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उत्तराखंड के भुतहा गांवों के बीच इसोटी बना विलेज टूरिस्ट डेस्टिनेशन, क्या आपने देखा ?

पलायन आयोग की रिपोर्ट में कहा गया है कि अलग राज्य बनने के बाद उत्तराखंड से करीब 60 प्रतिशत आबादी यानी 32 लाख लोग अपना घर छोड़ चुके हैं. पलायन आयोग की रिपोर्ट कहती है कि 2018 में उत्तराखंड के 1,700 गांव भुतहा हो चुके हैं. इन सबके बीच पौड़ी का इसोटी गांव उम्मीद जगाता है. यहां के वासिंदों ने पलायन कर रहे लोगों को दिखाया है कि अपने गांव को कैसे टूरिस्ट डेस्टिनेशन बनाकर आबाद रखा जा सकता है. आइए आज आपको उत्तराखंड के सुंदर गांव इसोटी की यात्रा कराते हैं.

Isoti Village Tourism Special
इसोटी गांव

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Published : Jul 21, 2022, 11:45 AM IST

Updated : Jul 21, 2022, 3:06 PM IST

देहरादून: खाली होते उत्तराखंड के पहाड़ी गांवों को पौड़ी गढ़वाल के चौबट्टाखाल विधानसभा क्षेत्र का गांव इसोटी आत्मनिर्भरता की राह दिखा रहा है. इसोटी आज विलेज टूरिज्म के क्षेत्र में एक ऐसी मिसाल बन चुका है, जिसके चर्चे देश में ही नहीं विदेश में भी हो रहे हैं. पौड़ी गढ़वाल के इस सुंदर गांव में विलेज टूरिज्म को लेकर के क्या कुछ खास है आइए जानते हैं.

उत्तराखंड के 1700 गांव हो चुके भुतहा: उत्तराखंड के ज्यादातर गांव आज पलायन का दंश झेल रहे हैं. 2018 के एक सर्वे के अनुसार पिछले 10 सालों में उत्तराखंड में तकरीबन 1700 गांव घोस्ट विलेज में तब्दील हुए हैं. घोस्ट विलेज यानी कि जो गांव अब पूरी तरह से खाली हो चुके हैं, वीरान हो चुके हैं. इस दौर में जब पहाड़ के पहाड़ जैसे जीवन में गांव वीरान होते जा रहे हैं, ऐसे में पौड़ी गढ़वाल का इसोटी विलेज उम्मीद की किरण लेकर मजबूती से सामने खड़ा है.

इसोटी बना विलेज टूरिस्ट डेस्टिनेशन.
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हसीन वादियों में है इसोटी गांव: दरअसल पौड़ी गढ़वाल के चौबट्टाखाल विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले एकेश्वर ब्लॉक में मौजूद कुदरत की हसीन वादियों में बसे इसोटी गांव के लोगों ने पहाड़ के गांव की परिभाषा ही बदल कर रख दी है. इस कारण इसकी चर्चाएं आज प्रदेश और देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी हो रही है. अंग्रेज भी पहाड़ के इस गांव में कुछ पल बिताने के लिए आ रहे हैं.

विलेज टूरिज्म का शानदार नमूना है इसोटी: पौड़ी गढ़वाल में मौजूद इसोटी गांव को गांव के लोगों ने कुछ इस तरह से डेवलप किया है कि इसमें विलेज टूरिज्म को लेकर जबरदस्त रिस्पांस देखने को मिल रहा है. मामूली पढ़े लिखे लोगों ने गांव में कई अलग-अलग प्रकार के होमस्टे बनाए हैं. आसपास कई इस तरह की एक्टिविटी को विकसित किया है. ताकि बाहर से आने वाले व्यक्ति को गांव में आकर कुछ नया और नेचुरल एहसास हो. ग्रामीण परिवेश में एडवेंचर टूरिज्म, वर्क वेकेशन, लोकल प्रोडक्ट, स्थानीय खानपान, ऑर्गेनिक सब्जियों और नेचुरल पर्यटक स्थलों को बाहर से आने वाले पर्यटकों के लिए इस तरह से परोसा जा रहा है जो कि यहां आने वाले के लिए एक बेहद नेचुरल सुखद और बिल्कुल अपने तरह का यूनिक एहसास दिलाता है.

कर्नल ईस्टवाल ने पहल लाई रंग: भारतीय सेना से वीआरएस लेकर इस गांव में पर्यटन की संभावनाएं तलाश रहे कर्नल ईस्टवाल बताते हैं कि के इस गांव में ज्यादातर लोग ईस्टवाल ही हैं. उनके द्वारा सेना से अवकाश लेकर अपने इस पैतृक गांव को कुछ इस तरह से बदलने का प्रयास किया गया ताकि इस गांव की सुंदरता केवल इसी गांव के लोगों तक सीमित ना रहे. उसका एहसास देश विदेश के लोगों को भी हो. इसके जरिए गांव में आर्थिकी का एक माहौल बने. ताकि खाली हो रहे गांव जिसमें केवल बुजुर्ग और महिलाएं बची थी फिर से जीवित-जागृत हो सकें. दरअसल काम करने के लिए ज्यादातर पुरुष पलायन कर देते थे. उस गांव में अब पर्यटन ने इस तरह का माहौल बनाया है कि गांव में रेवेन्यू का एक नया मॉडल खड़ा हो चुका है.
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विलेज टूरिज्म के इस पायलेट प्रोजेक्ट में क्या है खास:सेना से वीआरएस लेने के बाद ईस्टवाल गांव को एक विलेज डेस्टिनेशन के रूप में विकसित करने के कॉन्सेप्ट के साथ कर्नल आशीष ईस्टवाल ने एक पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर इस ओटी विलेज टूरिज्म की शुरुआत की. उन्होंने गांव में मौजूद पुराने पहाड़ी शैली के बने घरों को उसी शैली में बरकरार रखते हुए होम स्टे बनाकर उसमें कुछ सुविधाएं विकसित कीं. पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर पर्यटकों को यहां पर आमंत्रित किया गया. उनसे मात्र यह प्रॉमिस किया गया कि उनको एक नेचुरल और सांस्कृतिक रूप से एक ग्रामीण माहौल में रहने को मिलेगा.

जो शहर में नहीं, वो इस गांव में मिलेगा: साथ ही पर्यटकों को यह भी पहले ही बता दिया गया कि गांव में उन्हें ज्यादा सुविधाएं नहीं मिलेंगी लेकिन प्राकृतिक अहसास होगा. इससे गांव में आने को लेकर जबरदस्त उत्साह देखने को मिला. कर्नल आशीष ईस्टवाल बताते हैं कि इस तरह के नेचुरल टूरिज्म को पसंद करने वाले लोग सुविधाओं की खोज में नहीं, बल्कि जमीनी चीजों से जुड़ने के लिए आते हैं. क्योंकि वह जानते हैं कि सुविधाएं अगर उन्हें खोजनी हैं तो उसके लिए गांव नहीं शहर काफी हैं.

पूर्व सैनिक आशीष ईस्टवाल बताते हैं कि शुरू में ग्रामीणों का भरोसा जीतने में थोड़ा मुश्किलें आईं. किसी को भी विश्वास नहीं हो रहा था कि उनके गांव में कोई आएगा. लेकिन उनके इस प्रयास के बाद पहली दफा ऐसा हो रहा है जब गांव से कोई जा नहीं रहा बल्कि लोग आ रहे हैं. उन्होंने बताया कि दरअसल अब तक गांव से हर कोई गया ही था. जो गया वह कभी लौट कर नहीं आया. लेकिन अब हालात बदल रहे हैं. क्योंकि बाहर से लोग गांव में आ रहे हैं. गांव के लोगों को बता रहे हैं कि उनका गांव कितना सुंदर है.
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वर्केशन हब बना इसोटी: बाहर के लोग जब ग्रामीणों को बताते हैं कि उनका गांव सुंदर है, तब ग्रामीणों को एहसास होता है कि हां वाकई में उनका गांव बेहद सुंदर है. क्योंकि उन्हें आज तक यह बात किसी ने नहीं बताई थी. बस वह वहां रह रहे थे. देश विदेश से लोग इस गांव में आ रहे हैं. लोग अपनी स्टडी इस गांव के प्राकृतिक माहौल में रह कर रहें हैं, जिसे वर्केशन एक नये टर्म के रूप में नाम दिया जा रहा है.

ऐसे पहुंचें इसोटी:पौड़ी जिले का इसोटी गांव जिला मुख्यालय से करीब 100 किलोमीटर दूर है. उत्तराखंड की राजधानी देहरादून से इसोटी की दूरी करीब 200 किलोमीटर है. इसोटी पहुंचने के लिए सबसे पहले ऋषिकेश आना होगा. ऋषिकेश से 60 किलोमीटर की यात्रा करके यमकेश्वर पहुंचना होगा. यमकेश्वर से गुमखाल की 60 किलोमीटर की दूरी टैक्सी या कार से कर सकते हैं. गुमखाल से पौड़ी-कोटद्वार-ऋषिकेश हाईवे पर 60 किलोमीटर की यात्रा करने बाद सतपुली पहुंचा जा सकता है. सतपुली से लिंक रोड के सहारे पोखरा ब्लॉक से धार की वेणा और गाड़ की वेणा होते हुए करीब 20 किलोमीटर चलकर इसोटी गांव पहुंच जाएंगे.

Last Updated : Jul 21, 2022, 3:06 PM IST

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