देहरादून: जघन्य दुष्कर्म मामलों में लचर कानून व्यवस्था के चलते हर बार आरोपियों को उनके किये की माकूल सजा नहीं मिल पाती है. जिसके कारण आज भी समाज पर दुष्कर्म, गैंगरेप और हत्या जैसी घटनाएं लगातार हो रही हैं. आरोपी बेखौफ होकर इस दरिंदगी की दर्दनाक घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं. समाज में इस तरह के कुकृत्यों को रोकने और आरोपियों को सही समय पर उनके किये की सजा दिलाने के लिए फांसी के कानून का धरातल पर उतरना बहुत ही जरूरी है.
हैदराबाद में हुई हैवानियत के बाद लगातार लोग सड़कों पर उतरकर आरोपियो को तुरंत फांसी देने की मांग कर रहे हैं. मगर तमाम कानूनी पेचीदगियों के चलते ऐसा कर पाना मुमकिन नहीं है. ये सड़कों पर प्रदर्शन करने वाले लोग भी समझते हैं लेकिन दिलों में भरा गुस्सा और भावनाओं के ज्वार के में ये जंग दिनों दिन तेज होती जा रही है. जिसके बाद एक बार फिर से इस तरह के अपराधों के लिए बनाये गये कानूनों में बदलाव की संभावना जोर मारने लगी है.
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देवभूमि में भी लगातार नाबालिग बच्चियों और महिलाओं के साथ बलात्कार और हत्या जैसे मामलों सामने आते रहे हैं लेकिन इन मामलों में लचर कानून व्यवस्था के चलते आरोपी फांसी की सजा से बच जाते हैं. जो कि एक गंभीर समस्या के रूप में सामने आ रहा है. उत्तराखंड पुलिस के आला अधिकारियों का भी ये मानना है.
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जानकारों के मुताबिक आरोपियो को तय समय से उनके किये की सजा न मिलने से अपराधियों के हौंसले बढ़ते हैं. महिलाओं के प्रति बढ़ते दुष्कर्म व हत्या जैसे मामलों में निचली अदालत से फांसी जैसी सख्त सजा होने के बावजूद उच्च अदालतों में यह सजा माफ हो जाती है. कानून के जानकारों के मुताबिक ये एक चिंता का विषय है. उत्तराखंड पुलिस आलाधिकारियों के मुताबिक भले ही इस तरह के जघन्य अपराध में हाल के वर्षों में सरकार द्वारा कानून संसोधन कर सख्त किया गया हो, लेकिन धरातल पर इस कानून समय से अमल न होना एक गंभीर विडंबना है.