दौरान इनमें आपसी टकराव दिखा. जानिए किन मामलों को लेकर इन नेताओं में आपसी टकराव हुआ.

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उत्तराखंड में प्रदेश कार्यकारिणी को लेकर प्रीतम सिंह और हरीश रावत सूची को लेकर आपस में टकराते हुए दिखाई दिए. जबकि, विधानसभा सत्र के दौरान भी हरीश रावत के बयानों ने कांग्रेस के अंदर इन दोनों नेताओं की आपसी लड़ाई को बढ़ाया.

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कुमाऊं में हरदा समर्थक नेताओं को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया. कुछ बागियों को पार्टी में शामिल करने को लेकर इंदिरा हृदयेश और हरीश रावत के बीच भी खूब तनातनी दिखाई दी. मामले में हाईकमान के दखलअंदाजी के बाद भी ये मनमुटाव खत्म नहीं हो सका.राहुल गांधी की रैली के दौरान मंच पर बोलने का मौका न मिलने के चलते पूर्व प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय और प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह भी आपस में बयानबाजी कर उलझते दिखाई दिए.

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बहरहाल, साल 2019 के दौरान उत्तराखंड में भाजपा और कांग्रेस के दिग्गज नेताओं की आपसी कड़वाहट इन दोनों ही दलों के लिए मुश्किलें पैदा करती रही. अब साल 2020 के आगमन के साथ दोनों ही दलों की तरफ से यह कोशिश होगी कि पार्टी के दिग्गज नेता आपस में केमिस्ट्री बनाए रखें. जिससे पार्टी की कड़वाहट सार्वजनिक रूप से बाहर न आये.

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