देहरादून: राजधानी देहरादून से मसूरी तक जाने वाले ट्रैकिंग रूट किपलिंग ट्रेल (kipling trail) पर एक बार फिर लोगों की आवाजाही बढ़ी है. इस पैदल मार्ग के ऐतिहासिक पहलू को देखें तो यह काफी रोचक रहा है. किसी जमाने में इसी मार्ग से होते हुए अंग्रेज मसूरी पहुंचते थे. इसी मार्ग पर पहला टोल भी लगाया गया था, जिससे मसूरी और उसके आस-पास की व्यावसायिक गतिविधियां होती थीं. अंग्रेजों के जाने के बाद भी कई सालों तक लोग इसी पैदल मार्ग से सफर करते रहे. धीरे-धीरे सड़कों का जाल बिछने और साधन बढ़ने से लोगों ने इस मार्ग को भुला दिया, मगर अब एक बार फिर ये मार्ग गुलजार होने लगा है.
ऐतिहासिक है ये पैदल मार्ग: लगातार हो रहे विकास ने पुरानी व्यवस्थाओं और धरोहरों को इतिहास में बदल दिया है, मगर आज भी जब हम इतिहास के पुराने पन्नों को पलटकर देखते हैं तो इसमें कई ऐसी चीजें नजर आती हैं जो कभी बेहद खास थीं. बस बदले हुए वक्त ने इनके स्वरूप को बदल दिया है, इनका महत्व आज भी वही है. देहरादून से मसूरी को जोड़ने वाला पुराना ऐतिहासिक मार्ग भी कुछ ऐसी ही धरोहरों में से एक है. ये मार्ग आज किपलिंग ट्रेल(kipling trail) के नाम से मशहूर हो रहा है.
रुडयार्ड किपलिंग के नाम पर पड़ा किपलिंग ट्रेल का नाम:इसका रास्ते का नाम अंग्रेजी उपन्यासकार रुडयार्ड किपलिंग के नाम पर रखा गया है, जिनके बारे में माना जाता है कि वो 1880 के दशक में इसी रास्ते से मसूरी पहुंचे थे. माना जाता है कि 1880 के दशक में रुडयार्ड किपलिंग ने इस मार्ग पर ट्रेकिंग की थी और उनके उपन्यास किम में वर्णित पैदल यात्रा इसी मार्ग से हुई थी. लेखक रस्किन बॉन्ड ने भी अपनी किताब, द किपलिंग रोड में, राजपुर से मसूरी तक पुराने रास्ते पर चलने वाले लोगों की कई कहानियां बताई हैं.
खड़ी ढलानों के बीच से निकलता है रास्ता:ये रास्ता लगभग 9 किलोमीटर का है, इसको पैदल पूरा करने में 2 से 3 घंटे लगते हैं. राजपुर से होते हुए यह पांच खड़ी ढलानों के बीच से रास्ता बनाता है जिसे स्थानीय रूप से पांच कैंची कहा जाता है. ये पगडंडी राजपुर गांव में शहंशाही आश्रम/क्रिश्चियन रिट्रीट सेंटर के बाहर से शुरू होती है और लगभग 1.8 किमी की खड़ी चढ़ाई के साथ शुरू होती है. पगडंडी की शुरुआत में कुछ ऊंचे पेड़ के साथ झाड़ीदार वनस्पति देखने को मिलते हैं, लेकिन जल्द ही खुला पहाड़ी जंगल आ जाता है. पगडंडी की सतह ज्यादातर रास्ते के लिए ठोस है, लेकिन यह कुछ हिस्सों में खराब हो गई है और टूट गई है. पगडंडी पर चलते हुए दून घाटी के सुंदर दृश्य दिखाई देते हैं. ओक ग्रोव स्कूल के मुख्य द्वार के पास मसूरी-बार्लोगंज-देहरादून रोड के मोड़ पर पगडंडी समाप्त होती है. यहां से, झरीपानी की ओर बढ़ सकते हैं, जहां सेंट जॉर्ज कॉलेज के गेट के बाहर कुछ रेस्तरां और कैफे हैं.
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राजपुर रोड की सीमा खत्म होते ही शुरू होता है पैदल मार्ग:जिस ऐतिहासिक मार्ग से पहली दफा अंग्रेज मसूरी पहुंचे थे, उसके कई सालों तक इसी मार्ग से मसूरी के लिए आवाजाही होती रही. दरअसल, यह मार्ग देहरादून की राजपुर रोड जहां खत्म होती है वहां से शुरू होता है. देहरादून राजपुर रोड की सीमा जहां पर खत्म होती है वहीं से मसूरी नगर पालिका मसूरी की सीमा शुरू होती है. साथ ही यहीं पर पहली दफा टोल लगाया गया था. टोल की रेट लिस्ट आज भी यहां लगे बोर्ड पर साफ-साफ देखी जा सकती है. राजपुर रोड के आखिरी मुहाने पर लगे इस टोल बोर्ड से अंदाजा लगा सकते हैं कि उस समय यहां किस तरह की व्यवस्था रही होगी.
तब यब केवल एकमात्र पैदल मार्ग था: राजपुर रोड टोल पर स्थित इस बोर्ड पर घोड़े खच्चर और डोली ले जाने का किराया लिखा हुआ है. इससे पता चलता है कि आज भले हम देहरादून से मसूरी का सफर चौड़ी सड़कों से हुए मात्र एक घंटे में पूरा कर लेते हैं, मगर उस दौर में ये यात्रा काफी कठिन हुआ करती थी. उस जमाने में बकायदा राजपुर रोड के आखिरी मुहाने पर स्थित इस टोल से मसूरी जाने के लिए पैदल का टिकट काटा जाता था. इसके अलावा जिस तरह की व्यवस्था आज गौरीकुंड से केदारनाथ जाने के लिए दिखाई देती है उसी तरह की व्यवस्था पहले इस मार्ग पर भी थी. राजपुर रोड पर लगाया गया टोल न केवल उस समय मसूरी जाने के लिए एकमात्र पैदल मार्ग था बल्कि इस टोल पर आसपास की व्यवसायिक गतिविधियां भी निर्भर थी.