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हरीश रावत देख रहे थे CM बनने का सपना, तभी प्रीतम सिंह ने जगा दिया !

अल्लामा इकबाल का एक मशहूर शेर है- सितारों से आगे जहां और भी हैं, अभी इश्क के इम्तिहां और भी हैं. उत्तराखंड कांग्रेस के सबसे बड़े नेता हरीश रावत पर ये शेर सटीक बैठता है. हरीश रावत आए दिन सीएम बनने की ख्वाहिश जताते रहते हैं. तभी कोई न कोई ख्वाहिश जताने पर ही टांग अड़ाने लगता है.

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हरीश रावत का इम्तिहान

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Published : Feb 17, 2022, 9:13 AM IST

देहरादून:उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2022 का मतदान 14 फरवरी को संपन्न हो चुका है. 10 मार्च को चुनाव परिणाम घोषित होगा. मतदान के बाद से ही हरीश रावत को जीत की सुगंध महसूस हो रही है. हरीश रावत चुनाव परिणाम घोषित होने से पहले ही कांग्रेस की सरकार बनती देख रहे हैं. सरकार बनते देख रहे हैं तो खुद को मुख्यमंत्री भी बनाना चाह रहे हैं.

हरीश रावत ने ऐसे जताई थी चाहत: हरीश रावत से जब रहा नहीं गया तो उन्होंने कह दिया कि वो उत्तराखंड के मुख्यमंत्री बनेंगे. अब उनके पास इसके अलावा कोई विकल्प नहीं रह गया है. वो अपनी योजनाओं को मुख्यमंत्री बनकर ही क्रिन्यान्वित कर सकेंगे. अगर ऐसा नहीं होता तो वो घर बैठ जाएंगे. यानी राजनीति से संन्यास ले लेंगे.

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प्रीतम को नहीं भायी हरीश रावत की चाहत: हरीश रावत ने हल्द्वानी के लालकुआं जहां से वो चुनाव लड़ रहे हैं, में सीएम बनने की इच्छा जताई थी. लालकुआं से करीब 270 किलोमीटर दूर देहरादून तक जब हरीश रावत की सीएम बनने की इच्छा वाली बात पहुंची तो नेता प्रतिपक्ष और कांग्रेस में हरीश रावत के कट्टर विरोधी प्रीतम सिंह ने भी सुनी. प्रीतम को हरीश रावत का मुख्यमंत्री की कुर्सी पर अधिकार जताना नागवार गुजरा. प्रीतम ने सोचा चुनाव में मेहनत हम भी करें और सीएम की कुर्सी का प्रसाद अकेले हरीश रावत खाएं, ऐसा कैसे हो सकता है.

प्रीतम ने हाईकमान के पाले में फेंक दी गेंद: हरीश रावत की मुख्यमंत्री बनने की इच्छा ने प्रीतम सिंह को बेचैन कर दिया. जब बेचैनी हद से बढ़ी तो उन्होंने बयान जारी कर दिया. प्रीतम सिंह ने कहा दिया कि कांग्रेस की सरकार बनती है तो मुख्यमंत्री का फैसला हाईकमान करेगा. प्रीतम सिंह ने कहा कि मुख्यमंत्री का फैसला राष्ट्रीय नेतृत्व करेगा. राष्ट्रीय नेतृत्व जो निर्णय लेगा वह सर्वोपरि होगा.

प्रीतम सिंह ने क्या कहा ? : प्रीतम सिंह ने कहा कि, हरीश रावत कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता हैं, लेकिन राष्ट्रीय नेतृत्व जो निर्णय लेगा वही सर्वोपरि होगा. चुनाव से पहले राष्ट्रीय नेतृत्व ने फैसला लिया था कि हम सामूहिक रूप से चुनाव लड़ेंगे. ऐसे में हम सामूहिक नेतृत्व में चुनाव लड़े हैं. मुख्यमंत्री चेहरे को लेकर अब भी राष्ट्रीय नेतृत्व को ही फैसला लेना है. जिसके पक्ष में भी मुख्यमंत्री बनने को लेकर फैसला होगा, सब लोग उनके साथ लामबंद होंगे और जो चुनावी घोषणा पत्र में वादे किए हैं, उन्हें पूरा करने का काम करेंगे.

हरीश रावत और प्रीतम के बीच है 36 का आंकड़ा: दरअसल हरीश रावत और प्रीतम सिंह की कभी नहीं बनी. दोनों के बीच 36 का आंकड़ा है. इसकी बानगी पिछले साल दिसंबर के महीने में भी दिखी थी. हरीश रावत ने प्रदेश और केंद्रीय नेतृत्व को लक्ष्य कर तीखा ट्वीट कर दिया था. इससे कांग्रेस में हड़कंप मच गया था.

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कांग्रेस हाईकमान ने दोनों को दिल्ली बुलाया था: उत्तराखंड की ठंडी वादियों में गर्मी लाने वाले हरीश रावत के ट्वीट की तपिश कांग्रेस के दिल्ली दरबार तक पहुंच गई थी. इसके बाद कांग्रेस हाईकमान ने दोनों नेताओं समेत उत्तराखंड की पूरी टॉप लीडरशिप को दिल्ली तलब किया था. दोनों गुटों से सवाल-जवाब हुए थे.

दिल्ली से लौटते ही ढाक के तीन पात: कांग्रेस की टॉप लीडरशिप की समझाइश के बाद भी हरीश रावत के कस-बल ढीले नहीं हुए थे. मीटिंग के बाद जैसे ही हरीश रावत ढोल बजाते हुए उत्तराखंड की सीमा में दाखिल हुए थे, तो उन्होंने प्रचारित करना शुरू कर दिया था कि वो ही सीएम फेस हैं.

प्रीतम गुट को चुभ गई थी बात: दिल्ली में कांग्रेस हाईकमान के साथ हुई बैठक में हरीश रावत को सीएम फेस घोषित नहीं किया गया था. उन्हें कैंपेन कमेटी के हेड की जिम्मेदारी सौंपी गई थी. पार्टी के सभी नेताओं को मिलजुल कर चुनाव लड़ने का संदेश दिया गया था. जब हरीश रावत ने उत्तराखंड पहुंचते ही खुद को सीएम फेस बताना शुरू किया, तो प्रीतम गुट को ये बात नागवार गुजरी थी. तुरंत इसकी शिकायत कांग्रेस हाईकमान से की गई थी. कांग्रेस हाईकमान ने हरीश रावत को हद में रहने को ताकीद किया था.

कांग्रेस में चुनाव से पहले वाली स्थिति कायम: इन घटनाक्रमों को देखें तो उत्तराखंड कांग्रेस में जो विवाद, जो गुटबाजी चुनाव से पहले चली आ रही थी, वही मतदान के बाद भी दिखाई दे रही है. मतगणना के बाद जब चुनाव परिणाम आएगा तो फिर ना जाने क्या हालात हों.

हरीश रावत पहले भी रहे बदनसीब:2002 में जब उत्तराखंड विधानसभा के पहले चुनाव हुए थे तो हरीश रावत के नेतृत्व में कांग्रेस ने चुनाव लड़ा था. कांग्रेस चुनाव जीत गई थी. हरीश रावत खुद को मुख्यमंत्री मानकर चल रहे थे. अचानक कांग्रेस हाईकमान ने नारायण दत्त तिवारी को मुख्यमंत्री बना दिया था. इससे हरीश रावत बहुत ज्यादा हताश, निराश और नाराज हुए थे. नारायण दत्त तिवारी का राजनीतिक कद इतना ऊंचा था कि हरीश रावत उनसे पार नहीं पा सके थे. नारायण दत्त तिवारी पूरे पांच साल सरकार चला ले गए थे.

2012 में भी मिला था धोखा: 2012 के उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में भी हरीश रावत कांग्रेस का मुख्य चेहरा थे. इस बार किसी पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं था. लेकिन कांग्रेस ने जोड़तोड़ करके सरकार बना ली थी. इस बार भी हरीश रावत का बदनसीबी ने पीछा नहीं छोड़ा था. कांग्रेस हाईकमान ने पैराशूट प्रत्याशी विजय बहुगुणा को मुख्यमंत्री बना दिया था. इसके बाद तो हरीश रावत ने आसमान सिर पर उठा लिया था. आखिर केदारनाथ आपदा के बाद हरीश रावत को मुख्यमंत्री बनाया गया था. लेकिन उनके कार्यकाल में ही 9 विधायक पार्टी छोड़कर बीजेपी में शामिल हो गए थे.

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यूपी में एक कहावत है- सूत न कपास, जुलाहों में लट्ठम लट्ठा. उत्तराखंड कांग्रेस में भी अभी यही हालत है. अभी तो चुनाव परिणाम भी नहीं आया और हरीश रावत ने मुख्यमंत्री पद पर अपना अधिकार जमा लिया है. हरीश रावत का सीएम पद पर अधिकार जमाना प्रीतम सिंह को पसंद नहीं आया. उन्होंने गेंद हाईकमान के पाले में डाल दी. जाहिर है ये तो अभी उत्तराखंड कांग्रेस के नेताओं का ट्रेलर है. पिक्चर अभी बाकी है दोस्तो, जो 10 मार्च को रिलीज होगी.

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