देहरादून: आज से 20 साल पहले मां भारती के वीरों ने विजय की एक ऐसी गाथा लिखी जिसने दुश्मन देश के छक्के छुड़ा दिये थे . साथ ही इन वीरों ने इतिहास के पन्नों में ऐेसी गाथाएं दर्ज कीं जो कभी हमारे रोंगटे खड़े कर देती हैं, तो कभी आंखो में आंसू ले आती हैं. 26 जुलाई 1999 की वो तारीख कोई भुलाये नहीं भूल सकता. इस दिन भारतीय सेना के जांबाज सिपाहियों ने 18 हजार फीट की ऊंचाई पर पाकिस्तानी सैनिकों के दांत खट्टे कर दिये थे. दो महीने चले इस युद्ध में मां भारती के 527 से ज्यादा वीर योद्धा शहीद हुए थे. जबकि 1300 से ज्यादा जवान घायल हुए थे. इन्हीं जवानों की वीरता और शहादत को याद करते हुए हर साल 26 जुलाई को कारगिल दिवस के रूप में मनाया जाता है.
कारगिल विजय दिवस: शहीदों की शौर्यगाथा का दिन, देवभूमि के 75 रणबांकुरों ने बजाई पाक की ईंट से ईंट
कारगिल में देवभूमि उत्तराखंड के 75 रणबांकुरों ने अपनी आहुति देकर तिरंगे की ताकत को पूरी दुनिया में कायम रखा था.
वहीं बात अगर देवभूमि उत्तराखंड की करें तो यहां के 75 रणबांकुरों ने इस युद्ध में अपनी आहुति देकर तिरंगे की ताकत को पूरी दुनिया में कायम रखा. इस दौरान एक समय ऐसा भी आया जब एक साथ 9 जवानों के पार्थिव शरीर को देवभूमि लाया गया. तब हर किसी की आंखें भर आई थी.
कारगिल युद्ध में गढ़वाल राइफल के 47 जवान शहीद हुए थे. जिनमें से 41 जांबाज उत्तराखंड के थे, वहीं कुमाऊं रेजीमेंट के 16 जवानों ने कारगिल युद्ध में अपने प्राणों की आहुति दी थी. देश के इतिहास में उत्तराखंड के बेटों का बलिदान स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज है.