देहरादून: उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में इन दिनों बारिश का दौर जारी है. जिसके कारण यहां लोगों की परेशानियां बढ़ रही हैं. भूकंप, भूस्खलन और अतिवृष्टि के कारण पहाड़ों में जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया है. उत्तरकाशी जिले के कई गांवों के ग्रामीण दहशत में जीने को मजबूर हैं. निराकोट, मांडौ, मस्ताड़ी और बग्याल गांव में बीते दिनों की आपदा के मंजर को कौन भूल सकता है. यही कारण है कि उत्तराखंड के सैकड़ों गांव आज भी डर के साये में जीने को मजबूर हैं. इन गांवों में रह रहे परिवारों के भविष्य पर हर बीतते दिन से साथ खतरे के बादल मंडरा रहे हैं. बारिश, लैंडस्लाइड और भूकंप से उपजी परिस्थितियों के कारण इन गांवों के रहवासियों का जीवन दुभर होता जा रहा है. जिसके कारण यहां के लोग सरकार से विस्थापन की मांग कर रहे हैं. आंकड़ों के लिहाज से बात करें तो उत्तराखंड के 300 से ज्यादा गांव ऐसे में जो खतरे की जद में हैं. साल-दर साल प्रदेश में ऐसे गांवों की संख्या बढ़ती जा रही है.
क्यों होता है विस्थापन: पहाड़ी क्षेत्रों में बाढ़, सूखा और भूकंप के कारण बड़ी जनहानि होती है. जिसके कारण बड़ी मात्रा में जानमाल का नुकसान होता है. भूकंप के कारण घरों में दरारें पड़ जाती हैं, जिससे आवासीय भवनों पर खतरा मंडराता रहता है. भूस्खलन के कारण भी यहां की कई पहाड़ियां मौत बनकर लोगों की जान लील लेती है. जिसके कारण गांव के गांव प्रभावित होते हैं. बारिश अतिवृष्टि से तो पहाड़ों में सबसे ज्यादा हानि होती है. ये पहाड़ों में सबसे ज्यादा विस्थापन की वजह है. हर साल बादल फटने और भूस्खलन की घटनाओं से कई गांवों के नामोनिशान तक मिट गये हैं. हाल के दिनों में पिथौरागढ़, उत्तरकाशी, चमोली, रुद्रप्रयाग, टिहरी जैसे जिलों में बारिश और भूस्खलन ने तांडव मचाया. जिसके कारण इन इलाकों के कई गांव अब विस्थापन की बाट जो रहे हैं.
विस्थापन की हकीकत में अंतर: मॉनसून सीजन शुरू होते ही उत्तराखंड के सैकड़ों गांवों में रहने वाली की जिंदगी भगवान भरोसे हो जाती है. दरअसल, प्रदेश के कई पर्वतीय क्षेत्रों में बसें गांव ऐसे हैं, जो खतरे की जद में हैं. बारिश के दौरान इन ग्रामीण इलाकों में खतरा और भी बढ़ जाता है. मॉनसून की दस्तक के साथ ये इलाके संवेदनशील हो जाते हैं. संवेदनशील क्षेत्रों में रह रहे परिवारों को विस्थापित करने का दावा तो सरकारी तंत्र खूब कर रहा है लेकिन धरातल पर इसकी हकीकत कुछ और ही नजर आ रही है.
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विपक्ष ने भी सरकार की मंशा पर उठाये सवाल: दैवीय आपदा के लिहाज से संवेदनशील माने जाने वाले उत्तराखंड के इन क्षेत्रों में विस्थापन की मांग उठती आयी है. सिस्टम के जिम्मेदार आला अधिकारी भले ही इन तमाम ग्रामीणों को विस्थापित किए जाने की कार्य योजना को धरातल पर उतारने दावे करते हो, लेकिन विस्थापन के आंकड़े कुछ और ही बयां कर रहे हैं. यही वजह है कि पुनर्वास किए जाने वाले ग्रामीण, खौफ के साए में जीने को मजबूर हो रहे हैं. पहाड़ी क्षेत्रों के ग्रामीणों की जिंदगी से जुड़े इस गंभीर मामले पर अब विपक्ष ने भी सरकार की नीयत पर ही सवाल खड़े करने शुरू कर दिए हैं.
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प्रदेश के करीब 300 गांवों का होना है विस्थापन: प्रदेश के 13 जिलों में से 12 जिले ऐसे हैं, जिन जनपदों के कई गांव खतरे की जद में हैं. आपदा विभाग के आंकड़ों की मानें तो पिथौरागढ़ जिले में सबसे ज्यादा 129 गांव खतरे की जद में हैं. बावजूद इसके इस जिले के सिर्फ 235 परिवारों को ही विस्थापित किया गया है. साथ ही अगर आकड़ों पर गौर करें तो सबसे ज्यादा पहाड़ी क्षेत्रों में बसे गांव हैं, जो खतरे की जद में हैं. वहीं, मैदानी क्षेत्रों में बहुत कम ही गांव ऐसे हैं, जो खतरे की जद में हैं.
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अभी मात्र 58 गांव ही किये गए विस्थापित:राज्य के 12 जिलों में से विस्थापन के लिए 395 गांव चिन्हित किए गए हैं. पुनर्वास नीति, 2011 के तहत इन गांव को अन्य जगह विस्थापित किया जाना था, लेकिन बीते 5 सालों में अभी तक मात्र 58 गांवों के 1035 परिवारों को ही विस्थापित किया गया है. जिसमें करीब 40 करोड़ 9 लाख 08 हज़ार रुपये का खर्च आया है. अभी भी प्रदेश के 369 गांव ऐसे हैं, जो खतरे की जद में हैं.
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इस साल 336 परिवारों को किया गया विस्थापित: पुनर्वास योजना के तहत वित्तीय वर्ष 2021-22 में अब तक 31 गांवों के 336 परिवारों का पुनर्वास किया गया है. जिसमे पिथौरागढ़ के 235, उत्तरकाशी के 94 , अल्मोड़ा के 4 और रुद्रप्रयाग के 3 परिवार शमिल हैं. इन आपदा प्रभावित परिवारों के लिए राज्य सरकार द्वारा पुनर्वास मानकों के अंतर्गत 13 करोड़ 35 लाख 30 हजार की धनराशि जारी की गई. पिछले वित्तीय वर्ष 2019-20 में 360 आपदा प्रभावित परिवारों का पुनर्वास किया गया था.
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