देहरादून:यशपाल आर्य का जन्म 8 जनवरी 1952 को हुआ. आर्य 1989 में खटीमा-सितारगंज सीट से पहली बार विधानसभा के लिए निर्वाचित हुए. तब उत्तराखंड नहीं बना था. इसके बाद 1993 से 96 तक वो उत्तर प्रदेश विधान परिषद के सदस्य रहे.
उत्तराखंड के पहले चुनाव में जीते थे आर्य: 9 नवंबर 2000 में उत्तराखंड बना तो अंतरिम सरकार के बाद 2002 में राज्य के पहले विधानसभा चुनाव हुए. यशपाल आर्य ने 2002 में उत्तराखंड विधानसभा का चुनाव जीता. राज्य में नारायण दत्त तिवारी के नेतृत्व में सरकार बनी तो यशपाल आर्य को विधानसभा अध्यक्ष बनाया गया.
मुक्तेश्वर से जीते दूसरा चुनाव: 2007 में यशपाल आर्य मुक्तेश्वर से विधानसभा चुनाव लड़े और विजयी हुए. लेकिन इस बार सरकार बदल गई थी. नारायण दत्त तिवारी की सरकार चुनाव हार गई. बीजेपी ने सत्ता में वापसी की.
पांच साल पहले छोड़ी थी कांग्रेस: 2016 में हरीश रावत की सरकार थी तो कांग्रेस के कई दिग्गज मुख्यमंत्री से नाराज थे. इनमें यशपाल आर्य का नाम भी था. इन विधायकों ने पार्टी से बगावत करके बीजेपी ज्वाइन कर ली थी. 9 बागी विधायकों में यशपाल आर्य भी शामिल थे.
2017 में बीजेपी से जीते: 9 बागी विधायकों के साथ यशपाल आर्य ने बीजेपी ज्वाइन कर ली थी. 2017 में जब उत्तराखंड विधानसभा के चुनाव हुए तो कांग्रेस को 9 विधायकों की बगावत का खामियाजा भुगतान पड़ा. दूसरी ओर मोदी की प्रचंड लहर से बीजेपी 57 सीटें जीतकर धमाकेदार ढंग से सत्ता में वापस आई.
यशपाल आर्य के पास थे 6 विभाग: कांग्रेस के बागी यशपाल आर्य को कैबिनेट मंत्री बनाया गया. यशपाल आर्य को बीजेपी सरकार में 6 बड़े और महत्वपूर्ण विभाग दिए गए थे. इनमें परिवहन, समाज कल्याण, अल्पसंख्यक कल्याण, छात्र कल्याण, निर्वाचन और आबकारी विभाग शामिल थे.
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इधर यशपाल आर्य असंतुष्ट बताए जा रहे थे. कई दिनों से चर्चा भी थी कि वो कांग्रेस में वापसी कर सकते हैं. हालांकि बीच में आर्य ने कहा था कि चुप रहने का मतलब नाराजगी नहीं होती. मगर उनकी चुप्पी आज साबित कर गई कि वो बीजेपी में खुश नहीं थे.
किसान आंदोलन बताई जा रही है वजह: ये चर्चा भी बड़े जोरों से है कि उत्तराखंड के मैदानी इलाकों में किसान आंदोलन का बहुत ज्यादा प्रभाव दिखाई दे रहा है. यशपाल आर्य की बाजपुर सीट उधमसिंह नगर में है. उधमसिंह नगर जिला राज्य का मैदानी भाग है. मैदानी भागों में किसान आंदोलन का ज्यादा असर है. शायद यशपाल आर्य को ऐसी आशंका थी कि अगर बीजेपी में रहते हुए चुनाव लड़े तो हार सकते हैं. अपना राजनीतिक भविष्य बचाने के लिए उन्होंने कांग्रेस में जाना सही समझा.
यशपाल आर्य के बेटे को भी बीजेपी ने 2017 में टिकट दिया और संजीव आर्य नैनीताल सीट से विधायक बन गए थे. अब संजीव आर्य भी बीजेपी छोड़कर कांग्रेस में चले गए हैं. कुछ लोग इसे परिवार की राजनीति को जिंदा रखने की कवायद भी मान रहे हैं. ऐसी संभावनाएं थी कि शायद बीजेपी इस चुनाव में संजीव आर्य को टिकट नहीं दे. बेटे के राजनीतिक भविष्य को बचाने के लिए भी यशपाल आर्य ने ये दांव खेला होगा.